रोबर्ट पेन्नर के साहस से भी मधेशी मोर्चा को कोई सन्देश नहीं : कैलाश महतो
कैलाश महतो , पराशी, ५ मई |
सम्भवत: भोल्टेयर ने कहा था, ” हे भगवान्, मुझे मेरे अपनों से सुरक्षित रखना, गैरों से मैं खुद निपट लूँगा ।” मधेश आन्दोलन के नेत्रित्व कर रहे मधेशी मोर्चा ने सैकडों मधेशियों को नेपाली राज्य द्वारा हत्या करवाकर उसी राज्य के सहयोग करने तथा उसके सरकार में सामेल होने का रङ्गमंच तैयार कर रहा है । ६ महीनों तक लगातार मधेश बन्द के नाम पर मधेश को लुटा अौर दो तरफ के व्यापारी तथा तस्करों के साथ मिलकर अरबों कमाने बाले मधेशी मोर्चा अब सरकार में बडे चालाकीपूर्ण तरीके से सरकार में सामेल होकर सत्ता में दस्तखत कर मधेशियों को उल्लु बनाने के जाल बुन रही है ।
देश के स्वाभिमान अौर राष्ट्रिय अखण्डता के नाम पर २०४८ सेे २०६५ के प्रचण्ड सरकार से लेकर अोली तक ने उसी मुद्दा पर सरकार बनायी । लेकिन किसी भी सरकार ने न अपने राष्ट्र के स्वाभिमान को उठा सका अौर न राष्ट्रिय अखण्डता को कयम रख पाने की कोई योजना ला पायी । वैसे भी जिसे नेपाली शासक राष्ट्र समझते हैं, वह है ही नहीं । क्यूँकि राष्ट्र तो वह आकाश गंगा होता है जिसमें सैकडों हजारों तारें, ग्रह अौर उपग्रह मौजुद होते हैं । वे सारे एक दुसरे को दु:ख, कष्ट अौर विभेद पहुँचाये बगैर अपने अपने अस्तित्व के साथ जीवन निर्वाह करते हैं ।
नेपाल तो वास्तव में बन्दरों का एक अस्थायी घर है जहाँ न तो वह अपने चैन से रह सकता न किसी अौर को सकुन से रहने देना चाहता है । उसके राष्ट्र, राष्ट्रीयता अौर राष्ट्रवाद इतने कमजोर है कि उसके घोसले के भितर से या बाहर से कोई चिडिया चहक भी दे तो उसके राष्ट्र अौर राष्ट्रीयता धरमराने लगती है ।
दुनियाँ के कुछ राष्ट्र अपने तथाकथित राष्ट्रों को बचाने के खातिर कुछ काल्पनिक या देखावटी दुशमनों को निर्माण कर लेते हैं । भारत ने एक भारत के मान्यता को बरकरार रखने के लिए पाकिस्तान को अौर पाकिस्तान के राष्ट्र अौर राष्ट्रवाद को कायम रखने के किए भारत को शत्रु मान लिए हैं जिससे न पाकिस्तान के न तो भारत के अाम जनता को कुछ लेना देना है । अगर कोई लाभ की बात है तो वह केवल अौर केवल वहाँ के शासकों का है जो अाम जनता के भावनाअों को गोली, बन्दुक अौर मिसाइलों के शिकार बनाते हैं ।
वही हालात नेपाल अौर नेपाली शासकों का है जो फिजुल मे भारत को एक काल्पनिक शत्रु मान बैठे हैं । हकिकत तो यह है कि एक नेपाल के मान्यता को कायम रखने के लिए नेपाली शासक अपने एकल नश्लीय सोंच को अन्य नेपाली तथा गैर-नेपालियों के मन मे नेपालित्व तथा नेपाली राष्ट्रवाद का अन्धविश्वास की लहरें पैदा करके भारत विरुद्ध का अभियान चलाना ही नेपाली राष्ट्रवाद का प्रतिक मानते आ रहे हैं । इससे न भारत को कुछ बिगरने बाला है न नेपाल को छप्पर फाड का कोई विकासीय फायदा होने बाला है सिवाय राष्ट्रवाद के नशे में अन्य गैर नेपाली, जैसे; तामाङ्ग, लिम्बु, कोचे, मेचे, नेवार, राई, शेर्पा, मगर अादियों को नेपाली कहकर उन्हें नेपाली होने के शासनिक अौर प्रशासनिक सम्पूर्ण फायदों से अलग थलग रखने के ।
मैनें फोरम नेपाल छोडने का फैसला भी इसलिए किया था कि मैंने उसके मुखिया के अहंकार, क्षेत्रवाद, जातिवाद, छलकपट, दुर्भावना, कमिशनखोरी, घुसखोरी, नियतखोरी, बेइमानी, मधेशद्रोही, शहीदद्रोही चरित्र को बहुत करीब से देखा । सद्भावना (महतो) को मैंने नापसन्द किया क्यूँकि उसके मुखिया सिर्फ मधेशियों को न सिर्फ शारीरिक, मानसिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा अवसरीय रुपों मे शोषण की, अपितु मंचों पर पाखण्डीपूर्ण क्रान्तिकारी भाषण “अगर मधेश को मधेश प्रान्त नहीं मिला तो मधेश एक अलग देश बनेगा ” बाला भाषण तब बन्द हो जाता है जब वही मुद्दा धरातल पर अा जता है । उतना ही नहीं, उसके अभियानकर्ता को भी गिरफ्तार करबाने तथा जेल भेजबाने में पर्दे के पिछे से अहम् भूमिका निर्वाह करते हैं ।
अाज फिर मधेशियों को अपने घिनौने चरित्र से वाकिफ करबाने जा रहे हैं । उस शेर बहादुर देउवा के अामन्त्रण को स्वीकार तथा इस प्रचण्ड के सहयोग में अोली के सरकार के विरुद्ध खडे होने जा रहे हैं जिन्होंने कसम खायी है कि थरुहट मधेश के नाम पर पश्चिम मधेश के एक इञ्च भी जमीन वो नहीं दे सकते । जनयुद्ध काल से शासनकाल तक मधेशियों को धोखा देने बाले प्रचण्ड को प्रधानमन्त्री बनाने के लिए मैदान में इस तरह उतरने की अाभास दे रहे हैं मानों वे बहुत बडा जङ्ग जितने जा रहे हों । जिस संविधान का वे विरोध कर रहे हैं, उसको उन्होंने सुशिल कोइराला को प्रधानमन्त्री बनाते समय स्वीकार कर चुके बातों को वे क्यूँ नहीं याद करते ?
क्या कल्ह देउवा या प्रचण्ड ही प्रधानमन्त्री बन जाये तो केपी अोली के स्वीक्रिति बिना संविधान में कोई संसोधन या उसे पूनर्लेखन कर पाने की हयसियत है या रहेगी मधेशी मोर्चा की ? क्या वही प्रचण्ड या देउवा एमाले के सहमति बिना मधेशियों को कुछ भी दिलाने का अौकात रख सकता है ? क्या मधेश अान्दोलन में सिर्फ अोली ने ही गोली चलायी ? सुशिल ने नहीं चलायी ?
यह अब तय हो चुका है कि मधेशी मोर्चा का राजनीतिक कोई धर्म नहीं है सिवाय मधेश अान्दोलन के पौष्टिक अाहार खाकर जवान होना, सुन्दर युवती सी दिखना, शहीदों के शहादतभरी खूनों से श्रिंगारित होकर जवानी के मस्तानी में मटक मटक कर चलना, नेपाली शासन के पैसे बाले हैवान लोगों को अपने इठलाती जवानी के ओर अाकर्षित कर उन्हें अपना ग्राहक बनाना अौर उनके सत्ता के सेज में हमबिस्तर होकर मधेशियत को बेचकर वेशयाव्रिति कर पैसे कमाने के अलावा दुसरा अौर क्या दिलायेंगे मधेश अौर मधेशियों को ?
एक तरफ एक क्यानेडियन नागरिक रोबर्ट पेन्नर जिन्होंने अपने नौकरी के अलावा मानव अधिकार के उलंघन से मधेश तथा विश्व समेत को चुनौती दे रही नेपाली शासन के खिलाफ बौद्धिक आन्दोलन चला रहे हैं । उनके अान्दोलन से त्रसित नेपाली शासन उन्हें गिरफ्तार करती है, दो दिन के भितर नेपाल छोडने को चुनौती देती है अौर उन सारे नेपाल सरकार के तानाशाही रबैयों के विरुद्ध वे सर्वोच्च अदालत जाते हैं, वहाँ भी सुनवाई नही होने पर नेपाल को बाई बाई करके स्वदेश चले गये | वहीं मधेशी मोर्चा एक तरफ उनके पक्ष में नारेबाजी करती है तो दुसरी तरफ वे सरकार में जाने की बेहुदा रणनीति तैयार करने में मसगुल है ।
अब देखना यह है कि उस रोबर्ट पेन्नर के चेतना अौर साहस के सामने कौन नेपाली शासक टिक पाती है अौर मधेशी मोर्चा सत्ता के लिए कितने हद तक गिर पाती है अौर मधेश अान्दोलन को कहाँ, कैसे अौर कितने में बेच पाती है ।