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वट सावित्री पूजा : वट वृक्ष त्रिमूर्ति का प्रतीक

काठमान्डू 6 जून

वट सावित्री पूजा  का सनातन धर्म में एक विशेष महत्व होता है.  ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को माताएं अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए विधि विधान से ये पूजा करतीं हैं.  वट सावित्री की पूजा की शुरुआत देवी सावित्री से ही हुई थी. जिन्होंने मृत्यु के देव यम से अपने पति के प्राणों की रक्षा की थी.  सावित्री ने अपने तपोबल से अपने मृत सुहाग को यमराज से वरदान लेकर उन्हें पुनर्जीवन प्रदान किया था.

बरगद का वृक्ष एक दीर्घजीवी विशाल वृक्ष है. इसलिए हिन्दू परंपरा में इसे पूज्य माना जाता है. प्राचीन काल में अलग अलग देवों से अलग अलग वृक्ष उत्पन्न हुए और उस समय यक्षों के राजा मणिभद्र से वटवृक्ष उत्पन्न हुआ. इसलिए वट वृक्ष त्रिमूर्ति का प्रतीक होता है. इसकी छाल में विष्णु,जड़ में ब्रह्मा और शाखाओं में शिवजी का वास माना जाता है. यह प्रकृति के सृजन का प्रतीक है. इसलिए वट सावित्री पूजा के दौरान माताएं इस वृक्ष की पूजा करतीं हैं. इस दौरान इसमें वे कच्चा मौली धागा भी बांधती हैं.

वटवृक्ष के नीचे ही सावित्री ने अपने पति को पुनर्जीवित किया था. तब से ये व्रत ‘वट सावित्री’ के नाम से भी जाना जाता है. वट सावित्री के व्रत पर सुहागिन महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान यमराज, के साथ साथ सावित्री और सत्यवान की पूजा करती हैं. बरगद के वृक्ष पर सूत के धागा लपेटकर अंखड सौभाग्य की कामना करती हैं.

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इसके साथ सत्यवान और सावित्री की कथा जुड़ी हुई है, जब सावित्री ने अपने संकल्प और श्रद्धा से, यमराज से अपने पति सत्यवान को जीवन दान दिलवाया था. इसलिए इस दिन महिलाएं भी संकल्प के साथ अपने पति की आयु और प्राण रक्षा के लिए इस दिन व्रत और संकल्प लेती हैं. इस व्रत को करने से सुखद और सम्पन्न दाम्पत्य का वरदान मिलता है. वटसावित्री का व्रत सम्पूर्ण परिवार को एक सूत्र में बांधे भी रखता है.

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व्रत का पूजा विधान.
प्रातःकाल स्नान करके, निर्जल रहकर इस पूजा का संकल्प लें. वट वृक्ष के नीचे सावित्री-सत्यवान और यमराज की मूर्ति स्थापित करें या मानसिक रूप से इनकी पूजा करें. वट वृक्ष की जड़ में जल डालें, फूल-धूप और मिष्ठान्न से वट वृक्ष की पूजा करें. कच्चा सूत लेकर वट वृक्ष की परिक्रमा करते जाएं और सूत तने में लपेटते जाएं. कम से कम 7 बार परिक्रमा करें. हाथ में भीगा चना लेकर सावित्री-सत्यवान की कथा सुनें. वट वृक्ष की कोंपल खाकर उपवास समाप्त करें. इस दिन सावित्री और सत्यवान की कथा सुनने की परंपरा है. ऐसी मान्यता है कि इस कथा सुनने से मनचाहा फल मिलता है.

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