कैसे करूँ नव वर्ष की शुरूआत ? : अंशु झा
नव वर्ष की शुरूआत
करना चाहती हूँ
नए शब्दाें से,
पर एक भी शब्द
नया नहीं मिला,
सारे शब्द जर्जर
अंग-भंग हाे,
उसी रूढिवादी रवैया
के साथ लिप्त हैं ।
बहुत काेशिश के बाद
एक ढूँढा भी था,
“मानवता”
पर पता चला
वह ताे कब की
मर चुकी है,
फिर “विवेक” से
रुबरू हुई,
ताे उसने बताया
मैं ताे वर्षाें से
विवेकहीन हूँ,
“प्रेम” ने भी कहा,
मैं भी ताे झूठ
और स्वार्थ से सना हूँ ।
कैसे करूँ
नव वर्ष की शुरूआत ?
कहाँ से लाऊँ
नया उत्साह ?
भ्रष्टाचार और अत्याचार
से शाेषित समाज में,
उमंग की कल्पना
व्यर्थ ही ताे है !
पुष्पगुच्छ
आदान प्रदान से
अतीत छुपता नहीं है,
बस, आशा काे
पकड रखी हूँ,
सब मंगल हाे ।
