कैसे लाएँ जीवन में खुशियां ?
आमतौर पर लोग नहीं जानते कि खुशी क्या है ? ढ़ेर सारे जैसे ऐशो–आराम होते हुए भी आज लोग खुश नहीं हैं, जबकि जिनके पास ज्यादा कुछ नहीं होता फिर भी वे खुश रहते हें । सच्चाई तो यह है कि खुशी कहीं नहीं, बल्कि हमारे अन्दर हर समय मौजूद रहती है, जिसे हम देख नहीं सकते पर महसूस कर सकते हैं । वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने खुशी के उस रहस्य को सुलझा लिया है? जो हमेशा से मनुष्य को परेशान करता आ रहा था । यह रहस्य जटिल नहीं बल्कि बहुत सरल है । लोग यह समझते हैं कि खुशी का मतलब है– सच्चा प्यार, ढेर सारी दौलत फिर बढि़या सी नौकरी, लेकिन वैज्ञानिक के अनुसार खुशी का एक फार्मुला (सूत्र है, पीईएच ।
इसमें ‘पी’ का मतलवब– पर्सनल कैरेक्टरस्ट्रिक अर्थात् इंसान को व्यक्तिगत लक्षण, जिनमे शामिल हैं– इंसान का जीवन के प्रति रवैया और विभिन्न परिस्थितियों में स्वयम् को सन्तुलित रखने की क्षमता । ‘ई’ का मतलब है– एग्जिस्टेंस यानि अस्तित्व, जो हमारी सेहत आर्थिक स्थिति और हमारे मित्रों– सम्बन्धियों से जुड़ा हुआ है । ‘एच’ का मतलब है– हायर आर्डर नीड्स अर्थात् आत्मसम्मान, दूसरों के लिए स्वयं की आवश्यकताओं को उत्सर्ग करने की आकांक्षा इत्यादि । इस तरह तीन अक्षरों से मिलकर बना यह खुशी का फार्मुला है, जिसे मनोवैज्ञानिकों ने शोध के उपरान्त तैयार किया है ।
एक मनोवैज्ञानिक पीट कोहेन के अनुसार ज्यादातर लोग यह नहीं जानते कि खुशी क्या है ? वे समझते हैं कि खुशी मिलती है बहुत सारे पैसे से, बडेÞ से घर या बढि़या मकान से, लेकिन वास्तव में सच यह है कि कई लोगों के पास यह सब कुछ होते हुए भी खुशी नहीं है, चेहरे पर चमक नहीं है । जबकि बहुत से लोग इन सबके बिना भी बहुत खुश है और जिन्दगी का भरपूर सुख उठाते रहते हैं ।
कोहन के अनुसार वे लोग दुखी रहने में सबसे आगे है, जो नकारात्मक चीजो पर अधिक ध्यान देते हैं, जैसे जीवन में क्या–क्या गलत है या उन्हें क्या–क्या अभी तक नहीं मिल पाया । इसके विपरित वे लोग कम से कम में भी सुखी हैं, जिन्हें जो कुछ भी मिला है, वे उसी से सन्तुष्ट है । मनोवैज्ञानिकों के अनुसार नकारात्मक तत्व हमारे जीवन में दुःख, असन्तोष एवं अशान्ति का संचार करते है, जबकि सकारात्मक तत्व हमें आन्तरिक खुशी, सन्तोष एवं शान्ति देते है ।
खुशी बजार में मिलनेवाली कोई वस्तु नहीं है, जिसे पैसे देकर खरीदा जा सके । इसका कोई आकार नहीं होता और नहीं इसे चुराया जा सकता है, खुशी छोटी या बड़ी नहीं होती और न ही यह बड़ी चीजों को हासिल करने से बनी रहती है । यह तो जिन्दगी की छोटी–छोटी चीजों में मिलती रहती । बस हमे इन्हें दखने तथा समझने का तरीका नहीं ।
‘ए न्यू अर्थ’ के लेखक एकहार्ट का कहना है कि जिन्हें जीवन की बड़ी खुशी समझा जाता है, जैसे नयी कार खरीदना, अच्छी नौकरी हासिल करना, पराक्रम बढ़ाना आदि । एक तो ये जीवन में बहुत कम आती है और दूसरा इन्हें महत्व देकर हम स्वयं को भुला देते हें और स्वयं से दूर हो जाते हैं, जबकि जीवन में आनेवाली छोटी–छोटी खुशियां ही जीवन का आधार होता है और जीवन में रोजाना भारी मात्रा में आती है, लेकिन हम अपने नकारात्मक दृष्टिकोण के कारण उन्हे देख नहीं पाते और नहीं पर्याप्त महत्व देते हें । इसलिए न हम वर्तमान में खुश रह पाते हैं और नहीं भविष्य को सुखद कर पाते हैं । इसका कारण यह भी हैं कि जो हमें मिला है, वह कम है और सदा दुखी रहने को अपना स्वभाव बना देते हें । खुशी तो देने की चीज है, जिसे जितना बाँटो, वह उतनी बढ़ती है । यह जितना चाहो, उतनी मिल सकती है । बस हमे केवल इसे देखने एवं समझने का नजरिया बदलने की आवश्यकता है ।
इस एक उपाय से मुझे लगता है कि हम सदा स्वयं से प्रेम करें । जब हम स्वयं को चाहते हैं, पसन्द करते हैं, तब ही दूसरों से प्रेम कर पाने में और इन्हें आत्मीयता दे पाने में समर्थ हो पाते हैं । जो स्वयमं से असन्तुष्ट होते हैं और सदा अपने व्यक्तित्व में कमियों देखते हैं, उनके आत्मविश्वास में कमी बनी रहती है और दूसरे को भी प्रोत्साहन नहीं कर पाते, उनकी अपनी असुरक्षा इन्हे दूसरे को भी संरक्षण और सुरक्षा देने में नाकामयाब बना देती है ।
परमात्मा ने हर मनुष्य को कोई न कोई खास गुण दिया है, जिसे हम पहचाने, खोजे और निखारने का प्रयास करे । हर व्यक्ति अपने आप में विलक्षण एवं खास है और परमात्मा ने उसके जैसा दुनिया में किसी दूसरे को नहीं बनाया है । इसलिए यदि हम यही दृष्टिकोण रखकर अपने व्यक्तित्व की विशेषताओं पर ध्यान देते हुए उनके विकसित करने का प्रयास करे तो शनैःशनैः व्यक्तित्व ऐसी अनगिनत विशेषताओं से परिपूर्ण हो जाता है । अपनी विशेषताओं पर ध्यान देने का मतलब (अर्थ) दूसरे को व्यक्तित्व में कमियां निकालना या दूसरों से अपनी तुलना करना नहीं है । इसका अर्थ मात्र अपने जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना और उसे उसी अनुरुप विकसित करना है ।
कुछ व्यक्तियों के मन में यह हीन भावना होती है कि वे सुन्दर नहीं है । यह सच है कि सुन्दर बन जाना व्यक्ति के हाथ में नहीं होता, लेकिन अपने अन्तरमन को श्रेष्ठ बनाया जा सकता है । वो अवश्य सम्भव है और इसके लिए हमें यथासम्भव प्रयास करना चाहिए । नियमित स्वाध्याय, सत्संग, पीडि़तों की सेवा, सुनी एवं पढ़ी गयी अच्छी बातों पर चिन्तन, मनन एवं उन्हें जीवन में उतारने के लिए किए गए प्रयत्न ही वे सब माध्यम है, जो–जो मनुष्य को सुखी बनाते है ।
महापुरुषों का कथन है– अपनी नकारात्मक सोच से मुक्ति पाने के लिए सकारात्मक सोच को अपनाना जरुरी है । और इसे अपनाने के लिए जरुरी है कि हम न केवल दिए गए उपायों को अपनी सोच में सम्मिलित कर वरन उनका निरन्तर प्रयोग भी करें, तभी व्यक्तित्व में स्थायी परिवर्तन ला पाना सम्भव होगा, जो हमारे सुख को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगा ।