तल्ख उनके लफ्ज तरस ना खाने लगे, इसलिए खुद को पत्थर बनाते रहे हम : रश्मि
रश्मि
जमाने की नजर ना लगे
इसलिए आंखों में काजल लगाते रहे हम
आंसुओं को जब्त सीने में ही
नजरों से बचा कर जीते रहे हम
कालिख से खुद को रंग ना दें
इसलिए काजल का बांध सजाते रहे हम
नासूर बन चुका खारा आँसू
फिर भी उसे सीने में छुपाते रहे हम
जमाना ना हंस दे
इसलिए खुद को हंसाते रहे हम
तल्ख उनके लफ्ज तरस ना खाने लगे
इसलिए खुद को पत्थर बनाते रहे हम।