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सीडियो या संघीयता विरोधी ‘संघीय दूत’ ? : रणधीर चौधरी



हिमालिनी, अंक मार्च 2019 |आजकल प्रमुख जिला अधिकारी अर्थात सीडियो साहबों की सक्रियता बढ़ी हुई है । प्रदेश २ सरकार के धनुषा जिले में सीडियो साहब न सिर्फ शहर सफाई अभियान में अपनी सक्रियता दिखा रहे हैं बल्कि जनता के रोजमर्रा के जीवन में काम पड़ने वाले सरकारी दफ्तरों का निरीक्षण कर के भ्रष्टाचार न करने का फरमान भी जारी कर रहे हैं । और इससे अच्छ लोकप्रियता भी कमा रहे हैं ।
उनके द्वारा किए गए इन सकारात्मक कार्यो की तारीफ करनी ही चाहिए हमें । पंचायतकाल के दौरान भी सीडियो साहब की सक्रियता काबिले तारिफ हुआ करती थी । पंचायत को बचाने के लिए तत्कालीन सीडियो साहब कोई भी कसर नही छोड़ते थे । कारण था पंचायत व्यवस्था । पंचायत का जितना पृष्ठपोषण होता था सीडियो से उतना ही जल्द उनको अंचलाधीश की पदवी से नवाजा जाता था । पंचायत के दौरान राष्ट्रीय पंचायत के सबसे चहेते कर्मचारी में पड़ते थे सीडिओ और अंचलाधीश ।

इस आलेख मे सीडियो के प्रति लेखक का कोई द्वेश नही है । वे सरकार द्वारा आदेशित एवं निर्देसित कार्य ईमानदारी से कर रहे हैं जो अच्छी बात है । संघीयता ने मूर्त रूप प्राप्त कर लिया है । तो ऐसी अवस्था में प्रदेश को मजबूती प्रदान करके संघीयता को मजबूत बनाना समय की मांग है या सीडियो को अनावश्यक अधिकार दे कर संघीयता को कमजोर करना ? इस लेख को इसी विषय वस्तु के इर्दगिर्द रखने का प्रयास किया गया है ।

गौरतलब है कि शान्ति और सुरक्षा कायम करने के नाम पर संघीय संसद में शान्ति सुरक्षा सम्बन्धी बिधेयक (बिल) पंजीयन करवाया गया है । क्या यह संघीय आवरण में पंचायत की निरन्तरता नहीं है ? यह एक बहस योग्य गम्भीर सबाल बन कर आया है । संघीय संरचना मे जिले को महत्व देना कितना व्यवहारिक होगा ? बात मानसिकता की है । अभी भी नेपाल सरकार मातहत के संस्थानो में अगर फॉर्म भरने के वक्त फॉर्म में अभ्यार्थी का अंचल के बारे मे जानकारी मांगा जाता है और प्रदेश की जानकारी से नेपाल सरकार को कोई दिलचस्पी नहीं है । सत्ता के शिखर पर विराजमान महान महेन्द्रवादी आत्माओ को समझ पाना मुश्किल नहीं । क्या यह संघीयता विरोधी मानसिकता का उपज नहीं तो क्या है ?

संघीयता के सार्थकता को विखण्डन के खतरे जोड़ कर देखना ही विखण्डनवाद का बीजारोपण है । संघीयता को कमजोर करते हुए मृत्युशैया पर लिटाना ही अभी के सरकार का परम उद्देश्य लगता है । शायद इसी लिए तो प्रदेश मे सीडियो को अत्याधिक अधिकार दे कर ‘संघीयदूत’ के रूप मे स्थापित करवाने का प्रपंच रचा जा रहा है ।

अभी अस्तित्व में रहे स्थानीय प्रशासन एन २०२८ में सीडियो के दिए गए अधिकार मे निषेधाज्ञा, कफर््यु दंगाग्रस्त क्षेत्र घोषणा जैसे अधिकार को निरन्तरता दिया गया है । यह ऐसा अधिकार है जो कि जिले के सीडियो अपने अनुभव और काबीलियत के आधार पर प्रयोग करते हैं और जिले का मालिक होने का अहम प्रदर्शन करते रहते हैं । सीडियो जो कि बड़ा दल कहलाने वाले नेताओं के द्वारा पोषित और संरक्षित (अघोषित) होते हैं । तो ऐसे मे अपने मालिक के प्रति वफादार होना उनका धर्म सा हो जाता है । राजनीतिक दल के नेताओं के इशारे पे चलने का सीडियो ने खुद इतिहास भी तो रचा है, पंचायतकाल से ही । संविधान निर्माण के वक्त सीडियो ने मधेश के जिलाें मे हो या सुर्खेत जिला में कर्फयु और दंगाग्रस्त क्षेत्र जैसे अधिकार का प्रयोग किया था, नवनिर्मित इतिहास है ये ।

संसद मे विचाराधीन विधेयक में मन दुखाने वाली या कहें तो संघीय नेपाल के हिसाब से अव्यवहारिक प्रावधानों को समेटा गया है । जैसे कि सीडियो ना सिर्फ नेपाल प्रहरी को अपितु प्रदेश प्रहरी के काम एवं कारबाही की भी निगरानी कर सकने के अधिकार को सुनिश्चित करने का संघीयता विरोधी मर्म को कानूनी रूप देना चाह रहा है । वैसे तो नेकपा के ही नेता जनार्दन शर्मा ने सीडियो को दिए जाने वाले अधिकाराें मे अपना विरोध जताया है । परंतु ऐसी कमसल आवाज को दम्भ से भरे दो तिहाई वाली सरकार भला क्यों सुनेगी ? नेकपा भीतर के माओवादी जिन्दा हो तो फिर भी नही वह विरोध कर सकता था क्योंकि गोरखा भूकम्प के बाद रचित १६ बुँदे समझौते में माओवादी के तत्कालीन कमान्डर पुष्पकमल दहाल ने अत्याधिक खुशी के साथ अपना हस्ताक्षर किया था । और नेकपा भीतर के नेकपा एमाले का क्या कहना । महेन्द्रवाद या कहे तो नश्लवाद का सबसे बडा पोषक वही तो है । उन्हीं के सपनों में सिर्फ राजा महेन्द्र आते हैं और गणतन्त्र के आवरण में पंचायत को जीवित रखने के लिए आदेश देते हैं ।

फकत विरोध के लिए विरोध करने का लाचारीपन देखने लायक है, नेपाली कांग्रेस में । बिपी के नाम पर कलंक सिद्ध होते दिख रहे है कांग्रेस । शायद कांग्रेसी जन को यह पता नहीं कि समय समय पर सदन मे जोड़तोड़ से चिल्ला लेने से प्रतिपक्ष की भूमिका को निर्बाहीकरण नही कहा जा सकता है । सीडियो को दिए जाने वाले अनावश्यक अधिकार से जुड़ी विचाराधीन विधेयक यथास्थिति में पास होने से रोकना चाहिए कांग्रेसी को ।
आमजनता को क्या समझना होगा कि सीडियो महज एक कर्मचारी है । जननिर्बाचित नेता द्वारा देश चलाने में सहयोग करने वाला एक सरकारी पद । विगत का इतिहास देखा जाए तो देश मे एक खास ‘रेजिम’ का पृष्ठपोषण करने के लिए पैदा किया गया हुआ पद । अभी के बदलते नेपाल मे अगर क्रिटिकली नही सोचेंगे तो कैसा नया नेपाल ? कैसे महसूस कर पाएंगे कि हम संघीय नेपाल में सांस ले रहे हंै ? ऐसी सोच की आवश्यकता तो और भी ज्यादा है मधेश में । मधेश अर्थात काठमाण्डौ द्वारा शासित नेपाल का दक्षिणी मैदान । कहा जाता है कि शासित वर्ग सदैव शक्ति का प्यासा होता है । लेखक की अनुभूति में मधेश के युवा, पत्रकार और नागरिक समाज कहलाने वाले थोड़ी देर के लिए सीडियो के साथ महज बैठने का अवसर प्राप्त कर लेते हंै तो खुशी से झूम उठते हैं । अधिकतम पत्रकार के बारे में यह खबर है कि वे स्वंय जिला के सीडियो को जानकारी देते हैं कि कहाँ से रकम वसूला जाता है । तस्कराें का गढ़ कौन सा है ? ये सब महज थोड़ा हिस्सा प्राप्ति के लिए करते हैं ।
ऊपर उल्लेखित विधेयक न सिर्फ स्वेच्छाचारिता से भरा है अपितु विधेयक में आमजनता के साथ मजाक भी किया गया है । हाँ सरकार ने आम जनता से मजाक की शैली में ही विधेयक के परिच्छेद ८ के २८ (१) में कहा है कि स्थानीय प्रशासन एन २०२८ खारिज हो गया है । वास्तव मे स्थानीय प्रशासन एन का खारेजी है यह नया विधेयक या मजबूती के साथ दी गयी निरन्तरता है ? क्या यह आमजनता के साथ किया गया मजाक नहीं है ? या फिर सरकार की नजर में उनकी जनता मूर्ख है ?
देश मे ७वाँ संविधान निर्माण जनता के द्वारा लाया गया उसके बाद देश मे आमूल परिवर्तन की अनुभूति कर पाएंगे जनता, ऐसा कहा गया था । परंतु इसकी सम्भावना का आयतन अति न्युन नहीं, बल्कि नहीं के बराबर । और संघीयता को बदनाम करने का प्रपंच रचा जा रहा है ।
संघीयतावादी कहलाने वाले राजनीतिक दल के नेता स्वंय महेन्द्रिय विद्यालय मे भरती हो चुके हैं । ऐसी हालत में दूसरे को क्या कहना ? विदित है नेपाल में चुनाव से पुर्व कर्मचारी तन्त्र में सबसे ज्यादा किसी का तबादला होता है तो वह है सीडियो । बड़ा कहलाने वाले दल के नेता प्रायः एक न एक सीडियो को अपना पालतु बनाकर रखते ही हैं ।और चुनाव के वक्त अपने जिले में उसका तबादला कर ले जाते है । और चुनाव में हनुमान की तरह काम करवाते हैं ।
अन्त में, और कोई बोले या न बोले परंतु प्रदेश २ के सरकार को इसमें अपनी मजबूती दिखानी चाहिए । यह सत्य होता जा रहा है की संघीयता अगर नेपाल मे फलीभूत साबित होगा तो उसका कारण होगा प्रदेश २ के कार्यकलाप और इमानदारी । संघीयता टिकाने की ल्याकत भी इसी प्रदेश के पास है ।



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