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मृदुल त्यागी



केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने हर भारतवासी की आकांक्षा को पूरा कर दिया है. जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह देश का हिस्सा न बनाने के जवाहर लाल नेहरू के इंतजाम संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म करने का संकल्प गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में पेश कर दिया. मुट्ठी भर अलगाववादी इसी अनुच्छेद पर सवार होकर कश्मीर को देश से अलग कर देने का सपना देखते रहे हैं. सरकार ने जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन का विधेयक भी पेश कर दिया. लद्दाख अब जम्मू-कश्मीर का हिस्सा नहीं रहेगा. यह बिना विधानसभा का केंद्र शासित प्रदेश होगा. बाकी बचे जम्मू-कश्मीर को भी केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा होगा. इसमें दिल्ली जैसी सीमित शक्तियों वाली विधानसभा होगी. इसी प्रकार नेहरू ने शेख अब्दुल्ला के साथ मिलकर जो नासूर तैयार किया था, मोदी ने उसकी सर्जरी कर दी है.
जम्मू-कश्मीर में जिस तरीके के अभूतपूर्व सुरक्षा इंतजाम पिछले पंद्रह दिन मे सरकार ने किए थे, कयास लगाए जा रहे थे कि सरकार कोई बड़ा फैसला लेने के मूड में है. सावन के तीसरे सोमवार को सुबह कैबिनेट की सुरक्षा मामलों की समिति की बैठक हुई. इसके बाद कैबिनेट में विधेयकों को मंजूरी दी गई. सवा ग्यारह बजे अमित शाह राज्यसभा में बोलने के लिए खड़े हुए. उन्होंने अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का संकल्प पेश किया. इसके साथ ही राज्यसभा और फिर लोकसभा में हंगामा शुरू हो गया. इस हंगामे के साथ ही कांग्रेस समेत कुछ विपक्षी दलों का देश विरोधी चेहरा भी सामने आ गया.
अमित शाह की ओर से इस बारे में बयान जारी किया गया. उन्होंने कहा कि लद्दाख के लोग मांग रहे थे कि उनके पिछड़ेपन का कारण राज्य सरकारों द्वारा अनदेखी है. लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया जाए. सरकार ने बिना विधानसभा का केंद्र शासित प्रदेश बनाने का फैसला किया है. इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर में दिल्ली की तरह विधानसभा होगी. यानी इसकी शक्तियां सीमित होंगी. अनुच्छेद 370 की समाप्ति के साथ ही जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान, अलग झंडा सभी रद हो जाएंगे. देश के 29 राज्यों की तरह ही केंद्र के सभी कानून, योजनाएं, विकास परियोजनाएं जम्मू-कश्मीर पर भी लागू होंगे.
राज्यसभा मेंअमित शाह ने कहा कि कश्मीर में ये गलत धारणा है कि अनुच्छेद-370 की वजह से कश्मीर भारत के साथ है. कश्मीर भारत के विलय पत्र की वजह से है जिसपर 1947 में हस्ताक्षर किया गया था. अमित शाह ने कहा कि हम राष्ट्रहित में वोटबैंक की चिंता नहीं करते. लोकसभा में भूपेंद्र यादव ने कहा कि पॉक्सो एक्ट हो या तीन तलाक या फिर अन्य कानून 370 की वजह से राज्य में लागू नहीं सके. तमाम विकास योजनाएं लागू नहीं हो सके. जम्मू-कश्मीर बाकी देश के साथ चले, विकास की राह पर चले.
कैसे नेहरू ने बना दिया था नासूर

जम्मू-कश्मीर का भारत में बिना शर्त विलय हुआ था. बात एक मूल सवाल से शुरू करते हैं. जम्मू-कश्मीर के रूप में किसी राज्य को विशेष दर्जा क्यों दिया गया? क्या ये एक तरह से इस बात का इकबालिया बयान नहीं था कि जम्मू-कश्मीर भारत का अन्य रियासतों की तरह अभिन्न अंग नहीं बन सका. क्या ये पाकिस्तान, दहशतगर्दों को आमंत्रण नहीं देता. जी हां, ये संविधान में किया गया एक अस्थायी प्रावधान कश्मीर समस्या का मूल है. एक अलग मुल्क पर हुकूमत करने की शेख अब्दुल्ला (फारूख अब्दुल्ला के पिता व उमर अब्दुल्ला के दादा) की इच्छा का भारतीय संविधान में इंतजाम धारा 370 के रूप में है. 17 अक्टूबर 1949 को संविधान सभा में मौलाना हसरत मोहिनी ने ये सवाल उठाया-इस तरह का भेदभाव क्यों ? बाकी रियासतें भी तो भारत में शामिल हुई हैं फिर जम्मू-कश्मीर को ही विशेष दर्जा क्यों ? इसका जवाब गोपाल स्वामी अयंगर ने दिया. वह नेहरू की कैबिनेट में बिना विभाग के मंत्री थे. जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह के दीवान रहे अयंगर को नेहरू खासतौर पर जम्मू-कश्मीर के लिए ही कैबिनेट में लाए थे. अयंगर ने असेंबली को बताया कि जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के हालात अभी नहीं हैं. भारत पाकिस्तान के साथ कश्मीर को लेकर जंग लड़ चुका है. वहां हालात अभी भी अस्थिर और असामान्य हैं.
शेख अब्दुल्ला को पता था कि मिनिस्ट्री आफ स्टेट्स देख रहे सरदार पटेल के रहते उसकी दाल गलनी संभव नहीं है. ऐसे हालात में नेहरू ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के मामले को अपने हाथ में ले लिया, तो समझा जा सकता है कि ऐसा क्यों किया गया होगा. इस पर जब विवाद खड़ा हुआ तो नेहरू ने कहा था-कश्मीर मे जो भी गलत या सही होगा, उसका जिम्मेदार मैं होऊंगा. जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जे के प्रस्ताव को लेकर नेहरू संविधान सभा में भी घिर गए थे. विरोध इतना मुखर था कि इसकी मंजूरी मिलनी असंभव दिखाई दे रही थी. तब नेहरू ने हथियार डालते हुए सरदार पटेल को विदेश से फोन किया. वह अनिच्छा के बावजूद नेहरू की बात मानते हुए इसके विरोध से पीछे हट गए. उन्होंने कांग्रेस नेताओं को समझाया कि इस तरह का विरोध देश के प्रधानमंत्री को नीचा दिखाने का काम करेगा. नतीजा ये हुआ कि संविधान सभा में इसकी ज्यादा चर्चा ही नहीं हुई.
क्या है धारा 370 ? धारा 370 भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद है. यह आर्टिकल 21 के अंतर्गत आता है. जिसका शीर्षक है अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबन्ध. इसी के जरिए जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा हासिल है. इसका प्रारूप नेहरू के खास शेख अब्दुल्ला ने तैयार किया था. जिसे संविधान सभा में आयंगर ने धारा 306-ए का प्रारूप पेश किया, यही बाद में धारा 370 बनी. इसी के चलते 1951 में राज्य को अलग संविधान सभा बैठाने की इजाजत मिली. 26 जनवरी 1957 से राज्य में विशेष संविधान लागू है.
जम्मू कश्मीर के पास क्या विशेष अधिकार
– धारा 370 के प्रावधानों के मुताबिक संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है।
– किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की सहमति लेनी पड़ती है।
– इसी विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती। राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है।
– 1976 का शहरी भूमि कानून भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता।
– भारत के अन्य राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते हैं। धारा 370 के तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि खरीदने का अधिकार है।
– भारतीय संविधान की धारा 360 यानी देश में इमरजेंसी और वित्तीय आपातकाल लगाने वाला प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता.
नतीजा क्या है
– जम्मू-कश्मीर का झंडा अलग होता है।
– जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है।
– जम्मू-कश्मीर में भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय को भी यहां के उच्च न्यायालय के फैसलों के खिलाफ अपील स्वीकार करने का अधिकार बाद में संशोधन के जरिये दिया गया.
– जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उस महिला की जम्मू-कश्मीर की नागरिकता खत्म हो जाएगी।
– यदि कोई कश्मीरी महिला पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से शादी करती है, तो उसके पति को भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती है।
– जम्मू-कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते हैं।
– जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 साल होता है। जबकि भारत के अन्य
-राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 साल होता है।
– भारत की संसद जम्मू-कश्मीर के संबंध में बहुत ही सीमित दायरे में कानून बना सकती है।
– कश्मीर में अल्पसंख्यक हिन्दुओं और सिखों को 16 फीसदी आरक्षण नहीं मिलता है।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी का सर्वोच्च बलिदान

जम्मू-कश्मीर के संविधान में व्यवस्था थी कि भारत से आने वाले किसी भी व्यक्ति को यहां पहचान पत्र के साथ ही एंट्री मिलेगी. अपने जन्म के समय से ही जनसंघ जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जे का विरोध करता रहा. जनसंघ संस्थापक डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का मानना था कि यह धारा शेख अब्दुल्ला के ‘तीन राष्ट्रों के सिद्धांत’ को लागू करने की एक योजना है. इसी के विरोध में श्यामा प्रसाद मुखर्जी 1953 में कश्मीर यात्रा पर निकले. लेकिन उन्हें जम्मू-कश्मीर के भीतर घुसने नहीं दिया गया. मुखर्जी को गिरफ्तार कर लिया गया. 23 जून 1953 को हिरासत के दौरान संदिग्ध हालात में उनकी मौत हो गई. जिसकी आज तक कोई पुख्ता जांच नहीं हुई. आज श्यामा प्रसाद मुखर्जी की आत्मा के लिए संतोष का पल है.

पांचजन्य से साभार



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