बीते उस ज़माने का हम पे अब भी साया है, लोग अब भी कहते हैं, बेटी धन पराया है : इम्तियाज वफा
बेटियाँ पराई थीं, बेटियाँ पराई हैं
बेटियाँ पराई थीं, बेटियाँ पराई हैं
आज तक ज़माने का रंग ये नहीं बदला
बे-हिसी में जीने का ढंग ये नहीं बदला
बीते उस ज़माने का हम पे अब भी साया है
लोग अब भी कहते हैं, बेटी धन पराया है
ऐसे में नई कलियाँ क्यों चटकने आई हैं
बेटियाँ पराई थीं, बेटियाँ पराई हैं
बचपने के लम्हे भी छिन गए निगाहों से
कमसिनी में रिश्ते जो टूटे ख़्वाबगाहों से
ऐसे में नया रिश्ता कैसे वो निभाएँगी
नित नई मुसीबत को कैसे झेल पाएँगी
दास्तान-ए-ग़म लिखने फिर खिज़ाएँ आई हैं
बेटियाँ पराई थीं, बेटियाँ पराई हैं
इतने हादसों के बाद हम संभल नहीं पाए
छोटी सोच से आगे हम निकल नहीं पाए
हर गली मोहल्ले में रोज़ ही तमाशा है
ज़िंदगी तो आशा थी, फिर ये क्यों निराशा है
खुशियाँ बाँट कर भी वो ख़ून से नहाई हैं
बेटियाँ पराई थीं, बेटियाँ पराई हैं
