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मुकेश झा , जनकपुर, २५ अक्टूबर |



नेपाल संविधान घोषणा होते ही आक्रोशित और आन्दोलित मधेसी का आक्रोश और आंदोलन अभी भी जारी है। नेपाली सत्ता द्वारा समय समय पर मधेसीओं के साथ तरह तरह के बुंदागत सहमतियां हुई परन्तु सब को लात मारकर नेपाली सत्ता साझेदार एमाले, कांग्रेस और माओबादी बारी बारी से सत्ता का लुत्फ़ उठा रहा है।

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ऐसा हो भी क्यों नहीं, जब नेपाल में सत्ता पक्ष द्वारा किया गया किसी भी ससमति का कोई क़ानूनी मान्यता या बध्यात्मक्ता जो नही है। इसी लिए शक्तिधारी पार्टियां वैसे सहमतियों को क्यों मानें। इसीलिये हर बार की तरह इस बार भी मधेसीओं का नेतृत्व कर रही मधेसी मोर्चा के साथ की गई तीन बुँदे सहमति जिसके तहत प्रचण्ड प्रधानमन्त्री बनें उसको कचरे की डब्बे में फेंकने को तैयार हैं। प्रधानमंत्री बनने से पहले प्रचण्ड जी की यह प्रतिबद्धता थी की प्रधानमंत्री बनते ही पहले संसद के बैठक में संसोधन का प्रस्ताव लाया जाएगा और इसी शर्त पर मधेसी पार्टियों ने उन्हें सत्ता से बाहर रहकर समर्थन दिया। परन्तु जैसा उन्होंने कहा था वैसा नहीं हुवा और उनका बदला हुवा बक्तव्य आया कि संविधान संसोधन कर के ही भारत भ्रमण को जाएंगे। जब भारत भ्रमण का समय थोड़ा नजदीक आया तो पुनः उनका वक्तव्य बदला और और उन्होंने कहा संविधान संसोधन के लिए संसद में दर्ता करने के बाद ही वह भारत भ्रमण को जाएंगे। परन्तु फिर उनके कहे अनुसार नहीं हुवा और उन्होंने फिर अपनी बात बदली एवम् कहा कि भारत भ्रमण से लौटते ही संविधान संसोधन की प्रकृया की जायेगी। सारा दुनियाँ साक्षी है की प्रचण्ड जी के भारत भ्रमण से लौटने के बाद भी संविधान संसोधन के प्रकृया का एक अक्षर भी कार्य नहीं हुवा। इसके बाद पुनः उन्होंने अपने वक्तव्य बदला और नया वक्तव्य दिया कि दशमी तक किसी भी हाल में संसोधन करेंगे ही और कुछ समय बाद पुनः उस बात को पलटते हुवे गोवा सम्मलेन से वापस आने के बाद संसोधन प्रस्ताव दर्ता की बात कही। जब गोवा सम्मलेन समाप्त हुवा तो फिर उनका समय सीमा बढ़ा और दीवाली होते हुए छठ तक पहुंचा। अब छठ आनेको है परन्तु नेपाली राजनीति में एक अलग नाटक मंचन होने लगा, नेपाल अख्तियार दुरूपयोग अनुसन्धान आयोग के प्रमुख लोकमान सिंह कार्की को महाअभियोग लगाने का। सारा संसद और पार्टियां संविधान संसोधन जो की देश के लिए सबसे महत्वपुर्ण मुद्दा है उसको छोड़कर लोकमान सिंह कार्की के पीछे लगे हैं।



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