संविधान संशोधन सिर्फ बहाना तो नहीं : अंशुकुमारी झा
अंशुकुमारी झा, हिमालिनी अंक अगस्त 024 । अभी हमारे देश में दो बड़े दलों ने मिलकर सरकार बनाई है । संविधान संशोधन की बात कहते हुए नेपाली कांग्रेस और नेकपा एमाले दो बड़ी पार्टी ने मध्य रात्रि में गठबन्धन कर देश चलाने की कसम खाई है । सही मायने में अगर संविधान पर विचार किया जाए तो उसमें संशोधन की अत्यधिक आवश्यकता है परन्तु ये दो बड़ी पार्टी मिलकर संविधान संशोधन करेगी ? यह सवाल हर जनता के मन मस्तिष्क में चल रहा है । संविधान राज्य का मूल कानून होता है जो सरकार का स्वरूप निर्धारण करता है । संविधान ही सरकारी शक्तियों का सीमांकन करता है और राज्य के काम कार्रवाई में वैधता प्रदान करता है । विश्व का कोई भी देश हो वो हमेशा यही चाहता है कि उस पर सिर्फ उसके देश का ही शासन चले । किसी अन्य देशों से वे शासित न हो । यही हर राष्ट्र का अपना सार्वभौम अधिकार भी होता है ।
संविधान राज्य संचालन के लिए मूल ढाँचा तो तैयार करता ही है साथ ही सिद्धांत की घोषणा भी करता है । इसी सिद्धांत से शासन और शासित बीच शक्ति सम्बन्ध को संतुलित रखा जाता है । राजनीतिक परिवर्तन तथा राजनीति में हुए उधल पुथल पश्चात संविधान में व्यापक संशोधन की आवश्यकता होती है या पुनः संविधान निर्माण की परिस्थिति भी आ सकती है । अभी जो हमारे पास संविधान उपलब्ध है वह हमें विक्रम संवत २०७२ आश्विन ३ गते को प्राप्त हुआ । माना जाता है कि उक्त संविधान जनता के प्रतिनिधि द्वारा पारित प्रथम संविधान है । परन्तु जिस दिन यह संविधान हमारे समक्ष प्रस्तुत किया गया उस दिन कई क्षेत्रों में काला दिवस भी मनाया गया । कहीं दीप जले तो कहीं अंधेरा रहा । जिससे स्पष्ट होता कि संविधान प्रत्येक नेपाली के लिए उपयुक्त नहीं है । अतः संविधान में संशोधन की सम्भावना आवश्यक है पर क्या यह नई सरकार इस कार्य को सिद्ध करेगी ? या खुद को सुरक्षित करने के लिए सब नाटक तो नहीं ?
नेपाली कांग्रेस और नेकपा एमाले बीच सत्ता सहकार्य के लिए सात बूंदों पर सहमति हुई है । जिसमें एक संविधान संशोधन का भी विषय है और यह विषय फिलहाल बहुत चर्चा में है । विडम्बना तो यह है कि उक्त सहमति में जिस दस्तावेज पर दोनों दलों की हस्ताक्षर हुई है, वह दस्तावेज अभी तक गोप्य ही रखा गया है । वैसे प्रधानमन्त्री ओली ने संसद में सहमति के सात बूंदों को वाचन कर के सुनाए हैं । अन्य बिंदुओं से ज्यादा संविधान संशोधन का बिन्दु जनमानस में खलबली मचा रखी है ।
नेपाल में १०३ वर्षों के जहानियाँ शासन के बाद तत्कालीन राणा प्रधानमन्त्री पद्मशमशेर जबरा ने पहला संविधान के रूप में वि.सं.२००४ १३ गते माघ को “नेपाल सरकार वैधानिक कानून २००४” जारी किया जिसे संविधान न कहकर वैधानिक कानून कहा गया । इस वैधानिक कानून में ६ भाग ६८ दफा १ अनुसूची को समेटा गया था । इसी प्रकार राणा शासन अंत होते ही “नेपालको अन्तरिम शासन विधान २००७” जारी किया गया । यह संविधान राजा, राणा और कांग्रेस के योगदान से बनाया गया था । इस संविधान में ७ भाग, ७३ धारा और १ अनुसूची था । इसे नेपाल के पहला ऐतिहासिक संविधान के रूप में लिया गया था क्योंकि २००४ में जो संविधान जारी किया गया था उसे वैधानिक कानून कहा गया था । पुनः विक्रम संवत् २०१५ फाल्गुन १ गते को राजा महेन्द्र ने “नेपाल अधिराज्यको संविधान २०१५” घोषणा कर दिया । उक्त संविधान में १० भाग ७७ धारा रखा गया और अनुसूची को हटा दिया गया । इस संविधान का औचित्य वि.सं.२०१७ पुस २२ गते एकदलीय पंचायती व्यवस्था घोषणा के साथ ही समाप्त हो गया ।
अब आया “नेपालको संविधान २०१९”, यह देश का चौथा संविधान बना । निर्दलीय पंचायती व्यवस्था, सक्रिय राजतन्त्र सहित व्यवस्था को स्वीकार इस संविधान की घोषणा की गई थी । २० भाग १७ धारा और ६ अनुसूची वाले संविधान एक सदनात्मक राष्ट्रीय पंचायती व्यवस्था से ओत प्रोत था । इसमें राजा के द्वारा ही संविधान संशोधन की व्यवस्था की गई थी और तीन बार संशोधन हुआ भी था । तत्पश्चात “नेपाल अधिराज्यको संविधान २०४७” आया । २०४६ साल के जन आंदोलन के परिणामस्वरूप ३० वर्षों के पंचायती व्यवस्था का अंत हुआ और राजा वीरेन्द्र द्वारा “नेपाल अधिराज्यको संविधान २०४७” की घोषणा की गई । इस संविधान में बहुदलीय व्यवस्था की विशेषता थी । २३ भाग १३३ धारा और ३ अनुसूची को रखकर इस संविधान का निर्माण किया गया । अब आया नेपालको अन्तरिम संविधान २०६३ । ढाई शताब्दी के बाद शाह वंशीय राजतंत्र का अंत हुआ राजाओं से सभी अधिकार ले लिया गया और २०६३ साल माघ १ गते को “नेपालको अन्तरिम संधिान” जारी किया गया । दिल्ली में तत्कालीन राजा और सात राजनीतिक दलों के बीच १२ बूंदें समझौता अनुसार १९ दिनों का दूसरे जनआन्दोलन के बाद राजा ज्ञानेन्द्र ने प्रतिनिधि सभा पुर्नस्थापित किया तथा शासन सत्ता दलों को सौंप दिया । २५ भाग १७६ धारा और ४ अनुसूची वाले संविधान में सार्वभौम सत्ता और राजकीय सत्ता नेपाली जनता में निहीत था ।
अब हम अभी के संविधान “नेपालको संविधान” के बारे में कुछ चर्चा करेंगे । नेपाल के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.रामवरण यादव द्वारा आश्विन ३ गते २०७२ साल में नेपालको संविधान जनता समक्ष प्रस्तुत किया गया । जिसमें ३५ भाग ३०८ धारा और ९ अनुसूची है । उक्त संविधान निर्माण में ६ वर्षों से अधिक समय लगा और अरबों रुपए खर्च किए गये । इस संविधान ने विधिवत रूप में राजतन्त्र का अन्त किया और संघीय लोकतान्त्रिक गणतन्त्रात्मक व्यवस्था लागू किया । यह संविधान नेपाल को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित करता है परन्तु अगर इसे पढा जाय तो हमें ज्ञात होगा कि इसमें सनातन धर्म की रक्षा करने की बात भी की गई है ।
स्पष्टतः नेपाल के संविधान का इतिहास अध्ययन के बाद यह कह सकते हैं कि जब बडे बडे राजाओं भी जनता के आगे समर्पण किये हैं तो यह नेताओं का क्या चलेगा । सदैव से जनता सर्वोपरी रही है और वह अपना अधिकार प्रेम से हो या आन्दोलन से लेकर ही रहती है । संविधान संशोधन पीडÞितों का एजेंडा है । मधेशी, आदिवासी जनजाति, दलित, मुस्लिम, थारू तथा अल्पसंख्यक समुदाय संविधान सभा से अपने अधिकार पाने की इच्छा रखते हैं । वही लोग २०७२ संविधान का संरक्षण करते हुए उसमें व्याप्त कमी कमजोरी पर ध्यान देते हुए संशोधन की अपेक्षा रखते हैं । परन्तु क्या पीडित वर्गों के लिए संशोधन होगा ? हम मानते हैं वर्तमान संविधान में बहुत सारी त्रुटियाँ है पर कुछ सही भी तो है, जिसका संरक्षण भी होना चाहिए । मधेश आन्दोलन, माओवादी जनयुद्ध तथा जनआन्दोलन से जो हमें उपलब्धि हुई है उसकी रक्षा होनी चाहिए । नौ वर्षों के दौरान जो हमें उक्त संविधान से कठिनाइयों का सामना करना पडा उस कमियों पर ध्यान देते हुए संशोधन की आवश्यकता है न कि संविधान परिवर्तन की ।
अब बात आती है कि फिलहाल जो सरकार बनी है वो अपना एजेंडा संविधान संशोधन पर अडिग रहेगी ? क्योंकि सरकार में आने से पहले नेता लोग बडे बडे वादे करते हैं, बडी बडी कसमें खाते हैं अंत में सबकुछ खा के चल देते हैं । भ्रष्टाचार और अनियमितता की कुछ घटनाएँ जनता को यह सोचने पर बाध्य कर देती है । विशेष रुप से शरणार्थी प्रकरण, सहकारी प्रकरण, ललिता निवास प्रकरण, सोना काण्ड इत्यादि घटनाओं का अगर हम सूक्ष्म विश्लेषण करते हैं तो प्रतीत होता है कि भ्रष्टाचार नियन्त्रण और सुशासन कायम करने वाली निकाय बहुत ही निरीह है । हम जानते हैं कि भ्रष्टाचार नेपाल की प्रगति तथा समृद्धि का बाधक है । हमारे देश में भ्रष्टाचार का जड इतना मजबूत हो गया है कि इसको उखाड फेंकना असम्भव है । इसलिए सबसे पहले प्रशासन को अपने कर्तव्य के बारे में पूर्ण ज्ञान होना बहुत आवश्यक है । तभी तो महामारी जैसे भ्रष्टाचार को निर्मूल कर पायेगा । प्रथम संविधान सभा राज्य पुनर्संरचना समिति बनी जिसके बहुमत सदस्य ने (१०+१) अर्थात् ११ प्रदेश का खाका सिफारिस किया परन्तु षड्यंत्र पूर्वक उस संविधान सभा का विघटन कर दिया गया ।
प्रथम संविधान सभा मे मधेशी, आदिवासी जनजाति, दलित, थारू, मुस्लिम इत्यादि जो मजबूत अवस्था में थे उसे कमजोर बनाया गया । दूसरे संविधान सभा में पुरानी राजनीतिक शक्ति कांग्रेस और एमाले ही शक्तिशाली बनकर उभरी । नेपाली जनता जो वर्षो से पहचान और सामर्थ्य के आधार पर राज्य पुनर्संरचना का सपना देख रही थी वह सपना सपना ही रह गया । पीछे का पन्ना उलटा कर जब देखते हैं तो लगता है जनता के हित में तो कभी काम ही नहीं हुआ है । बस गिने चुने ही अपना स्वार्थ पूर्ति हेतु जनता को गुमराह कर रखे हैं । हमें ज्ञात है कि जब से यह संविधान २०७२ लागू हुआ है तब से अर्थात् ९ वर्ष में ८ प्रधानमन्त्री बदल गया है । दूसरी बात यह कि एक ही व्यक्ति बार बार एक ही पद पर रहकर खुद को तिसमार खाँ समझ रहे है । इसके लिए भी कोई उपयुक्त नियम होना चाहिए । पदीय जिम्मेदारी से किसी का रेकर्ड बनाने से अच्छा काम को प्राथमिकता देना चाहिए जिससे देश का विकास हो सके । संविधान संशोधन होना तो स्वभाविक है पर जो भी हो जनता के हित में हो । जनता अब सब जानती है, चुप नहीं बैठेगी ।