बरस रही थी बारिश बाहर और वो भीग रहा था मुझ में – नज़ीर क़ैसर
सुना है बहुत बारिश है तुम्हारे शहर में,
ज्यादा भीगना मत..
अगर धूल गई सारी ग़लतफहमियां,
तो फिर बहुत याद आएंगे हम!!
आसमान से टपकता पानी और कई ख्वाबों को सजाता ये पागल मन आज बारिश के संग चंद शायरी के रंग
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है
– निदा फ़ाज़ली
टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर
वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए
– सज्जाद बाक़र रिज़वी
तमाम रात नहाया था शहर बारिश में
वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे
– जमाल एहसानी
कच्ची दीवारों को पानी की लहर काट गई
पहली बारिश ही ने बरसात की ढाया है मुझे
– ज़ुबैर रिज़वी
घटा देख कर ख़ुश हुईं लड़कियाँ
छतों पर खिले फूल बरसात के
– मुनीर नियाज़ी
दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था
इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था
– क़तील शिफ़ाई
दर-ओ-दीवार पे शक्लें सी बनाने आई
फिर ये बारिश मिरी तंहाई चुराने आई
– कैफ़ भोपाली
बरस रही थी बारिश बाहर
और वो भीग रहा था मुझ में
– नज़ीर क़ैसर
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की
– परवीन शाकिर
मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ
पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे
– तहज़ीब हाफ़ी
मैं चुप कराता हूँ हर शब उमडती बारिश को
मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है
– गुलज़ार