वर्तमान सरकार नेपाल–भारत सम्बन्ध काे तोड़ने में लगा हैः सांसद् साह
लिलानाथ गाैतम/काठमांडू, २८ दिसम्बर ।
राष्ट्रीय जनता पार्टी के नेता तथा सांसद् प्रमोद साह ने कहा है कि वर्तमान सरकार नेपाल–भारत सम्बन्ध को तोड़ने में लगा है । उनका कहना है कि नागरिकता सम्बन्धी प्रावधान से लेकर पिछली बार भारतीय नोटों (२ सौ, ५ सौ और २ हजार) में लगाई गई प्रतिबन्ध इसका उदारहण है । इण्डो–नेपाल समरसता ऑर्गनाइजेशन द्वारा बिहीबार काठमांडू में आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधन करते हुए सांसद् साह ने कहा कि नेपाल–भारत के बीच प्राचीनकाल से ही जनस्तर में जो संबंध हैं, नेपाल सरकार के विभिन्न नीतियों के कारण उस में रुकावट पैदा हो रही है ।
सांसद् साह को मानना है कि बोर्डर क्षेत्र में निवासी नागरिकों के लिए भारतीय बिना नेपाली और नेपाली बिना भारतीय अधूरा रह जाते हैं । उन्होंने कहा कि नेपाल के नीति ऐसी है, जहां शादी–व्यह कर नेपाल आनेवाले भारतीय बहू को नागरिकता की प्राप्ती सहज नहीं है, गैर आवासीय नागरिकता संबंधी प्रावधान में भी आपत्ति प्रकट करते हुए उन्होंने ने कहा– ‘मैंने ही नागरिकता संबंधी प्रावधान में सबसे अधिक संशोधन पेश किया है ।’ भारतीय नोटों की प्रतिबंध पर विरोध जताते हुए सांसद् साह ने कहा– ‘नेपाल सरकार ने भारतीय नोटों में जो प्रतिबन्ध लगाया है, इसमें बहुत बड़ा षड़यन्त्र है । सरकारी निर्णय से बोर्डर में रहनेवाले नेपाली को तो दिक्कत है ही, हमारे व्यापार–व्यवसाय में भी असर पड़ रहा है ।’ उनका कहना है कि प्रतिबंध लगाने से पहले जिन लोगों के पास प्रतिबंधित भारतीय नोट थे, उक्त नोटों को भारत ले जानेवालों को भी नेपला सरकार ने गिरफ्तार कर जेल भोज दिया है, जो घोर आपत्ति का विषय है ।
इसीतर कार्यक्रम में सम्बोधन करते हुए पूर्व राजदूत डा. विष्णुहरि नेपाल ने कहा कि नेपाल–भारत के बीच धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जो सम्बन्ध है, वह परापूर्वकाल से ही है और यही संबंध नेपाल–भारत बीच समरसता की काम करती आ रही है । उन का मानना है कि नेपाल में जन्म लेकर विश्व प्रसिद्ध हुए गौतम बुद्ध को नेपाल–भारत मिलकर विश्व ब्रम्हाण्ड के ज्योति घोषणा करनी चाहिए । इसीतरह सर्वोच्च अदालत के पूर्व न्यायाधीश गिरिशचन्द्र लाल ने कहा कि राजनीतिक दृष्टिकोण से नेपाल एक स्वतन्त्र देश है, लेकिन सामाजिक–सांस्कृतिक दृष्टिकोण से दोनों देश एक ही है । संस्कृति साहित्य के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने आगे कहा– ‘प्राचीनकालीन धार्मिक तथा संस्कृति साहित्य पढ़ते हैं तो पाया जाता है कि जम्बुदिप तथा भारत वर्ष के नाम में दक्षिण एसिया के अधिकांश भू–भाग को एक ही जगहों में समेटा गया है ।’ उनका मानना है कि नेपाल–भारत बीच भाषा और संस्कृति का जो समरसता है, उसको तोड़ना सम्भव नहीं है । उन्होंने कहा कि इस मामले में नेपाल हिन्दूस्तान से प्रभावित है तो हिन्दूस्थान भी नेपाल से प्रभावित है ।
कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि तथा पूर्व उपराष्ट्रपति परमानन्द झा ने भी कहा कि हाल ही में जनकपुर में सम्पन्न राम जानकी विवाह महोत्सव में जिसतरह भारत (उत्तर प्रदेश) के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ बारात लेकर जनकपुर आए हैं, उसी से प्रमाणित होता है कि नेपाल–भारत बीच की सांस्कृतिक समरता प्राचीनकाल से है । उनका यह भी मानना है कि इण्डो–नेपाल समरसता ऑर्गनाइजेशन की ओर से जारी अभियान नेपाल–भारत संबंध को और भी मजबुती प्रदान करेगी । इसीतरह पूर्व सांसद् गोपाल ठाकुर को कहना है कि ऑर्गनाइजेशन द्वारा जारी अभियान में सिर्फ हिन्दू ही नहीं, मुस्लिम, क्रिश्चिन लगायत सभी धर्म, जाति और समुदाय के लोग मानवीय धर्म के आधार में इकठ्ठा होने की जरुरत है ।
कार्यक्रम में हिमालिनी के सम्पादक डा. श्वेता दीप्ति, सांसद् सुमन शर्मा, नरोत्तम वैद्य, महावीर प्रसाद् टोडी, कुलदीप शर्मा आदि वक्तओं ने नेपाल–भारत के बीच रहे आपसी संबंध के बारे में अपनी–अपनी धारणा व्यक्त किया और कहा कि नेपाल–भारत बीच जो वैद्धिककालीन समरसता है, उसको बरकरार रखना चाहिए । कार्यक्रम में भारत और नेपाल के दर्जनों विशिष्ट व्यक्तित्व को पूर्वराष्ट्रपति परमानन्द झा और पूर्व राजदूत डा. विष्णुहरि नेपाल के हाथों सम्मान भी प्रदान किया गया ।
तस्वीरों में कार्यक्रम की झलकियां