Tue. Mar 18th, 2025

“Come Back Hero” – Dr. CK Raut : कैलाश महतो

कैलाश महतो, पराशी । “Come Back Hero”. यह आव्हान है डा. सिके राउत का – रवि लामिछाने के चाहत में । संसद में पूनर्आगमन के लिए । २०७९ माघ १३ के दिन सर्वोच्च अदालत के संवैधानिक इजलास ने राष्ट्रीय स्वतन्त्र पार्टी के सभापति, प्रतिनिधि सभा सांसद तथा देश के उपप्रधान तथा गृह मन्त्री रवि लामिछाने का सांसद पद समाप्त होने का फैसला  सुनाया था । दर असल रवि जी के नाम पर मिले नेपाली और अमेरिकी नागरिकता के टकराहट में सर्वोच्च ने वैसा फैसला देने को बाध्य हुआ था ।
डा. सुन्दर मणि दीक्षित के अनुसार रवि लामिछाने के विवादित नागरिकता के आधार पर उनके सांसद पद समाप्‍त होने का सर्वोच्च अदालत का निर्णय स्वागतयोग्य है । डा. दीक्षित के विश्लेषण को मानें, तो राजा महेन्द्र के बाद नेपाल में पहला एक रणनीतिक चतुर्युगी राज नेता दिखाई दे रहे हैं, जो वर्तमान के सारे राजनीतिक तमाशों‌ का प्लाटिनम (Platinum) है – जो हर छिद्र में घुसा हुआ है । वह King Maker और King Breaker दोनों हैं । जिन्होंने नेपाल के सबसे तूफानी और अन्जामी राजनीतिक मुद्दों को देखते ही देखते नश्तनाबूद कर दी है । एक विद्रोही राजनेता को Technocrat प्रमाणित कर दी है और Climax पर पहुँच रहे स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन के दीवाने लोगों के आत्म विश्वास को चुटकी में खरीद ली है । वह नेता है ८ कक्षा फेल में PhD करने बाले केपी ओली ।
बडे तामझाम के साथ राष्ट्रीय स्वतन्त्र पार्टी के सभापति रवि लामिछाने ने अपने राजनीतिक अभिलाषा को पूर्ण किया था । बडे लहक चहक अन्दाज में देश का उपप्रधान तथा गृह मन्त्री बन बैठे थे । उन्हें उस उच्च महत्वाकांक्षी पद का योग्य बनाने में ओली साहब का श्रेष्ठ भूमिका रही थी । रवि जी को उपप्रधान तथा गृह मन्त्री बनाकर ओली जी ने एक तीर से कैयन शिकार करना चाहा है । प्रथमतः संसद में सबसे अधिक सांसद संख्या बाले नेपाली काँग्रेस के मातहत में रहे उस वर्तमान और भावी सरकारी गठबन्धन को समाप्त करना था, जिसने ओली का सत्ता छीना था । दूसरा यह कि प्रचण्ड को प्रधानमन्त्री बनाकर उस पद से हटाना ओली का अगला रणनीति है । तीसरा, प्रचण्ड के भ्रष्टाचार की कमाइयों के विरोध में गला फाड फाडकर मीडियाबाजी करने बाले रवि को प्रचण्ड के ही नेतृत्व में सरकारी पात्र बनाकर रवि के भावी मजबूत राजनीतिक भविष्य पर ताला लगाना था । ओली ने बडे चालाकी से लगभग आधा दर्जन उपप्रधानमंत्रियों के बीच रवि को भी उपप्रधानमन्त्री बनाया, जिसका कभी रवि जी घोर विरोधी हुआ करते थे । उसके साथ ही मधेश से प्रत्यक्ष निर्वाचन में दुर्घटनायी एक सीटे विजेता पार्टी अध्यक्ष का उचाई और अहंकार को भी धरातल‌ दिखाने का काम ओली ने बखूबी निभाया है ।
तीन चार महीने के तामझाम से संसदीय राजनीतिक मैदान में झण्डा लहराने बाले रवि के सामने विगत ११ वर्षों से महानायक, महावतार, महान वैज्ञानिक तथा जनता का परमात्मा होने का दावा करने बाले डा. राउत का साख भी ओली ने इस कदर पतली कर दी कि सप्तरी २ में ओली ने सिके को जिताने का नहीं, उपेन्द्र जी को हराने का जुगाड को सफल किया है । प्रत्यक्ष में मिले वह १ सीट भी ओली और बाह्य कुछ शक्तियों ने अपनी बदलायी/प्रतिशोधात्मक, तथा सहानुभूतीय रूप में दिलवाई है ।‌ वह न तो किसी की जीत है, न किसी का हार ।
ओली ने जो खेल खेला है, उसके परिणामस्वरूप एमाले ने प्रतिनिधि सभा का सभामुख पाया है । अब एक और कसरत करना बांकी है, जिसके तहत अपना राष्ट्रपति बनाना है ।‌ राष्ट्रपति चुनाव के बाद ओली का गेम प्लान ऐसा होगा, जो राजा महेन्द्र ने भी नहीं सोचा होगा । वह तय है, जिसे अभी ही खुलासा करना बेहतर नहीं माना जा सकता ।
पार्टी के आन्तरिक विवाद में फंसे जनमत नेतृत्व ने अब नेपाली होने के कोशिशों में हैं । क्षेत्रीय पार्टियों से राष्ट्रीय पार्टियों में तब्दील हुए जसपा और लोसपा को गाली और श्राप देते रहे जमनत ने अब खुद वही नहीं, अपितु उनसे भी ज्यादा राष्ट्रीय और राष्ट्रवादी होने का दावा पेश करने का नतीजा है कि डा.राउत ने नागरिकता दुरुपयोग जैसे गम्भीर अपराध के अपराधी रवि लामिछाने को HERO का संज्ञा देने का धर्म निभाया है । नागरिकता के अभाव में दो वक्त की कानूनी रोटी से वञ्चित लाखों मधेशी नेपाली जहाँ एक ओर नागरिकता के लिए तरस खा रहे हैं, वहीं नागरिकता का कानूनी दुरुपयोग करके देश के महत्वपूर्ण राजनीतिक और प्रशासनिक निकायों पर विराजमान रवि के पक्ष में बोलना ही नहीं, उन्हें HERO तक से सम्बोधन करना चौकाने बाली बात है ।
खबर को मानें तो रवि लामिछाने का मुद्दा बस् – एक नजीर बनेगा । उस नजीर के जरिये मधेश के लाखों नागरिकताओं पर बज्रपात गिरना तय है । राज्य और रवि भी शायद यह जानते हैं कि एक रवि के गृह मन्त्री पद जाने और उनके नागरिकता पर विवाद होने से अगर कुछ लाख मधेशी नागरिकताओं की बर्खास्तगी होनी है, तो वह रवि को को भी मन्जूर हो जायेगा – जिस बात को मधेश के नव राजनीतिज्ञ भी संभवतः नहीं जानते हैं ।
जानकारी यहाँ तक आ रही है कि डा. सिके द्वारा रवि के नागरिकता मामलों में व्यक्तव्यबाजी आना इस बात का पुष्टि करता है कि उनका भी नागरिकता कहीं उसी गम्भीर मोड पर तो नहीं है ? जानकारों के अनुसार डा. राउत के नागरिकता समेत पर छानबीन करने का रीट सर्वोच्च अदालत में पड चुका है ।‌ ऐसा ही रहा तो मधेश प्रदेश के कृषि मन्त्री बसन्त कुशवाहा, राजेन्द्र महतो और विदेशों में लम्बे अरसों तक काम‌ करने के पश्चात्‌ राजनीति करने के उद्देश्य से प्रेरित होकर नेपाल लौटने बाले लोगों के नागरिकताओं पर भी धीरे धीरे खोज तलाश होने का सिलसिला चलेगा । उस अवस्था में वैसे लोगों के साथ राज्य का तेहरा अत्याचार सावित होना निश्चित प्राय: है : –
१. युवाओं को विद्रोही भाव समय के यौवनापन को अपने देश से पलायन कराकर देश को विद्रोही युवामुक्त रखने का साजिश ।
२. युवाओं के तपती मेहनत से आने बाले रेमिट्यान्सों पर राज और मस्ती करने की रणनीति । और,
३. भ्रष्ट चुनाव प्रणाली में भी किसी तरह विदेशों से कमाकर देश आकर राजनीति करने बाले लोगों के प्रति ईर्ष्या भाव रखकर उनके PR तथा विदेशी नागरिकताओं को मुद्दा बनाकर राजनीति में होने बाले उनके पहुँचों को रोकने का षड्यन्त्र कायम रखना ।
ये और ऐसे अनेक आधार और कारणें हैं, जिनके स्पष्ट व्याख्या और विश्लेषणों के आधारों पर युवा अगर ध्यान नहीं दिये, तो देश की राजनीति परम्परागत वंश, नश्ल, जात, समुदाय, वर्ग और समूहों के चंगूलों से निकालना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन हो जायेगा ।

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