Thu. Mar 28th, 2024

त्रिभुवन सिंह
नेपाल की राजनीति में सदियों से खसवादियों की चाल सत्ता के लिए बहुत स्वार्थपूर्ण रही है । ये भी फूट डालो और राज करो की नीति पर ही चलते आ रहअ‍े हैं । सदियों से मधेशी आदिवासी, दलित ये सब तो बलि का बकरा बने हुए हैं । नेपाल में न इनकी अपनी पहचान है ना अपना इतिहास है । सदियाें से ये लोग नेपाली शासक के गुलाम रहे हैं । इस बार तो ओली सरकार ने हद कर दी है इतने लम्बे आन्दोलन को पहले तो सम्बोधन नहीं किया और अब मधेश आन्दोलन के सम्बोधन हेतु पहला संविधान सशोधन और बाद में उच्च स्तरीय राजनीतिक संयत्र गठन किया गया है । वास्तव में ये संविधान संशोधन और उच्चस्तरीय संयत्र गठन करके भारत को चकमा देना खसवादियों की नीति है । मधेशी आदिवासी जनजाति आदि पिछडे वर्ग की माँग को सम्बोधन करना होता तो जब संविधान मसौदा तैयार किया तब से ही आन्दोलनरत पक्ष को समावेशी करना चाहिए था । पर ऐसा नहीं किया गया इससे यह साफ होता है कि ये सरकार आन्दोलनरत समुदाय को बायपास और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को दिखाने के लिए ये संविधान संशोधन और उच्च स्तरीय संयत्र का गठन किया गया । संविधान में मधेशी आदि जनजाति के साथ एक पीडि़त समुदाय के अधिकार को छीनने की कोशिश की गई ।
इस खसवादी सरकार ने तो संविधान जारी होने से पहले ही जनता को मारना शुरु कर दिया था जिसने कठिन परिस्थिति को पैदा किया । अब मधेशी जनजाति दलित आदिवासी को फिर से सहमति में लाना प्रमुख चुनौती है । जिस संयत्र का गठन हुआ उसे मधेशी दल के साथ बातचीत कर के इनकी सहभागिता में बनानी चाहिए थी । किन्तु ऐसा नहीं हुआ । मधेश केन्द्रीत दल के साथ जब वार्ता चल रही थी, उस अवस्था में उपप्रधानमंत्री कमल थापा के संयोजकत्व में एक तरफी ढंग से संयत्र निर्माण किया गया । अगर सरकार उच्च स्तरीय संयत्र बनाने के समय में मधेशी आदिवासी जनजातियों को समेट कर संयत्र निर्माण किया होता तो विवाद नहीं होता । खास कर के खसवादियों ने ये संयत्र प्रम, केपी ओली की भारत भ्रमण की सहजता के लिए बनाया था । प्रम भारत भ्रमण करने के लिए बहुत पहले से ही अप्रत्यक्ष रुप से कोशिश कर रहे थे । देश में नया संविधान की वैधानिकता के उपर सवाल उठ रहा है । मधेशी मुस्लिम आदिवासी सबको किनारे रख कर लाए गए संविधान की वैधानिकता के उपर आन्तरिक और बाह्य चुनौती आज भी खड़ी है । नेपाल के संविधान बनने के समय से ही एक अच्छे पड़ोसी की भूमिका का निर्वाह करना भारत के लिए भी चुनौतीपूर्ण सवाल था । भारत नेपाल के दलों को समय समय पर सुझाव देता रहा कि विभिन्न समुदाय वर्ग जो समस्या भोग रहे थे उसे भी नए संविधान में सम्बोधित किया जाय । हर एक देशवासी अपनत्व महसूस करे ये भारत की सोच थी । पर नया संविधान में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे भारत असंतुष्ट रहा और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय भी अपने विचार असंतुष्ट भाषा में व्यक्त कर चुके हैं । संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इसी तरह से बात की ।
मधेश आन्दोलन और चौतरफी दवाब के कारण बड़े दल ने इस संविधान को संस्थागत करने के लिए संशोधन की बात की पर इस संशोधन ने मधेश की जनता की भावना को आत्मसात नहीं किया । अन्रराष्ट्रीय समुदाय खास कर भारत को दिखाने के लिए संविधान संशोधन किया गया । संविधान संशोधन से आदिवासी दलित मधेशी की मांग कितनी सम्बोधित हुई ? राज्य के हर निकाय में मधेशी आदिवासी जनजाति दलित समुदाय का अधिकार इस संविधान संशोधन से छीन लिया गया है । अन्तरिम संविधान की धारा २१ में जो समानुपातिक शब्द है वो संशोधन में हटा दिया है जिसके कारण न्यायपालिका लगायत और निकाय में नब्बे प्रतिशत आर्यखस समुदाय का वर्चस्व होगा । राज्य के हर निकाय में समानुपातिक नहीं हुआ । समावेशी समानुपातिक का राज्य के हर निकाय में स्पष्ट उल्लेख नहीं होता है तो इसका कोई अर्थ नहीं होता है । अभी किए गए संविधान संशोधन का कोई अर्थ ही नहीं है । क्योंकि समानुपातिक समावेशी राज्य के हर अंग और निकाय में होना चाहिए ये बात अन्तरिम संविधान में था किन्तु जब पिछले आठ साल में कोई अच्छा नतीजा नहीं आया था तो, अभी तो वो भी छीन लिया है तो अब क्या होगा ? २ नम्बर प्रदेश के अलावा बाकी प्रदेश में खसआर्य समुदाय के वर्चस्व के ही हिसाब से सीमांकन किया गया है । सीमांकन जनसंख्या के हिसाब से स्वायतत्ता और स्वशासन देकर मिला सकता है । मधेश को पहाड़ से और पहाड़ को मधेश से जोड़ने वाली जो सीमांकन है उसमें सिर्फ पहाड़ी समुदाय का वर्चस्व होगा । मधेशी अल्पसंख्यक होंगे ।
अब बात आती है राष्ट्रीय अखण्डता पर खतरा और विखण्डनकारी सोच की । अगर हम दुनिया के इतिहास को देखें तो उपनिवेशवादियों को विखण्डन का डर दिखा कर उपनिवेश में पड़ी जनता का वर्षों तक शोषण किया गया है । नेपाल का भी यही उदाहरण है । उपनिवेशवादियों को राष्ट्रीयता की बात उठाकर उपनिवेश में पडेÞ लोगों में भ्रम पैदा करता है । ये बात नेपाली शोषक खसवादियाें भली भाँति जानते हैं । जिसदिन स्वायत्तत और स्वशाषण होगा उस दिन मधेश की जनता स्वशासित होगी अपने लिए खुद शासन करेगी । इस बात से खसवादियों को ये महसूस हो रहा है कि हमारी चलखेल और शासन समाप्त हो जाएगी । वास्तव में आज जो संघीयता लाई गइ है वो तो संघीयता है ही नहीं । अभी की जो संघीयता है उसमें सारा वर्चस्व केन्द्र का ही है । नेपाल में जो भी क्रांति हुई है उससे कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है । किसी भी क्रांति के बाद नई शासन व्यवस्था और नए शासक आते है ं। दक्षिण अफ्रिका और भारत में भी नई व्यवस्था नए शासक आए पर नेपाल में ऐसा नहीं हुआ । २००७ साल से अभी तक जो जाति पहले सत्ता और शासक थे, वही लोग आज भी हैं और उन्हीं के हाथों में वर्षों से देश की सत्ता का कमान है । इसका मतलब नेपाल आन्तरिक उपनिवेश में जकडा हुआ है । ये आन्तरिक उपनिवेश से मुक्ति पाने के लिए उपनिवेश में फंसी जनता को एकजुट होकर उपनिवेश के विरुद्ध आन्दोलन करने की जरुरत है ।



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