Fri. Mar 29th, 2024

रौशनी सिर्फ बेटों से ही नहीं बेटियों से भी होती है : अर्चना झा

बेटी एक घर से दूसरे घर जाकर वहाँ का सम्मान बढाती है पर जब वहीं उसे रौंदा जाता है तो स्वयं से पूछिए कि उसे कितनी तकलीफ होती होगी

हिमालिनी अंक मई २०१९ |हर घर, समाज, शहर, देश, विदेश, कार्यालय, विद्यालय आदि हर जगह माँ बेटी को सम्मान होना चाहिए । पर आज हो ये रहा हैकि कोख में ही बेटियों को मार दिया जाता है । रोज भ्रूण हत्याएँ होती हैं । मारने वाले कोईगैर नहीं स्वयं माता पिता ही होते हैं । आर्शिवाद देते समय हमेशा कहा जाता है पुत्रवती भव कोई यह नहीं कहता है कि पुत्रीवती भव । कन्या भी तो इसी दुनिया का हिस्सा होती है । यह तो जरूरी नहीं कि घर का चिराग सिर्फ बेटा हो बेटियों से भी घर समाज देश रौशन होता है । एक कथा है एक आश्रम में अपने माँ बाप को छोडकर जब बेटा जाने लगता है तो माँ कहती है कि बेटा दिल पर बोझ मत रखना । तुझे पाने के लिए गर्भ में दो बेटियों को मारा था सजा किसी और से नही अपने ही बेटे से प्राप्त हो गई ।

इसलिए प्रार्थना हैै कि समान इज्जत करे । धनवान वही है जो बेटे और बेटियों में फर्क नहीं करते हैं । बहु को बेटी समझें तभी दहेज की आग मे कोई बहु नही जलाई जाएगी ।
बेटा वारिश है तो बेटी आपके घर की पारस है ।
अगर बेटा मान है तो बेटी आप का गुमान है ।
अगर बेटा आपका वंश है तो बेटी अंश है ।
बेटा आन है तो बेटी शान है ।
बेटा आपका तन है तो बेटी मन है ।
बेटा सस्ंकार है तो बेटी सस्ंकृति है ।
बेटा दवा है तो बेटी दुआ है ।

बेटियाँ दुर्दशा नहीं हैं । उसके जीने पर रोक मत लगाइए । पूछिए उनसे जिनकी बेटियाँ नहीं होतीं कैसे उनका आँगन सूना होता है । बहुओं के साथ राक्षस की तरह व्यवहार किया जाता है । राक्षस हैं पशु नहीं क्योंकि पशुओं को भी अपने बच्चों से प्यार होता है । हम मानव हैं पर बेटियों एवं बहुओं के मामले में हमारी मानवीयता खो जाती है । हम राक्षस बन जाते हैं । तभी तो रोज हमारे सामने ऐसी घटनाएँ घटती रहती हैं जहाँ बेटियों या बहुओं पर अत्याचार किया जाता है । बेटी एक घर से दूसरे घर जाकर वहाँ का सम्मान बढाती है पर जब वहीं उसे रौंदा जाता है तो स्वयं से पूछिए कि उसे कितनी तकलीफ होती होगी । कभी उसकी तकलीफ को समझिने की कोशिश कीजिए । अपने व्यवहार में सुधार लाइए तो दखिए हम और हमारा समाज कैसे सुखी बनता है । कैसे हर घर सुखी और शांत होता है ।

बेटियाँ कभी भी बेटे से कम नहीं हे वह हर कदम पर बेटे से बढकर रहती है । इसका मिसाल आपको अपने आसपास ह िमिल जाएगा । आज ऐसा कौन सा क्षेत्र है जहाँ बेटियाँ नहीं हैं हर जगह वह अपनी पहुँच बना चुकी है बस उसे एक खूला आसमान और आधार दीजिए । उसे पैदा होने से पहले दहेज के डर से मारिए मत बल्कि उसे इस दुनिया में आने दीजिए, आँखें खोलने दीजिए, साँस लेने दीजिए शादी की सीख से अधिक संस्कार दीजिए, संबल दीजिए । दहेज मत जोडिए शिक्षा की दौलत दीजिए । एक बेटे के लिए न जाने कितनी बेटियों को कोख में मार दिया जाता है आखिर उसका दोष क्या है ? उसे जीवन दीजिए वह भी आपका नाम रौशन करेगी आपका सहारा बनेगी । बस एक नई सोच की आवश्यकता है । बेटी कमजोर नहीं है वह शक्ति है । जिसने हर क्षेत्र में अपनी दक्षता दिखाई है ।

बस उसे सही सीख दीजिए । उसे सिखाइए कि वह अपने पर हो रहे अत्याचार का मुकाबला करे । अपनी शिकायत दर्ज कराए । वह जब आपके दरवाजे पर ससुराल से पीडि़त होकर आए तो उसे समझने की कोशिश कििजए उसे जबरन वापस मत भेजिए । स्वयं पहल कीजिइ और बात की नजाकत को समझिए । संस्कार और समाज की दुहाई देकर उसे कमजोर मत बनाइए बल्कि उसके मनोबल को बढाइए ।
आज घरेलु हिंसा मेंं महिलाए खुद पर हो रहे अत्याचार के लिए सीधे न्यायालय से गुहार लगा सकती है । इसके लिए पीडि़त महिला वकील प्रोडक्सन आफिसर और सविर्स प्रोवाईडर मे से किसी एक को साथ ले जा सकती है और चाहे तो खुद ही अपना पक्ष रख सक्ती है । दहेज लेना और देना दंडनीय अपराध है इसकी जानकारी भी होनी चाहिए और इस पर अमल भी होना चाहिए । शादी के नाम पर अनापशनाप धन लुटाना शान दिखाना यह सब किसी भी हाल में समाज को सही दिशा नही देता है । पर आज समाज इसी दिखावे के पीछे पागल है । सोच बदलिए समाज बदलेगा । आइए हम सब इसके लिए मिल कर प्रयास और पहल करें ।

 



About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: