वक्त की बात : गिरीश चन्द्र लाल
सही काम करने वाले समझते हैं,
उन्हें सब अच्छा ही कहेंगे ।
समझना कुछ बुरा नहीं,
पर हर वक्त ऐसा नहीं होता ।
ऐसी बातों में वक्त की सूई
कभी टेढी–मेढी और कभी,
उल्टी भी चला करती है ।
लोग कभी दूर से देखते हैं,
कभी पास से देखते हैं ।
कभी अपने लिए देखते हैं,
कभी अपनो के लिए देखते हैं ।
कभी अपनों को सब में देखते हैं,
देखते–देखते कभी सब में अपने और
कभी सब अपने हीं नजर आते हैं ।
कभी वक्त हमारा साथ देता है ।
कभी हम वक्त के साथ चलते हैं,
कभी होती है वक्त को पहचानने की बात,
तो कभी नहीं पहचानने का मलाल होता है ।
वक्त तो हर पल चलता रहता है,
हर पल हम नहीं हो पाते उसके,
और उसका हर पल हमारा नहीं होता ।
जिन्दगी हमारी सासों मे है,
हर एहसास है हमारी जिन्दगी ।
हमने माँगा नहीं, हमने माना है इसे,
कभी हम गाते हैं इसे,
कभी हम सुनते हैं इसे ।
कभी रहती है यह हमारे साथ–साथ और
कभी यह फगत परछांई नजर आती है ।
जिÞन्दगी गाने की चीजÞ है,
इसे गाते हुए चलो ।
कभी आते हैं आँसू,
उसे पीते हुए चलो ।
हर जीने वालों को साथ–साथ जीना है,
इसे हम सब को समझाते हुए चलो ।