Fri. Apr 19th, 2024

मुरली मनोहर तिवारी:क्रन्तिकारी नेताजी, अपने भवन के चौथे मंजिल के, सातवें कमरे में, तीन फीट ऊँचे पलँग के, एक फीट मोटे गद्दे पर, करवटें बदल रहे थे । वे संघीयता की योजना से पीडि़त थे । साथ ही उनकी क्रन्तिकारी छवि धुमिल हो रही थी । उसे फिर से चमकाने के लिए नए गेटअप के लिए, अग्रगामी सोच रहे थे । कैसे राज्य बने, कि हम सदैव राज्य करते रहें । इन भूखे–नंगो को अधिकार देने की लिए इतना बड़ा जनयुद्ध तो नहीं रचा था । नेपाल में लिफ्ट से आकर नेता बनते हैं मैं लाशों को पायदान बना कर ऊपर आया हूँ । सारी योजना, खटाई में पड़ती दिख रही है । परेशान होकर उन्होंने लाल ग्रंथ निकाला और पढ़ने लगे ।

सोलर प्रकाश नीचे देखते हुए बोला, मैंने, इन हल्के विषयों पर कभी कलाकारी नहीं की । मैं तो प्रेम की छवि उतारता हूँ । अभी–अभी ’शीला की जवानी’ पर बनाई है, वह दे दूँ?’ नेताजी गरम होते–होते बच गए । बड़े संयम से मीठे स्वर में बोले, ’आज कल बलिदान त्याग, देश–प्रेम और गरीबों की दुर्दशा दिखाने का फैशन है । इन्हीं पर कलाकारी चाहिए ! तू कल शाम तक नेपाल में इन्ही भावोंवाली एक तस्वीर बना दे । मैं उन्हें राष्ट्र के काम में लानेवाला हूँ । ’ दूसरे दिन नेपाल के नक्शे पर मॉडर्न आर्ट का प्रदर्शन करते हुए, कुछ आड़ी–तिरछी लकीरें खींच कर थमा दी । नेताजी ने देखा तो हर्ष से उछल पड़े, ‘वाह बेटा, तूने तो इसमें महाकला का सार तत्व भर दिया है
पढ़ते–पढ़ते नेताजी खिल उठे । पुत्र को पुकारा । उनका पुत्र अभी–अभी हिमालय पर्वत के जंगल में मंगल करके लौटा है ।
‘सोलर प्रकाश’ ! जरा यहाँ तो आ ।’ ‘सोलर प्रकाश’ दोस्तों के साथ शराब पीकर अभी लौटा था । लड़खड़ाता हुआ आया ।
कामरेड ने पूछा, ‘क्यों रे, तू कलाकारी करता है न ?’ वह अकबका गया । डरा कि अब डाँट पड़ेगी ।
बोला, ‘नहीं ! मैंने बुरी लत छोड़ दी है ।’
कामरेड ने समझाया, ‘बेटा, डरो मत । सच बताओ । चित्रकारी तो अच्छी बात है ।’
सोलर प्रकाश की जान जो आधे रास्ते तक निकल गई थी, फिर लौट आई । कहने लगा, ‘पहले दस–पाँच बनाई थीं, पर लोगों ने मेरी प्रतिभा की उपेक्षा की । एक बार प्रदर्शनी में लोगों ने ‘हूट’ कर दिया । तब से मैंने नहीं बनाई ।’
नेताजी ने समझाया, ‘मेरे लाल, दुनिया हर ’जीनियस’ के साथ ऐसा ही सुलूक करती है । लोग तेरी गूढ़ कला समझ नहीं पाते होंगे । तू मुझे देशभक्ति और बलिदान के संबंध में कुछ बना के देना । ’
सोलर प्रकाश नीचे देखते हुए बोला, मैंने, इन हल्के विषयों पर कभी कलाकारी नहीं की । मैं तो प्रेम की छवि उतारता हूँ । अभी–अभी ’शीला की जवानी’ पर बनाई है, वह दे दूँ?’
नेताजी गरम होते–होते बच गए । बड़े संयम से मीठे स्वर में बोले, ’आज कल बलिदान त्याग, देश–प्रेम और गरीबों की दुर्दशा दिखाने का फैशन है । इन्हीं पर कलाकारी चाहिए ! तू कल शाम तक नेपाल में इन्ही भावोंवाली एक तस्वीर बना दे । मैं उन्हें राष्ट्र के काम में लानेवाला हूँ । ’
दूसरे दिन नेपाल के नक्शे पर मॉडर्न आर्ट का प्रदर्शन करते हुए, कुछ आड़ी–तिरछी लकीरें खींच कर थमा दी । नेताजी ने देखा तो हर्ष से उछल पड़े, ‘वाह बेटा, तूने तो इसमें महाकला का सार तत्व भर दिया है । वाह… गागर में सागर !’ ये मेरे सभी समस्या का समाधान है ।
रात में ही पÞmोन बजने लगे । अल्प समय में विजय दादा, बाबू भाई, मूसक बहादुर, सुशील सुपारी, खड़ग खतरा इकट्ठे हो गए । नेताजी ने पÞmोटो को ऐसे निकाला जैसे अल्लादीन के चिराग से खजाने का नक्शा निकाल लाए हो । सब आश्चयचकित ये क्या है ।
“ये जो राज्य बनेंगे उसका नक्शा है । इसे ‘सहभागिता विधि’ से बनाया गया है । दुनिया के बेहतरीन विश्लेषक, संश्लेशक ने इसे तैयार किया है । इसमें सब के हित का ख्याल रखते हुए, हमारी ७० पुश्ताें को राज करने का राज छुपा है । इसे बनवाने में करोड़ो खर्च हुए, सुशिल सुपारी जी वो देना होगा“ ।
सुशिल सुपारी – मैं तो दुनिया का सबसे गरीब आदमी हँु, मेरी सम्पति ही दो मोबाइल है, ऊपर से पीडि़त भी हँु, मेरे कमरे से मेरे अपने ही करोड़ो चुरा लेते है । आपको पैसे कहा से दूँ“ ।
मूसक बहादुर ने कान में समझाया – अपने जेब से देने को नहीं कह रहे है, भूकंप वाले में से दे दीजिए, नहीं तो फिर भूकंप आ जाएगा ।
बाबू भाई ने सवाल उठाया – मधेशी नेता मानेंगे क्या ?
खड़ग खतरा – मधेशी नेता ? तलवे चाटना हमसे सीखा, पूँछ हिलाना हमसे सीखा, काटना हमसे सीखा, भौंकना हमसे सीखा और सभी कुछ हमसे सीखकर फिर उनका दुरुपयोग किया ! मैंने अपने चारित्रिक गुणों का कम से कम कभी दुरुपयोग तो नहीं किया ! जिस पर गुर्राने के लिए कहा, मै उस पर गुर्राया, जिसे काटने के लिए कहा, उसे काटा और वह.. ! ’
बाबू भाई – अब वे भी राजनीति में ही है । वैसे भी राजनीति तो ऐसीे गंगा है, जिसमें उतरकर सभी दूध के धुले हो जाते है ! इसमें कोई भेद–भाव तो है नहीं –सब धान सत्ताईस सेर !
सोच–विचार करने के बाद सुशिल सुपारी बोले, मगर कुछ व्यवहारिक अड़चनें आएँगी, उनसे कैसे निपटेगा ?’’
कामरेड – कोई समस्या नहीं है ! थोड़ा विरोध और बंद के बाद सब सामान्य हो जायेगा’’ । शंका निवारण कर वाणी को विराम दिया और किसी के मुख से नई व्यवहारिक दिक्कत सुनने की प्रतीक्षा करने लगा ।
मूसक बहादुर – ये तो ठीक है, मगर इस देश में तो गरीब, अमीर, मध्यवर्गीय सभी तबके के जीव हैं । सभी का समर्थन कैसे प्राप्त करोगे“ ?
कामरेड – साफ तो है ! गरीब तबके को मैं शोषण से मुक्ति दिलाने की बात करूँगा । उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए समाजवाद का नारा बुलंद करूँगा । ’’
विजय दादा – ’’मगर, बरखुरदार ! पूँजीपतियों से क्या कहोगे? उनके बिना तो राजनीति नहीं चला करती ! ’’
क्रन्तिकारी नेता – ’’मैं जानता हूँ ! चार–पाँच साल में केवल वोट के लिए ही गरीब आम आदमी की आवश्यकता पड़ती है, किंतु अमीर से तो रोज–रोज कमरबंद घिसना है । अतः उनके कान में कहूँगा– तुम्हारे खिलाफ सर्वहारा संगठित हो रहे हैं, मैं उनसे तुम्हारी रक्षा करूँगा । जहाँ कहीं आवश्यकता होगी तुम्हारे हित में आवाज उठाऊँगा । और अगर सभी एक स्थान पर मिल गए, तो सर्वोदय का सिद्धांत जिंदाबाद ! सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय ! ..जैसा गाल वैसा तमाचा ! ’’
सुशिल सुपारी ने शंकायुक्त अंतिम प्रश्न किया – ’’ मधेशी, आदिवासी, दलित, जनजाति के नेता मुद्दा बना लेंगे और राजनीति की शुद्धता, शुचिता को आधार बनाकर इसका विरोध करेंगे । इस मुद्दे पर आम जनता भी उनके साथ हो जाएगी ! तब क्या करोगे?’’
कामरेड – ’’बेशक ! ..किंतु कोई फर्क नहीं पड़ता ! जिस प्रकार राजनीति में प्रवेश पा चुका प्रत्येक अपराधी राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ बोलता है । उसी प्रकार हम भी जहाँ आवश्यकता होगी राजनीति में एक दूसरे के खिलाफ खुलकर बोलेंगे और अपने साथियों से भी खिलाफत कराएंगे । मगर पतनाला तो वहीं गिरेगा जहाँ हम चाहेंगें ’’ ।
अन्त में विजय दादा और खड़ग खतरा, पूरब से और सुशिल सुपारी, मूसक बहादुर पश्चिम से , बाबू भाई उत्तर से संतुष्ट हुए ।
देश अभी रात के भय और स्तब्धता से मुक्त भी न हो पाया था कि आँख खुलते ही सभी संचारतंत्र को सम्मलेन की ओर गमन करते पाया । देश की आँखें फटी की फटी रह गई । सुबह–सुबह पत्रकारों का हुजूम लगा । धमला, हमला पर हमला कर रहे है । धन–क्रान्ति–उड तारीफ पर तारीफ लिख रहा है । धीरे–धीरे समूचा हाल पत्रकारों से भर गया था । भीड़ की तादाद देखकर चमचो ने नेताजी को सूचना दी । सूचना पाते ही सभी नेता अपने कारवां के साथ चारदीवारी में प्रवेश किया । उसने आज मलमल कर स्नान किया था । माथे पर तिलक सुसज्जित था और गले में पट्टा । जिंदाबाद के नारे गूँजने लगे ।
सब नेताओ ने अपने भाषण में सर्वहारा, अक्सरियत, दलित, समाजवाद, साम्यवाद, सामाजिक न्याय, सर्वजन हिताय–सर्वजन सुखाय और सर्वोदय जैसे राजनीतिक शब्दों का खुलकर इस्तेमाल किया । सर्वजन को उनके अधिकारों की रक्षा के प्रति आश्वस्त किया । उनमें से एक वयोवृद्ध को सम्मानित भी किया और उसकी मेहनत, ईमानदारी और वफादारी की चर्चा करते–करते सब अपने–अपने दल–बल सहित संबिधान सभा की ओर कूंच किया ।
और, देश….. देश, अतीत और वर्तमान को भुलाकर भविष्य की चिंता में डूब गया । क्योकि होनी और प्रारब्ध को कुछ और ही मंजूर था……





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