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ईसा मसीह के जन्म की ख़ुशी में मनाया जाने वाला मैरी ‘क्रिसमस’ईसाइयों का सबसे ख़ास त्योहार



ईसाई धर्म को क्रिश्‍चियन धर्म भी कहते हैं। इस धर्म के संस्थापक प्रभु ईसा मसीह को माना जाता है। ईसा मसीह को पहले से चला रहे प्रॉफेट की परंपरा का एक प्रॉफेट माना जाता हैं। उन्होंने दुनिया को एक नया नियम दिया और लोगों को प्रेम करना सिखाया। आओ जानते हैं उनके बारे में संक्षिप्त जानकारी।

 दुनियाभर में मनाए जाने वाला क्रिसमस ईसाइयों के सबसे ख़ास त्योहारों में से एक है। इसे ईसा मसीह के जन्म की ख़ुशी में मनाया जाता है। क्रिसमस को बड़े दिन के रूप में भी मनाया जाता है। क्रिसमस से 12 दिन का उत्सव ‘क्रिसमस टाइड’ शुरू होता है।

‘क्रिसमस’ शब्द ‘क्राइस्ट्स और मास’ दो शब्दों से मिलकर बना है, जो मध्यकाल के अंग्रेज़ी शब्द ‘क्रिस्टेमसे’ और पुराने अंग्रेज़ी शब्द ‘क्रिस्टेसमैसे’ से नक़ल किया गया है। 1038 ईस्वी से इसे ‘क्रिसमस’ कहा जाने लगा। इसमें ‘क्रिस’ का अर्थ ईसा मसीह और ‘मस’ का अर्थ ईसाइयों का प्रार्थनामय समूह या ‘मास’ है। 16वीं सदी के मध्य से ‘क्राइस्ट’ शब्द को रोमन अक्षर एक्स से दर्शाने की प्रथा चल पड़ी इसलिए अब ‘क्रिसमस’ को ‘एक्समस’ भी कहा जाता है।

25 दिसंबर सन् 6 ईसा पूर्व को एक यहूदी बढ़ई की पत्नी मरियम (मेरी) के गर्भ से यीशु का जन्म बैथलहम में हुआ। कहते हैं जब यीशु का जन्म हुआ तब मरियम कुंआरी थीं। मरियम योसेफ की धर्म पत्नी थीं। बैथलहम इसराइल में यरुशलम से 10 किलोमीटर दक्षिण में स्थित एक फिलिस्तीनी शहर है।

कहते हैं कि यीशु के जन्म के बाद उन्हें देखने के लिए बेथलेहेम में तीन विद्वान पहुंचे थे जिन्हें फरिश्ता कहा गया। यह भी कहा जाता है कि मरिया को यीशु के जन्म के पहले एक दिन स्वर्गदूत गाब्रिएल ने दर्शन देकर कहा था कि धन्य हैं आप स्त्रियों में, क्योंकि आप ईश्‍वर की माता बनने के लिए चुनी गई हैं। यह सुनकर मदर मरियम चकित रह गई थीं। इसके कुछ समय के बाद मरियम और योसेफ अपना नाम लिखवाने बैथलेहेम गए और कहीं भी जगह न मिलने पर वे एक गुफा में रुक गए जो शहर से बाहर एकांत में थी। वहीं पर यीशु का जन्म हुआ।

ईसा जब बारह वर्ष के हुए, तो यरुशलम में दो दिन रुककर पुजारियों से ज्ञान चर्चा करते रहे। सत्य को खोजने की वृत्ति उनमें बचपन से ही थी। बाइबिल में उनके 13 से 29 वर्षों के बीच का कोई ‍जिक्र नहीं मिलता, ऐसा माना जाता है। 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने यूहन्ना (जॉन) से दीक्षा ली। दीक्षा के बाद वे लोगों को शिक्षा देने लगे।

कहते हैं कि सन 29 ई. को प्रभु ईसा गधे पर चढ़कर यरुशलम पहुंचे। वहीं उनको दंडित करने का षड्यंत्र रचा गया। उनके शिष्य जुदास ने उनके साथ विश्‍वासघात किया। अंतत: उन्हें विरोधियों ने पकड़कर क्रूस पर लटका दिया। ईसा ने क्रूस पर लटकते समय ईश्वर से प्रार्थना की, ‘हे प्रभु, क्रूस पर लटकाने वाले इन लोगों को क्षमा कर। वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।’ कहते हैं कि उस वक्त उनकी उम्र थी लगभग 33 वर्ष।

जब यीशु का जन्म हुआ था तो उस दिन को मेरी क्रिसमस कहा जाता है। रविवार को यीशु ने येरुशलम में प्रवेश किया था। इस दिन को ‘पाम संडे’ कहते हैं। शुक्रवार को उन्हें सूली दी गई थी इसलिए इसे ‘गुड फ्रायडे’ कहते हैं और रविवार के दिन सिर्फ एक स्त्री (मेरी मेग्दलेन) ने उन्हें उनकी कब्र के पास जीवित देखा। जीवित देखे जाने की इस घटना को ‘ईस्टर’ के रूप में मनाया जाता है। कहते हैं कि उसके बाद यीशु कभी भी यहूदी राज्य में नजर नहीं आए।



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