प्रदीप गिरी – एक राजनैतिक अध्ययन
रामपल्टन साह, जनकपुरधाम । महान समाजवादी नेता स्वर्गीय प्रदीप गिरि का एक ही सिद्धान्त था- समतामूलक समाजवाद का सिद्धान्त । न्यायपुर्ण लोकतान्त्रिक समता और स्वतन्त्रता पर आधारित नेपाल निर्माण के लिए जीवन भर वे संघर्ष करते रहे । एक ऐसा नेपाल हो, जिसमे हर किसी को समान भागिदारी हो और हर किसि को आवास का समान महत्व हो, उनका लक्ष्य था । मौलिक चिन्तक और दार्शनिक रहे, प्रजातान्त्रिक योद्धा एवं मेरे अभिभावक प्रदीप गिरीजी की प्रथम स्मृती दिवस पर उनके प्रती भावपूर्ण श्रधान्जली अर्पण करते हुए सत सत नमन् करता हुँ ।
नेपालके राजनितिक मंचके जबरदस्त तूफानी आकर्षक बहुचर्चित और सुर्खियो में रहनेवाले समाजवाद के अग्रणी व्यक्ति के रूप में वे जाने जाते हैं । अदभुत बुद्धिमता और आद्म्य वोध के नेता के रूपमे वो विख्यात थे ।
प्रदीपजीने मार्क्सवाद, गान्धीबाद, और लोहीयाबाद के दार्शनीकी विचार के, तालमेल से तत्कालीन नेपाली राजनितीक परिस्थिति के अनुरूप समाजवाद के नई रूप रेखा पेश की । अपनी राजनीतिक सिद्धान्त और विचारों की वजहसे उनहोनें राजनीतिमें क्रान्तिकारी परिवर्तन की बात की । मधेश अस्मिता, कर्णाली, दलित, महिला, जनजाती ,मधेशी अर्थात (कदमजम) का शुत्रधार रहे। बन्चित उन वर्ग, समुदायको भी सन
3त्तामे समान हक और अधिकार मिले, कहकर उन्होने नेपाली कांग्रेसके विधानमे रखवाया । और, देश व्यापी कमजोर, असहाय और उपेक्षित समुदाय ,वर्गको आरक्षण दिलाने हेतु नेपालके संविधानमे समावेश करवानेका प्रमुख पात्र थे प्रदिप जी ।
वह चुनावको सिर्फ सत्ता प्राप्ति का साधन नमानकर जनता की सार्वभौम ईच्छा शक्तिकी अभिव्यक्ति की माध्यम मानते थे । और अपनी इस विचार पर अड़ीक रहते हुए संसद में प्रदीप जी अपनी प्रखर वाणी तिखे सवालों के जरीए ओं गून्ज पैदा की की उसकी आवाज आजतक सुनाई देती हैं और सदियोतक गून्जते रहेगी ।
नेपाल राष्ट्रके राजनीतिमे लोकतान्त्रिक आन्दोलनके दौरान लोकतन्त्रके बाद एसे कई नेता हुए जिन्होंने अपने दमपर साशन का रुख बदल दिया । वि.पि. कोईराला, विर गणेशमान सिंह, कृष्णप्रसाद भट्टराई, महेन्द्रनारायण निधी,रामनारायण मिश्र, सहितके नेता जी के अनुवाई थे । प्रदीप जी नें गान्धी के सिद्धान्त ” सत्य अहिंसा” तथा साधन की पवित्रता में विश्वास रखने के कारण यह काफी परिष्कृत हो चुकी थी । वे किसी से न घृणा करते थे, न किसी को आघात ही पहुंचाते थे । नैतिक विधान ही उनका धर्म था । कोई भी व्यक्ति, यदि वह नैतिक जीवन व्यतीत करता है – चाहे वह किसी भी विचारधारा या मत-मतान्तर का क्यों न हो – तो वह धार्मिक है । पर इन सबसे ज्यादा वे उसे पसन्द करते थे, जो उनके उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक हों उनके कोई निजी सम्बन्ध नही थे । उनके लिए प्रेम व्यक्तिगत नहीं, सामुहिक बन्धन था, जैसे गरीबों से प्रेम, मानवता से प्रेम । विशेषत: स्त्रियाँ उनके व्यक्तिगत गुणों की महत्ता से खिंचकर उनके पास आयीं । उन्होने उनके प्रेम और आसक्ति को उसी हद तक स्वीकार किया, जितना कि अपनी क्रान्ति के लिए उपयोग कर सकते थे। ऐसे व्यक्ति अकसर राजनीति मे दिलचस्पी नही रखते थे, पर प्रदीपजी ने उनका उन्हीं के क्षेत्र मे उपयोग किया करते थे। प्रदीपजी अजय योद्धा, महान विचारक के तौर पर देखता है । अपनी प्रखर देश भक्ति और समतामुलक समाजवादी विचार के चलते अपनी समर्थक के साथ हीं अपनी विरोधीयों के बीच भि बेहद सम्मान से देखे जाते थे ।
” आर्थिक गैर बराबरी जाति-पाँति जुडुवा राक्षस है.. और अगर एक से लड़ना है तो दूसरे से भी लडना जरूरी है ,, समाज को बराबरी पर लाने और समतामुलक को बनाने के लिए ऐ बात कहने वाले प्रदीपजी नेपाल और नेपालीजन के लिए अद्भुत या आलौकिक नेता होनेके साथही समाजवादी आन्दोलन के संस्थापक मे से एक थे । समाजवादी भी इस अर्थ मे समाजही उनका कार्यक्षेत्र था । और वे अपने कार्य क्षेत्रके लोगोंको कल्याण से महकाना चाहते थे। वे चाहते थे व्यक्ति-व्यक्ति के बिच कोई मतभेद न हो। कोई वैर और कोई दिवार न रहें। सब लोगोंका सम्मान हो । सब लोग सबका भला चाहे और सबमे सब साथ हों।
उन्होने महात्मा गान्धी, राम मनोहर लोहिया, जय प्रकास नारायण जी के अतुलनीय प्रिय विचार से सत्याग्रह, साध्य और साधना, राजनीति विकेन्द्रीकरण के साथ समाजवादी सिद्धान्तकी खोज की, की समाजवाद क्या है और क्यों नहीं।
उन्होंने कहा- उच्च वर्ग विरुद्ध क्रोध भी समाजवाद नही हैं । और निचे वर्गके बारे में अलगाव भी । शोषण के विरोध में क्रोध और छोटो के प्रति करुणा का नाम समाजवाद हैं । समाजवाद समाज मे समता और समृद्धि पर आधारित हों । आर्थिक बराबरी होनेपर जाती व्यवस्था अपने आप खत्म होजाएगी ।
आधुनीक नेपाल के प्रखर चिन्तक भी थे वो ।
आजादी से पहले और बाद के दशकों में उन्होंने नेपाली राजनीति के हर पक्षको प्रभावित किया । राजनितिमें पारदर्शिता उनकी पहली शर्त थी । प्रदीप जी की राजनीतिक विचार आजभी प्रेरणाके स्रोत हैं ।
जो लोग यह कहते हैं कि राजनीति को रोजी-रोटी की समस्या से अलग रखो तो यह कहना उनकी अज्ञानता है या बेईमानी है । राजनीतिका अर्थ और प्रमुख उद्देश्य लोगों का पेट भरना है । जिस राजनीति से लोगों को रोटी नहीं मिल्ती, उनका पेट नहीं भरता वह राजनीति भ्रष्ट, पापी और निच राजनीति है ।
प्रदीप गीरी जी प्रभावशाली व्यक्तित्व थे , जिसके मुह से कोई नही बच सका । रचनाकार और चित्रकार के लम्बी फेहरिस्त हैं ,जो उनसे बहुत प्रभावित थे। उनका कोई भी लेख रचना पढने से साफ जाहीर होता है की राजनीतिक गलियारों मे वो अपना लोहा मनवाते थे।
बलकी कला संवेदनशिलता, मर्मज्ञता के भी वो धनी थे। हर तरफ के गैर बराबरी, मिटाने के लिए उन्होने बहुत संघर्ष की । सदन में उनके भाषन से जो गून्ज उठती थी, वो आवाज भुलाई नही जासकती । प्रदीप जी की शुन्यताको भर पाना सम्भव नही है आजके मौजूदा परिस्थिति मे । समाजवादी चिन्तक प्रदीप गीरी जी की अनुपस्थिति कष्टकारी है । प्रजातान्त्रिक योद्धा मौलिक चिन्तक और दार्शनिक मेरे अभिभावक प्रदीप गिरी जी की प्रथम स्मृती दिवस पर उनके प्रति भावपूर्ण श्रद्धान्जली अर्पण करता हुँ । और सत सत नमन्
रामपल्टन साह
संयोजक
प्रदिप गिरीका पावन स्मृति :
लोक एवम् लोकतन्त्र सेतु गाथा
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