Tue. Apr 29th, 2025

संविधान किसी वर्ग विशेष का नहीं हो सकता

सम्पादकीय
राजधानी में जितनी तेज सर्द हवाएँ चल रही हैं, उतनी ही तेज सरगर्मी सत्ता की गलियारों में भी है । फर्क इतना है कि यह सरगर्मी देश को समस्याओं से मुक्त कराने के लिए या विकास की कोई रणनीति बनाने के लिए नहीं है, बल्कि एक बार फिर कुर्सी बचाने और आने वाले चुनावों के मद्देनजर जनता के बीच अपनी भूमिका तय करने के लिए है । क्या नियति है इस देश की, संविधान के नाम पर वर्षों रस्साकसी हुई किन्तु परिणाम शून्य और अचानक एक दिन अलादीन के चिराग से निकले जिन की तरह संविधान जनता की हाथों में आ गया । मसौदे को लेकर जनता के बीच सुझाव संकलन की औपचारिकता भी निभाई गई, यह और बात है कि यह मसौदा चंद लोगों के बीच गया और सुझावों का संकलन भी उन्हीं चंद लोगों में सिमट कर रह गया । पर गौरतलब यह है कि जिस अफरातफरी में संविधान लागु हुआ उसमें यह मुमकिन ही नहीं था कि, उन संकलित सुझावों को जारी संविधान में कोई स्थान मिले । खैर, ये तो बीते दिनों की बातें हुईं । किन्तु, आज एक और शगुफा संविधान के नाम पर किया जा रहा है, वह है जारी संविधान का प्रचार और प्रसार । यानि कहीं–ना–कहीं सरकार मान रही है कि जारी संविधान में वह ताव नहीं है कि, देश का हर वर्ग, हर क्षेत्र स्वयं उससे जुड़ सके या उन्हें तुष्ट कर सके । खैर, माना यह जा रहा है कि सरकार का यह निर्णय आगामी होने वाले चुनावों के मद्देनजर है । यानि एक बार फिर सरकार अपने आपको उन्हीं लोगों के बीच ले जा रही है, जिन्हें वो अपना समझ रही है । क्योंकि, देश का एक हिस्सा तो पूरी तरह से संविधान के विरोध में खड़ा है । आवश्यकता तो यह थी कि उस असंतुष्ट हिस्से को भी यह अहसास दिलाया जाय कि, यह संविधान किसी वर्ग का विशेष का नहीं बल्कि सम्पूर्ण नेपाली अवाम का है ।
दिन अपनी गति से गुजर रहा है किन्तु, नेपाली जनता की गति स्थिर है । हलचल है तो सिर्फ इस बात की कि, कहाँ और कैसे पेट्रोल, डीजल या गैस हासिल किया जाय । कालाबाजारी जोर–शोर से खुलेआम हो रही है । एक तरह से कालाबाजारी करने वालों को प्रश्रय ही प्राप्त है कि आप किसी भी कीमत पर जनता की माँग की आपूर्ति करें । किन्तु इसी बीच अनुगमन की तलवार एक बार फिर से जाने–माने लोगों के सर पर लटकने लगी है । एक ओर कालाबाजारी और दूसरी ओर भ्रष्टाचार पर तीक्ष्ण निगाहें । इन दो विपरीत धारों के बीच फँसी नेपाली जनता असमंजस की स्थिति में है और प्रतीक्षा में, कि सरकार कब किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचती है और उनके जीवन की गति सामान्य होती है ।
हिमालिनी का यह नया अंक स्थिति विशेष की वजह से सुधी पाठकों के समक्ष कुछ विलम्ब से जा रहा है । इसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं –
एक भयानक लड़ाई की शुरुआत के पहले
आँधी से उमड़ने वाला अंतद्र्वन्द्व
मेरी पीढ़ी के चेहरे पर साफ दिखता है ।
आग की नदी में स्नान करता भविष्य
मेरी पीढ़ी का भविष्य.(विजय विश्वास)shwetasign

About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.