देश अर्बों के घाटे झेल रहा है
नेपाल के जाने–माने उद्योगपति और हिमालय टेलिविजन पर प्रसारित होने वाले ‘आफ्नो नेपाल आफ्नो गौरव’ के निर्माता और प्रस्तुतकर्ता दयाराम अग्रवाल से कविता दास की बातचीत का सम्पादित अंश–
० तराई आन्दोलन को आप किस तरह से ले रहे हैं ?
– मेरे विचार से तराई का जो आन्दोलन अभी चल रहा है वह किसी हद तक सही है, पहाड़ और मधेस के बीच में जो टकराव है वो आज का नहीं, बहुत पहले से है, पहाड़ में रहनेवाले समझते हैं कि देश सिर्पm हमारा है और मधेस में रहनेवाले समझते हैं कि हम लोग हमेशा शोषित और दबे हुए हैं, यह उसी नाराजगी का परिणाम है ।

० यह आरोप लग रहा है कि आन्दोलन में भारत सहयोग कर रहा है, इसमें कितनी सत्यता है ?
– मेरे हिसाब से नेपाल का कोई भी आन्दोलन हुआ हो और मैंने जितना देखा और समझा है, भारत के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहयोग या समर्थन के बिना कभी भी सफल नहीं हुआ है और आज के दिन में जो मधेश में हो रहा है उसमें भी यदि कोई कहता है कि भारत का समर्थन नहीं है तो वो मैं मानने के लिए तैयार नहीं हूँ । समर्थन और सहयोग होना कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि किसी भी देश में कोई भी परिवर्तन या आन्दोलन हुआ है तो उसमें किसी ना किसी अन्य देश का सहयोग अवश्य रहा है किन्तु इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं होता कि यह आन्दोलन उसका है । मैं तो यह मानता हूँ कि इसके बिना कोई आन्दोलन सफल हो ही नहीं सकता है ।
० इससे नेपाल और भारत के सम्बन्ध पर कैसा असर पड़ेगा और इस समस्या का समाधान क्या होना चाहिये ?
– प्रभाव तो पड़ चुका है, पर यह देखना यह है कि यह असर कितनी दूर तक जाने वाला है । अब तो यह देखना है कि यह सम्बन्ध कितना बिगड़ता है और सरकार इसे कैसे सुधारती है या इसका क्या समाधान निकालती है । अभी जो मधेश में आन्दोलन हो रहा है और मांगे उनकी जो भी हैं उनमें जायज मांगों को जल्द से पूरा करने में सरकार को देरी नहीं करनी चहिये । संविधान लाने से पहले ही यह मांगे उठ रहीं थीं अगर उसी समय यह समाधान कर लेते तो यह जो स्थिति नहीं आती । देश इस कठिन दौर से नहीं गुजरता ।
० आप एक आर्थिक क्षेत्र के विज्ञ और एक सफल व्यवसायी भी हैं, आन्दोलन से आर्थिक क्षेत्र में कितनी क्षति हुई है ?
– इस साल ही हमलोगों ने पहली बार अपनी जिंदगी में इतना बड़ा भूकम्प देखा और आगे भगवान न करे फिर देखना पड़े, इस ने पहले से ही नेपाल की आर्थिंक व्यवस्था को चरमरा दिया था । नेपाल कई वर्ष पीछे जा चुका था और आज जो स्थिति है और जो नाकाबन्दी चल रहा है उसके कारण सारा व्यापार धरासायी हो चुका है । पिछले तीन महीने में जिस तरह से आर्थिक व्यवस्था कमजोर हुई है उसे सम्भलने और गति में आने में अब वर्षों लग जाएँगे । देश अर्बों के घाटे को रोज झेल रहा है । यह स्थिति तुरन्त सम्भलने वाली नहीं है ।
० आन्दोलन से जो क्षति हुई है उससे हम कैसे उबर पाएँगे और कितना समय लग सकता है ? इसमें निजी क्षेत्र और सरकार की क्या भूमिका हो सकती है ?
– अभी कि स्थिति में यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि करीब बीस से पच्चीस साल तक पीछे जा चुका है और इसे पूर्व स्थिति में आने में अगर ईमानदारी और लगन से काम किया जाय तो भी १० वर्षों से ज्यादा समय लग सकता है । सब से प्रमुख भूमिका तो सरकार की ही होनी चाहिए, पर यह भी जरुरी नहीं कि केवल सरकार ही चाहे और सब कुछ ठीक हो जाये ऐसा नहीं होता उसके साथ–साथ निजी क्षेत्र को भी साथ में चलना पड़ेगा, लेकिन अभी की आवश्यकता यह है कि जिस समस्या से देश गुजर रहा है, उसको अतिशीघ्र संबोधन करना सरकार का काम है, जब तक संबोधन नहीं होगा निजी क्षेत्र भी कुछ नहीं कर सकता । जब संबोधन होगा तब ही सब निजी क्षेत्र खुल के आगे आएँगे और सब साथ भी देंगे । इसमें कोई दो मत नहीं है । देश को आगे बढ़ाने में नेता और जनता दोनों का साथ और सहयोग आवश्यक होता है । मिलकर ही विकास सम्भव है लेकिन वर्तमान स्थिति से उबरने के लिए सरकार को तुरन्त पहल करनी होगी । नहीं तो स्थिति और अधिक बिगड़ सकती है ।
० नाकाबंदी के सम्बन्ध में आप क्या कहेंगे ? क्या यह भारत द्वारा किया गया है या मधेशी द्वारा ?
नाकाबंदी वाली जो बात है तो मै. यही कहूँगा कि दूसरे के उपर दोष डालना बहुत आसान काम है । हमारे घर की समस्या में पड़ोसी को बोल दें कि वह मेरे भाई से लड़ा रहा है, उस से अच्छा तरीका कुछ नहीं निकलता कि आप अपनी गलती दूसरे पर डाल दें । जहाँ तक नाकाबंदी की बात है नाकाबंदी किसको बोलेंगे एक तरफ आप को हवाई उड़ान से तेल चाहिए तो वो कलकत्ता से आ ही रहा है । अगर भारत सचमुच नाकाबन्दी करता तो आज जो गाडि़याँ सड़क पर दिख रही हैं वो नहीं दिखती । जहाँ अवरोध है वहाँ से कुछ नहीं आ रहा लेकिन और नाकाओं से तो आ ही रहा है ऐसे में यह कहना कि भारत ने नाकाबन्दी की है सही नहीं है । जहाँ तक तेल की बात है या किसी भी अन्य सामान की भारत से आपूर्ति की बात है तो हम सब जानते हैं कि ७०५ आपूर्ति रक्सौल बीरगंज से होता है और यह आपूर्ति रक्सौल बॉर्डर पर विशेष तेल आपूर्ति के लिए बने डिपो से होता है । जो मैत्री पुल से करीब ५०० किलो मीटर की दूरी पर है और हम सभी जानते हैं कि मैत्री पुल पर आन्दोलनकारियों ने कब्जा किया हुआ है ऐसे में आपूर्ति कैसे सम्भव है । इस कठिनाई को तो हमारी सरकार ही दूर कर सकती है और इसके लिए आवश्यक है कि मधेश को जल्द से जल्द सम्बोधित करे । समाधान तत्काल ही सम्भव हो जाएगा । परेशानी घर में है और हम दोष किसी और पर दे रहे हैं यह उचित नहीं है ।
० आपका बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने हिमालिनी को अपना बहुमूल्य समय दिया ।
– मुझे यह अवसर देने के लिए आपका भी आभार ।