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बीरगंज को राजधानी बनाने की कवायद शुरू : मुरलीमनोहर तिवारी

मुरलीमनोहर तिवारी (सिपु} प्रदेश न.२ की राजधानी बीरगंज को ही बनाने के लिए पूर्व सांसद एवम एमाले नेता राजकुमार गुप्ता ने जोड़दार माँग किया है। नेता गुप्ता ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करके नव निर्वाचित सांसद, बिधायक,सरकार, राजीनीति दल और समाज के विभिन्न तबका से आग्रह किया है। इसी प्रकार पूर्व सांसद एवम कांग्रेस के नेता सुरेंद्र चौधरी ने बिरगंज को राजधानी नही बनाने पर आंदोलन करने की चेतावनी दी। इसके जबाब में सांसद हरिनारायण रौनियार ने सुरेंद्र चौधरी को बीरगंज में आंदोलन करने से पहले बालुवाटार में देउबा के पास आंदोलन करके दिखाने की चुनौती दिया।
आर.जे. दीपेंदर साह ने उपेन्द्र यादव और राजेंद्र महतो पर अपशब्द प्रयोग करते हुए लिखते है अगर बिरगंज में राजधानी वा मुख्यमन्त्री, पर्सा को नही मिलेगा तो वे बिरोध करेंगे।
पत्रकार बिन्दु भूषण साह लिखते है, बिरगंज में २ नम्बर प्रदेश का राजधानी नहीं हुआ तो सबसे ज्यादा दोष कांग्रेस और बाम गठबन्धन का होगा, क्योकि राजधानी कायम करने का अधिकार  केन्द्रिय सरकार के पास है। आम मधेशी जनता फिर इन दो पार्टी के बिरोध में उतरेगा, न कि मधेशी दल के खिलाफ। राजधानी के लिए फेसबुक में भौंकने से कुछ नही होने वाला। पार्टी के कार्यकर्ता को अपने पार्टी अध्यक्ष को दवाब देना पड़ेगा, नहीं तो लड़ाने वाला काम करना बंद करना होगा।  क्योंकि सरकार कांग्रेस या बाम का बनने वाला है।
पंकज दास चुटकी लेते हुए लिखते है,
 “बैठे बैठे क्या करोगे करना है कुछ काम,
शुरू करो झगडा लेकर राजधानी का नाम।”
अधिवक्ता  एवम समाजसेवी सुरेंदर कुर्मी लिखते है।
१. मधेश आन्दोलन का एक ही जनादेश था, आत्म निर्णय के अधिकार सहित समग्र मधेश एक स्वायत प्रदेश जो आज भी मधेशी जनता २२ ज़िला को ही मधेश मानती है । काग्रेस-एमाले-माओबादी-फोरम-राजपा सभी दल यह स्वीकार चुकी है । यदि २२ ज़िला मधेश है, और कल पुरा मधेश के एक साथ देखना चाहते है, तो राजपा और फोरम के अध्यक्ष को बिना बहस बीरगंज को राजधानी घोषणा कर देना चाहिए, क्योकी २२जिला का मध्य भाग बिरगॅज है ।
२. प्रदेश के राजधानी का पुर्बाधार महानगरपालीका होता है और बीरगंज महानगरपालीका है ।
३.मधेश आन्दोलन मे जब पुरब-पश्चिम सो रहा था, तब भी बारा पर्सा के जनता मितेरी पुल पर जाग रहा था ।
४. बिधान सभा और मन्त्रालय लगायत सभी कार्यालय के भवन के लिए प्रयाप्त भुमी बीरगंज मे है ।
५. राजपा और फोरम यानी मधेशी दल को सब से अधिक सिट बारा-पर्सा ने दिया है यानी मधेशबादी का वर्चस्व बीरगंज मे है तो राजधानी का हक बीरगंज को बनता है ।
६. प्रथम मधेश आन्दोलन से ही बार बार फोरम अध्यक्ष उपेन्द्र यादव, जय प्रकाश गुप्ता और राजपा अध्यक्ष राजेन्द्र महतो अपने भाषण के दौरान कई बार बीरगंज को राजधानी बनाने का ऐलान कर चुके है । चुकी ऐ तिनो नेता भोजपुरी भाषी और बारा पर्सा वासी नही है, इनका भाषा मैथली है और जन्म भुमी और कर्म भुमी मिथला है पर इनको अधिक मान सम्मान और साथ बारा पर्सा मे मिला है, ऐसे अवस्था मे बारा पर्सा के भोजपुरीया समाज से धोखा नही देना चाहिए, इसके लिए भी बीरगंज राजधानी होना चाहिए।
७. प्रदेश २ को ही स्वीकार के अपना सभी मुदा छोड देना हो तो प्रदेश का नाम मीथीला और राजधानी जनकपुर १००% उचीत है, यदि प्रदेश का नाम मधेश रखना है और पुरे मधेश को भबिष्य मे एक साथ जोडना है तो बीरगंज का कोई बिकल्प नही है ।
प्रदेश के राजधानी के बिषय में निजी क्षेत्र का धारणा क्या है ? बीरगंज उधोग बाणिज्य संघ के पूर्व अध्यक्ष, बीरगंज महानगरपालिका के सद्भावना दूत अशोक वैध कहते है, पहला तो राजधानी निर्धारण करके निर्वाचन कराना चाहिए था, लेकिन सरकार ने चुनाव करा दिया, इस प्रकार हरेक बात में सरकार द्वारा अधूरा निर्णय करने से बिवाद होता है। इसी कारण सातो प्रदेश में केंद्र बनाकर नया शहर में राजधानी बनाना उचित होगा। नया बनने वाला शहर पर्यावरण के हिसाब से स्वच्क्ष, सुविधासंपन्न होगा। राजधानी बनने वाले स्थान पर चिल्ड्रेन पार्क, अस्पताल, खेल मैदान, नमूना सिटी बनेगा, रोजगारी का अवसर मिलेगा। प्रदेश २ के लिए नया शहर के लिए सर्लाही के नवलपुर के आसपास प्रयाप्त ज़मीन उपलब्ध है। जनकपुर और बीरगंज में से ही चुनना हो तो, बीरगंज ही सबसे उपयुक्त है।
मिथिला-भोजपुरी-जनकपुर-बीरगंज की लड़ाई से आहत होकर श्वेता दीप्ती लिखती है,”जय मिथिला, जय मैथिली के नारे जोरशोर से लगने लगे हैं। क्या २ नम्बर प्रदेश में सिर्फ मैथिली भाषी हैं ? क्या अवधी, भोजपुरी और थारू जैसे कई भाषा भाषी यहां नहीं रहते हैं ? भाषा, संस्कृति की दुहाई देकर विवाद उत्पन्न न करें। एक धर्म स्थल की अपनी महत्ता और मर्यादा है। राजधानी बनने के लिये जिस भौतिक अवधारणा की आवश्यकता है, अगर उस कसौटी पर जनकपुर खरा उतरता है तो यही सही, पर हम इस बात से भी असहमत नही हो सकते कि व्यवसायिक और औद्योगिक दृष्टिकोण से जो महत्ता बिरगज की है वो जनकपुर की नही है, पर ये सारी बातें विज्ञ तय करेंगे। हम आप भाषा और संस्कृति के नाम पर विष तो न फैलाएं। ये वो संवेदनशील भावना है, जिसने द्वंद ही पैदा किया है। मानस की रचना कर तुलसीदास ने समन्वयवाद की स्थापना की थी, इसलिए जय मैथिली और जय मिथिला कह कर दूसरों को आहत न करें । वो शब्द लेकर चलें जो विवाद नही एकता पैदा करे। किसी को बुरा लगा हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ।”

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