बादल का इन्तजार : अंशु झा
बादल का इन्तजार
आज बादल,
हाेकर पूर्ण तैयार,
बरसने के लिये,
कर रहा इन्तजार ।
कभी गरजता,
ताे कभी चमकता,
ले आया घटा अन्धियार,
बरसने के लिये,
कर रहा इन्तजार ।
चाराे तरफ से,
घेरे धरा काे,
सुना रहा आगमन का,
शुभ समाचार ,
बरसने के लिये
कर रहा इन्तजार ।
धरा खामाेश,
सब देख रही,
मन ही मन,
वाे साेच रही,
बादल कितना,
है बेकरार,
बरसने के लिये,
कर रहा इन्तजार ।
धरा ने उस पर,
दया दिखाई,
स्वागत करते,
बाँह फैलाई,
खाेल दिया,
हृदय का द्वार
बादल बरसा,
बारम्बार ।
पूर्ण हुआ,
बादल का इन्तजार ।।