नारी का अस्तित्व और उसका सम्मान ” नारी भी इंसान है ” :मनीषा गुप्ता
नारी नर से कहीं ज्यादा बुद्धिमान है । क्योंकि यह सच है की वो पुरुष से कम जानती है व् अधिक समझती है । इसी लिए महान विद्वानों ने जो की स्वयं पुरुष हैं । ने हर सफल व्यक्ति के पीछे किसी नारी का हाथ अवश्य बताया है ।
” नारी कहीं कमजोर नहीं वो एक ऐसी शक्ति है
अपनी पर जब आ जाए वो ब्रहम्माण्ड हिला सकती है ।”
नारी को अगर सकल सृष्टि की जननी कहा जाए तो अनुचित नहीं होगा । नारी तो महान है । वह अपने गुणों से सबको मोह लेती है , अपने सौंदर्य से तृप्ति देती है और लाजवंती होने से वो देवी स्वरूपा हो जाती है ।
नारी सिर्फ तन से ही नहीं अपितु मन से भी कोमल फूल के सामान होती है । नारी कोमल है ।उस पर विश्चास करो ।
यह हकीकत है की नारी पुरुष से कमजोर है क्योंकि उसमें पाशविक ताकत नहीं किन्तु अगर ताकत के मायने नैतिकता से हैं तो निः संदेह इस ताकत में कई गुना आगे है नारी ।
नारी नर से कहीं ज्यादा बुद्धिमान है । क्योंकि यह सच है की वो पुरुष से कम जानती है व् अधिक समझती है । इसी लिए महान विद्वानों ने जो की स्वयं पुरुष हैं । ने हर सफल व्यक्ति के पीछे किसी नारी का हाथ अवश्य बताया है ।
यह समाज पुरुष प्रधान है इस समाज में रह कर अपने सारे कर्तव्यो को वक्त के साथ पूरा करने एवं अपना सब कुछ त्याग के हवन कुण्ड में स्वाहा करने के बाद भी इस पाप के युग में नारी की स्थिति दयनीय है ।
चाहे हमारा देश कितना भी प्रगतिशील हो गया हो महिलाएं चाहे कितनी भी आगे निकल गई हों पर महिलाओं की दुर्दशा उनका शोषण आज भी हो रहा है आज भी उन पर अत्त्याचार हो रहे हैं। ऐसी ही समाज में महिलाएं अपने अंदर की प्रतिभा को समाज के बंधन और भय के दबाब से ग्रस्त हो कर अपने सुकोमल मन में जन्मी प्रतिभा का गला स्वयं घोट देती है । उसकी प्रतिभा पर न तो उसको प्रोत्साहित किया जाता है और न ही उनको अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका दिया जाता है ।
” नारी मन कुछ सवाल पूछना चाहता है ”
क्या नारी , नारी होने से पूर्व इंसान नहीं है ? क्या नारी में भावनाएँ , इच्छाए जज़्बात नहीं ? क्या वो सारी जिंदगी चार दीवारों में कैद सुबह से शाम तक मशीन की तरह चलती रहे और रात को सुबक कर इस लिए सो जाए ताकि सुबह फिर मशीन की भांति चल सके ? माना नारी मन स्नेह की मूर्ति है नारी शब्द अपने आप में त्याग , ममता और स्नेह से परिपूर्ण है । सेवा करना उसका फ़र्ज़ है पर क्या इसका मतलब वो खुद के लिए जीना भूल जाए ? क्या वो सिवाय कष्टो और दुःखों के कुछ पाने की अधिकारी नहीं ?
ये समस्त प्रश्न वाचक चिन्ह सिर्फ कागज़ पर नहीं वरन सम्पूर्ण नारी समाज पर लगे हैं जिसका जबाब हर नारी जानना चाहती है । वह इतनी बंदिशों से आजाद हो खुली हवा में सांस लेना चाहती है । लेकिन ऐसा हो नहीं पाया बचपन से उसको बता दिया जाता है की जिस घर में तुमने जनम लिया चलना सीखा वो तुम्हारा नहीं परया है । यहाँ तक की जिस माँ ने नौ महीने कोख में रखा वो भी एक दिन गैर हो जाएगी ।
जब लड़की विवाह जैसे पाकिज़ बंधन में बंध बाबुल का घर छोड़ती है तो उस वख़्त उसके ही जन्म दाता कहते है की एक बात ध्यान रखना बाबुल के घर से डोली उठती है ससुराल से अर्थी ही निकलती है । फिर चाहे वो दो दिन की जलाई गई कमसिन दुल्हन हो या जीवन पर्यन्त खुद को साबित करती निरीह नारी । क्यों नहीं वो यह साबित कर पाती की वो भी एक इंसान है उसमे भी साँसे है , धड़कन है , वो भी सांस लेना चाहती है खुली हवा में वो भी दुसरो की तरह जीने का हक़ रखती है । वह सिर्फ और सिर्फ अपना अस्तित्व , अपनी आजादी , अपना हक़ चाहती है जो किसी भी दृष्टि कोण से नाजायज नहीं