नया शक्ति कितनी नई ? डा.मुकेश झा
डा.मुकेश झा, जनकपुर,१४ जून |
इतिहास निर्माण के क्रम में रहे नेपाल की राजनीति में उथल पुथल तो होना ही था परंतु इस कदर होगी और इतने लंबे समय तक होगी यह शायद किसी ने नही सोचा। एक रक्त रंजीत घटनाक्रम से गुजरते हुए आधुनिक युग मे प्रवेश की घड़ी में भी हालात जहाँ था वहीँ है। विश्व मानचित्र में दो बड़े देशों के बीच रहा नेपाल एक तरफ जहाँ जनक , सीता, बुद्ध आदि को जन्म देने का गौरव को प्राप्त है वहीँ दूसरे तरफ जंगबहादुर, राजा महेन्द्र प्रचन्ड और बाबुराम जैसे क्रूर आतताई को जन्म देने का दुर्भाग्य से श्रापित है।
ज्यादा नही, कुछ ही समय अर्थात प्रजातंत्र स्थापना आंदोलन, संवैधानिक राजतन्त्र से ले कर गणतन्त्र प्राप्ति तक की ही अवस्था को देखा जाए तो देश की हालात जितनी जर्जर उसका अनुमान लगाना मुश्किल है ऊपर से पिछले साल के भूकम्प और नेपाल के संविधान में हुए विभेद के कारण नेपाल की जो आर्थिक दुर्दशा हुई उसका तो गणना ही क्या १
परन्तु नेपाल के सत्ता में रहे, विपक्ष में रहे, सत्ता छोड़े या आन्दोलनरत हरेक पार्टी और नेताओं को देश और जनता का जैसे कोई फ़िक्र ही नही हो इसी तरह की वर्ताव हो रही है। सत्ता में रहे एमाले, विपक्ष में रहे कांग्रेस, माओबादी और सत्ता छोड़कर नया शक्ति घोषणा किये डॉ बाबुराम भट्टराई हरेक का यही हाल है।
सत्ता का अर्थ मौज मस्ती करना, भ्रष्टाचार करना, विदेश घूमना और अपने नाते रिश्तेदारों को उच्च तह पर स्थापित करने के अलावा और कुछ नही कुछ नही यही बन कर रह गया है। इसके अलावा जो वास्तविक मुद्दा है, जो आंतरिक द्वन्द है, जिसका समाधान होना जरुरी है उसपर आँख मूंदकर सपनो के संसार में जीने का बहाना बनाकर मुद्दा भूलने और भुलाने के प्रयास में सब लगे हुए हैं।
इस बीच सपना देखने और दिखाने का होड़ सा चल पड़ा है। वर्तमान में नेपाल के पास दो बड़े स्वप्न द्रष्टा पैदा हुए हैं, एक नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली और दूसरे माओबादी के संस्थापक, तत्कालीन नेपाल सरकार द्वारा आतंककारी घोषित, पूर्व अर्थ तथा पूर्व प्रधानमंत्री डॉ बाबुराम भट्टराई जी। इन दोनों स्वप्न द्रष्टा में कुछ भिन्नताएं है तो कुछ समानताएं भी। समानताएं ऐसी है कि दोनों ही कम्युनिष्ट विचारधारा के व्यक्तित्व हैं, दोनों देश के प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए हैं, दोनों ने हत्याएँ भी की है, कम ज्यादा की बात अलग है।
इनमे से अगर हम डॉ बाबुराम भट्टराई जी की बात लें तो उनका सपना बहुत पुराना है और उसी को पूरा करने के लिए वे जनआन्दोलन के नाम पर देश को १२ साल तक बर्बाद करते रहे, खुलेआम हिंसा , कत्ल और लूट मचाते रहे। परंतु सत्ता का स्वाद चखने के बाद एकाएक उनको आत्मज्ञान प्राप्त हुवा कि माओबाद के सिद्धान्त अनुरूप देश का विकाश नहीं हो सकता, मेरा सपना साकार नही हो सकता तो उन्होंने माओबादी पार्टी त्यागने का निश्चय किया और पार्टी त्याग दी। सब को पता है कि नव घोषित नेपाल के संविधान में बहुत सी त्रुटियाँ है और भट्टराई जी को भी अवश्य ही मालूम था परन्तु द्वन्द प्रिय भट्टराई जी ने पुनः देश को द्वन्द के दलदल में धकेलते हुए संविधान की घोषणा कीया जिसके फल स्वरुप नेपालको एक बहुत ही पीड़क दौर से गुजरना पड़ रहा है। उस काले दिन को एक साल होने को आ रहे हैं जिस दिन संविधान घोषणा हुवा था, जिसने नेपाल को स्पष्ट रूप से मधेस और पहाड़ दो भागों में विभक्त कर के रख दिया।
भट्टराई जी के पीएचडी की डिग्री का मान रखते हुए लोगों ने उनपर भरोषा और विश्वास किया था। अब फिर भट्टराई जी ने उसी डिग्री को आगे रख कर नया शक्ति पार्टी की स्थापना किया है तथा जो सपना उन्होंने माओबादी के स्थापनाकाल में बांटे थे उसी का नवीकरण किया है। पार्टी घोषणा में आम जनता से लिया गया करोड़ों रुपया प्रचार प्रसार, विज्ञापन में खर्च कीया और घोषणा किया कि देश की वर्तमान जरूरत आर्थिक विकाश का है, अगर नया शक्ति २५ साल राज करे तो नेपाल विश्व का सबसे अमीर देश बनेगा। उनको शायद इतना मालूम होना चाहिये की उन्नति के लिए सर्व प्रथम शांति की जरूरत होती है। एक तरफ तो स्वयं उन्होंने विभेदी संविधान के मार्फत द्वन्द का विजरोपन किया और दूसरे तरफ न जाने क्या क्या सपने दिखा रहे हैं। जिस संविधान ने अपने ही जनता को अपना नहीं माना, जिस देश ने किसी खास समुदाय और किसी खास भूगोल को ही हमेशा महत्व दिया उसकी उन्नति होना मुश्किल ही नहीं असम्भव सा दीखता है जबतक की अंतर्द्वन्द की सारी कड़वाहटें समाप्त न हो जाए।
भट्टराई जी के सोच से और भी महान् सोच रखने वाले और सपना देखने वाले हैं नेपाल के वर्तमान प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली जी। हालाँकि उन्होंने भी पीएचडी की डिग्री प्राप्त किया है परंतु वह मानार्थ है। उन्होंने नेपाल में क्या क्या होगा यह भी स्पष्ट किया है लेकिन कैसे होगा यह नहीं कहा। उनका सपना ूनेपाल अपना रकेट चन्द्रमा पर भेजेगाू है। बुलेट ट्रेन, ग्यास का पाइप, पेट्रोल का निर्यात, पानी जहाज, मेट्रो रेल, इत्यादि तो है ही। परन्तु उनका कार्य देखें तो भूकम्प पीड़ित के लिए दातृ राष्ट्र द्वारा दिए गए राहत सामग्री तक पहुचाने में उनका सरकार नाकाम रही। उनकी सपना बाबुराम के सपना से दो कदम आगे है क्यों की उनकी वास्तविक शैक्षिक स्तर बाबुराम भट्टराई जी से कम है।
बात जो भी हो या जो भी करे, जैसा भी करे, अभी के सत्ता में रहे सभी दल और डॉ बाबुराम भट्टराई जी दोनों की चाहत यही है की देश का जो वर्तमान मुद्दा है उससे जनता का ध्यान हटे, और विकाश का नारा ूअधिकारू के नारे से जोड़दार हो कर उभरे एवम् अधिकार के आवाज को सदा सदा के लिए समाप्त कर दे। परन्तु अब जनता जाग चुकी है और अपना अधिकार प्राप्त न होने तक किसी का भी किसी भी प्रकार के झांसे में नहीं आने वाली।