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है अपना यह नववर्ष अहो, सबओर यहाँ उत्कर्ष अहो

 अपना नववर्ष 2077 की हार्दिक मंगल कामना अपना नववर्ष : अजयकुमार झा



है अपना यह नववर्ष अहो।
सबओर यहाँ उत्कर्ष अहो।।
उपवनमें कलियाँ झूम रही।
कोयलके कुक की हर्ष अहो।। 1

देखो मधुमास के रंग यहाँ।
सतरंगी कुशुमके संग यहाँ।।
भँवरे मदमस्त है पी मधवा।
कलियाँ है बिखेरे उमंग यहाँ।। 2

वैशाखी बन लक्ष्मी आई।
घरघर वैभव धन है छाई।।
धरती उगले हीरे मोती।
गदगद किशान जग हर्षाई।। 3

नववर्ष का है यह ढंग अहो।
कणकण में भरा है उमंग अहो।।
नहीं शीत लहर न उष्ण कहर।
हर वृक्ष सजे अंग अंग अहो।। 4

देखो प्रकृति के उत्सव को।
भँवरे कोयल के महोत्सव को।।
बनके दुलहन वशुधा नाचे।
बालक हिय में रंगोत्सव को।। 5

सब प्रेम फुहार को बाँट रहा।
दिल खोल के दिल को बाँट रहा।।
शुभ भाव से भावित है सब जन।
गले मिल शुभकामना बाँट रहा।। 6

है प्रकृति पुरुष का मधुर मिलन।
नहीं बाहर भीतर कोई जलन।।
गुणगुण रुनझुन झंकार बजे।
नववर्ष हेतु यह दिल अर्पण।। 7

जन जन में खुशियाँ बाँटेंगे।
गले मिलके संग संग नाँचेंगे।।
जड़ चेतन प्रभुका रूप अहो।
गम भूल के अब हम हाँसेंगे।। 8

मधुवन में अमृत रस टपके।
भँवरा नाँचे कोयल कुहुके।।
लगे मस्त वहारों का मेला।
हूरों के पाँव रह रह खनके।। 9

अजय कुमार झा
नेपाल, जनकपुरधाम



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