प्र.म. ओली के कदम से सभी पार्टियों के शीर्षस्थ नेताओं में भूचाल आ गया है : अजयकुमार झा,
अजयकुमार झा, जलेश्वर, २३ अप्रिल२०२० | बिते सोमबार को मन्त्रिपरिषद् के बैठक द्वारा ४० प्रतिशत संसदीय दल के सदस्य अथवा पार्टी केन्द्रीय सदस्य के द्वारा अलग पार्टी बना सकने के लिए प्रधानमन्त्री ओली के प्रस्ताव को एकाएक अध्यादेश मार्फत राजनीतिक दल सम्बन्धी ऐन को संशोधन कर ०७३ के पहले का प्रावधान को निरंतरता दे दिया गया है। इतना ही नहीं, उसे राष्ट्रिय दल की मान्यता मिलने की व्यवस्था भी अध्यादेश में किया गया है। संशोधित प्रावधान अनुसार वर्त्तमान के राष्ट्रिय दलसे अलग होनेवाली दल को समानुपातिक मत का ३ प्रतिशत मत नहोने पर भी उसे राष्ट्रिय दलका मान्यता मिल सकेगा। इसके साथही संवैधानिक परिषद के बैठक में प्रमुख प्रतिपक्षी दल के नेता की उपस्थित की अनिवार्यता भी खारिज कर दिया गया है, जिसका स्वयं के पार्टी लगायत सभी पार्टियों ने विरोध किया है। सभी के विरोध का कारण उसकी अपनी पार्टी को फूटने का डर सता रहा है।
प्र.म. ओली के द्वारा किया गया इस संशोधन को निश्चित ही हरेक पार्टी के दलित और अधिकार से वन्चित लोकतांत्रिक विचारधारा के कार्यकर्ताओं द्वारा मन ही मन स्वागत किया जा रहा होगा। तत्काल कमजोरी के कारण बोल न पाने का मतलब यह नही है कि सब के सब इसका विरोध ही कर रहे हैं। जब अपनी ही पार्टी का एक खेमा सत्ता हथियाने के उद्देश्य से पार्टी एकता के मर्म और प्रधान मंत्री के गरिमा विरुद्ध सरकार परिवर्तन का सोच रख सकते हैं, तो वर्त्तमान में सत्तासीन और निर्लोभी प्रधान मंत्री लोकतंत्र के हित मे यह कदम क्यों नहीं उठा सकते है ? ध्यान रहे ! अन्य नेताओं की तरह आदरणीय ओली जी को देसके सम्पत्ति को लूटकर अपने संतान के लिए नहीं रखना है। सभी पार्टियों के द्वारा एक मुष्ट विरोध का कारण भी यही है। सबके पैर तले से जमीन खिसकता नजर आ रहा है। लुट तंत्र की इस महा कुम्भ में व्यक्तिगत प्र म पूर्णतः स्वक्ष हैं। अब इन्हें अपने इर्द गिर्द घूम रहे गिरगिटों को तह लगाना है, जो उन्हें पार्टी भीतर के कुंडली मारे वैठे कुछ लोगों के कारण कठिनाई महसूस हो रही थी। इस अध्यादेस के कारण एकही झटके में सारे डेण्ड्रफ़ ऑल क्लियर हो जाएंगे। प्रधान मंत्री ओली जी से मेरी करबद्ध प्रार्थना है कि, वो नेपाल के गरिमा और महिमा बचाने के लिए उन सभी भ्रष्टाचारियों पर कड़ा से कड़ा कदम उठाएँ, जिसने देस के अस्तित्व को लुटा है, गरीव नागरिक के हक़ और जीबन को लुटा है, राजनीति के आदर्श और नेपाली संस्कृति के मर्म को लुटा है। कहा जाता है कि, जब सारे लुटेरे एक होकर किसी एक व्यक्ति का विरोध करे, तो समझ लेना वह व्यक्ति निर्दोष है, और उसी के हाथों में भविष्य सुरक्षित है। जैसे मोदी को भारत के सभी उल्लुओ ने मिलकर विरोध किया और उसका परिणाम वहाँ के जनता ने उन्हें बुरी तरह मात देकर दिया। हम आशा करते हैं कि आप भी मोदी जी कि तरह एक आदर्श नेतृत्व और मानवतावादी राष्ट्रवाद का अखंड दीप जलाने में सक्षम होंगे। भ्रष्टाचारियों पर कड़ा अंकुश लगते ही पूरा नेपाल आपके साथ खड़ा हो जाएगा। यह मेरा विश्वास और आम नागरिक का हार्दिक भाव है।
प्र.म. ओली के इस कदम से सभी पार्टियों के शीर्षस्थ नेताओं में भूचाल सा आगया है। यह स्वाभाविक भी है। शेर को देखकर हिरनों के झुण्ड में हड़कंप हो ही जाता है। अपने व्यक्तिगत स्वार्थ तथा पदीय लोलुपता के कारण सैकड़ों सहिदों के वलिदानी को सौदा कर हत्यारों के साथ समझौता करने वाले किसी भी हालत में देस और जनता के लिए शुभ नहीं हो सकते। सत्ता से वेदखल होनेपर संविधान संशोधन और प्र म. में खोट देखने वालों के दुश्चरित्र को जनता पहचान चुकी है। लोग अध्यादेस का विरोध नहीं कर रहे, वल्कि निकट भविष्य में भ्रष्टाचारी के ऊपर गिरने वाले ओली के प्रचण्ड बज्रपात के भय से तिलमिला उठे हैं। ओली में मोदी का निखार आया नजर आ रहा है। वैसे भी ईस क्षत-विक्षत देसके भ्रष्ट चरित्र राजनीति से जनता मुक्ति खोज रही है। आशा ओली बाहेक अन्य किसी पर हो भी नहीं सकता।
((है तंत्र यहाँ पर जीर्ण शीर्ण प्रज्ञा का है भीषण अभाव।
कुछ घाव पुराने जिन्दा है कुछ बनते रहते नए घाव।।
प्रज्ञा जागे हो तंत्र कुशल तब ही होगा यह देश कुशल।।।
अथ प्रज्ञा शरणं गच्छामि भज ओशो……..।))