Fri. Mar 29th, 2024

सशस्त्र युद्ध से शांति प्रक्रिया में आई राजनीतिक  के कारण माओवादी में राजनीतिक, वैचारिक व नीतिगत समस्या विद्यमान है । उसकी राजनीतिक दिशाहीनता से ही माओवादी यह समस्या झेल रही है । उसकी राजनीतिक दिशाहीनता से ही माओवादी यह समस्या झेल रही है । अभी शान्ति प्रक्रिया से स्थापित करने का प्रयास के लिए माओवादी ने अपने कार्यकर्ताओं को बंदूक नहीं थमाया हे लेकिन हिंसा की अनिवार्यता दिखाते हुए अपनाई गई राजनीतिक विचार व्यवस्थापन किए बिना शान्ति प्रक्रिया शुरु हो गई । माओवादी ने अभी हिंसा के विचार को त्याग नहीं किया है । लेकिन इसी बीच माओवादी न सिर्फशान्ति प्रक्रिया में आई बल्कि चुनाव जीतकर सबसे बडी पार्टर्ीीे रूप में स्थापित भी हो गई । स्वाभाविक रूप से दो में से कौन सा रास्ता चुनना है, इस निष्कर्षपर माओवादी पहुँच गया है । यही कारण है उनके आन्तरिक जीवन का प्रभाव इससे पडÞ रहा है । संसद की चुनाव में भी सहयागी होने, सबसे बडी पार्टर्ीीोकर सरकार भी चलाने, व्रि्रोह के मार्फ राज्य सत्ता पर कब्जा करने की नीति भी नहीं छोडने, इस तरह से दो-दो रास्तों पर माओवादी चलता आया ।
राजनीतिक रूप से तय किए जाने वाले रास्तों को विचार के आधार पर निर्देशित होता है लेकिन हिंसा का विचार स्थगित कर ही माओवादी अध्यक्ष प्रचण्ड सीधे बालुवाटार -प्रधानमन्त्री निवास) में प्रवेश कर गए । कुछ सांसदों को मन्त्री बनाया । जिस राजनैतिक, वैचारिक प्रतिष्ठापन में हिंसात्मक युद्ध की शुरुआत की गई थी वो राजनीतिक स्कुलिंग से गाइडेड कार्यकर्ताओं के इससे संतृष्ट होने का सवाल ही पैदा नहीं होता है । अभी कम से कम कार्यनीति के प्रश्न पर माओवादी को अपनी नीति स्पष्ट करनी चाहिए । माओवादी के भीतर शान्ति संविधान को पूरा करने के बजाए युद्ध की रणनीति को हथियार के रूप में इस्तेमाल किए जाने का विचार हावी हो रहा है । इसलिए माओवादी के भीतर अन्तरविरोध बहुत बढÞ गया है ।
माओवादी के भीतर समस्या यह है कि हिंसा की अनिवार्यता को उसने अपना मार्गदर्शक बनाया हुआ है । इसका असर समाज पर नहीं राजनीतिक रूप से भी दिखाई देता है । पार्टर्ीीे भीतर भी सत्ता हासिल करने के लिए माओवादी अपने ही लोगों के खिलाफ वैचारिक रूप से आक्रमण छोडÞकर भौतिक आक्रमण करने लगे हैं । पार्टर्ीीे नारा व व्यवहार के बीच के इसी विरोधाभास के कारण माओवादी का आन्तरिक जीवन अन्य पार्टर्ीीी तुलना में प्रभावित हुआ है । इसी कारण माओवादी ने अपने ही पार्टर्ीीे भीतर दुश्मन का एजेण्ट देखने की बात हावी है । उग्रवामपंथी का रास्ता प्रयोग कर आर्जन की गई शक्ति का ह्रास भी होते जा रहा है ।
-लेखक नेकपा एमाले के सचिव हैं ।)





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