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बाबूराम भट्टराई को कर्म का फल भुगतना पड़ेगा : मुकेश झा

मुकेश झा ,जनकपुर धाम । बाबूराम भट्टराई जी हिन्दू धर्म को नही मानते क्यों कि हिन्दू धर्म मे “कर्म फल को भुगतना ही पड़ता है,इससे किसी भी तरह नही बचा जा सकता है” यह लिखा है। इसमें भगवान को भी कर्म फल भोगने की और भगवान के पिता दसरथ जी को भी कर्म फल के अनुरूप पुत्र वियोग में मृत्यु की बात कही गई है।



 

इस तरह अगर हिन्दू सिद्धान्त को माने तो बाबूराम भट्टराई जी को हजारों व्यक्ति का हत्या करबाने का फल भोगना ही होगा। लेकिन क्राइस्ट कहते हैं कि तुम कितना भी पापी क्यों न हो ,कितना भी कुकर्मी, विध्वंस कारी क्यों न हो, कितना भी दारूबाज, वेश्यागामी क्यों न हो, कितना भी बड़ा लुटेरा, हत्यारा क्यों न हो, मेरे पास रह, मैं परम्पिता से तेरे लिए बात करूंगा और तुझे कोई तकलीफ नही होगी, स्वर्ग का सुख भोग करोगे।

 

अब अगर इस तरह का ऑफर मिले तो भला लोग कर्मफल वाले धर्म को क्यों माने? उस धर्म को क्यों न माने जिसमे हर कुछ करके के बाद चर्च में पादरी के साथ खुसर फुसर कर लिया जाय, हो गया माफी, फिर चाहे कैसा भी पाप क्यों न करे। इस तरह के धर्म को मानने वाला भला किसी भी कुकर्म से क्यों डरे, जिसको पता हो कि माफ करने वाला बैठा हुआ है।



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