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छठ पर्व 2017, छठ व्रत कथा और विधि : आचार्य राधाकान्त शास्त्री

छठ पर्व 2017 :-
भगवान सूर्यदेव के प्रति भक्तों के अटल आस्था का अनूठा पर्व छठ कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। इस साल छठ पर्व मंगलवार 24 अक्टूबर से शुक्रवार 27 अक्टूबर, 2017 तक मनाया जाएगा।
नहाय खाय :- 24 अक्टूबर मंगलवार को,
खरना :- 25 अक्टूबर बुधवार को,
डाला छठ 26 अक्टूबर गुरुवार को सायं अर्घ्य :-
4 :50 से 5 :20 तक
एवं
पारणा :- 27 अक्टूबर शुक्रवार को प्रातः अर्घ्य :- 6:16 से देकर महाव्रत का पारणा किया जाएगा ।
मार्कण्डेय पुराण में छठ पर्व के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।

छठ व्रत कथा :-

दिवाली के ठीक छह दिन बाद मनाए जानेवाले इस महाव्रत की सबसे कठिन और साधकों हेतु सबसे महत्त्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्टी की होती है, जिस कारण हिन्दुओं के इस परम पवित्र व्रत का नाम छठ पड़ा। चार दिनों तक मनाया जानेवाला सूर्योपासना का यह अनुपम महापर्व बहुत ही धूमधाम और हर्सोल्लास पूर्वक मनाया जाता है।

यूं तो सद्भावना और उपासना के इस पर्व के सन्दर्भ में कई कथाएं प्रचलित हैं, किन्तु पौराणिक शास्त्रों के अनुसार जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए, तब द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा, फलस्वरूप पांडवों को अपना राजपाट मिल गया।

छठ व्रत विधि :-

कथानुसार षष्ठी देवी भगवान सूर्यदेव की मान्य धर्म बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भक्तगण भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए गंगा-यमुना या किसी नदी या पोखरा, जलाशय के किनारे इस पूजा को मनाते हैं। यदि कोई जलाशय भी न मिले तो एक बड़े जलपात्र ( टब) में जल भर कर गंगाजल डाल कर गंगा जी का आवाहन कर के उसके पास व्रत करें एवं उसी में खड़ा होकर दूध से अर्घ्य दें,

इस पर्व में पहले दिन घर की साफ सफाई कर पवित्रता पूर्वक शुद्ध शाकाहारी भोजन किया जाता है, दूसरे दिन खरना का कार्यक्रम होता है, जिसमे दिन भर निर्जला उपवास पूर्वक सायं काल मे पवित्रता से आम के लकड़ी और मिट्टी के चूल्हा या पवित्र चूल्हा पर खीर पूड़ी (रसियाव रोटी) बनाकर षष्ठी माता को अर्पित कर नैवेद्य प्रसाद ग्रहण किया जाता है ।
वृद्ध एवं रोगी भक्त फलाहार या जल रस लेकर भी व्रत कर सकते हैं,
तीसरे दिन भी निर्जला उपवास पूर्वक भगवान सूर्य को संध्या अर्घ्य दिया जाता है और रात्रि जागरण पूर्वक निर्जला उपवास करते हुवे, रात्रि में कौशिकी माता की पूजा अर्चना कर ब्रह्मबेला से ही माता जी की पूजा करते हुवे चौथे दिन भक्त उदियमान सूर्य को उषा अर्घ्य देते हैं। मान्यता है कि यदि कोई इस महाव्रत को निष्ठां और विधिपूर्वक या रोग युक्त भक्त जल रस के पान पूर्वक भी संपन्न करता है तो माता जी निःसंतानों को संतान की प्राप्ति, रोगीयों को आरोग्यता प्राप्ति, दुःखियों को सुख की प्राप्ति एवं समस्त भक्तों को सभी प्रकार के दुखों और पापों से मुक्ति प्रदान करती है, जब तक हो सके तब तक व्रत करें एवं जब शरीर साथ न दे तब परिवार या किसी और को व्रत संकल्प नियम दिला कर इस व्रत के अर्घ्य को उसे दे दें, जिसको यह व्रत लेना हो उसे भी सभी व्रत नियम को नहाय खाय के दिन से धारण कर व्रती के साथ साथ सभी पवित्रता एवं पूजन में सम्मिलित होते हुवे व्रती के हाँथ से अर्घ्य को लेकर स्वयं अर्घ्य देकर व्रत आरम्भ कर देना होता है ।
षष्ठी माता एवं भगवान भास्कर सभी भक्तों व सभी छठ व्रतियों की सभी मनोकामना को पुर्ण करें,
सबको उत्तम आयु आरोग्यता संतति संतान प्रदान करें ,
आचार्य राधाकान्त शास्त्री ।



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