रोते हुए लफ्ज़ फिर से मुस्कुरा जाते हैं : निधी बुच्चा
*मुस्कुराने की आदत सी हो गई*”
जिस दिन ईश्वर ने हम नारी की रचना की,
उसी दिन से शायद एक बात इन कानों में भर दी,,
परिस्थिति कितनी भी जटिल हो संसार में,
हंसते ही रहना है तुम्हें हर हाल में,
उसी दिन से मुस्कुराने की आदत सी हो गई।।
बचपन में जब खेलते खेलते गिरती,
पापा पूचकारते, सह लाते और कहते,
उठो, रोना नहीं,है रहना खिलखिलाते
हर दर्द सहना है हंसते-हंसते ,
उसी दिन से मुस्कुराने की आदत सी हो गई।।
विदाई के वक्त मां का भी था यही कहना,
हर किसी का दामन तुम खुशियों से भर देना,
ममता, ज्ञान और संस्कारों का बहा देना झरना,
हर मौसम में लेकिन समता ही बनाए रखना,
उसी दिन से मुस्कुराने की आदत सी हो गई।।
जब कभी दर्द से भरा दिल रोने लगता है,
हम जागा करते हैं और पूरा जहां सोता है,
ए दिल, क्यों अपना धीरज तू खोता है,
यही सच्चाई है, जीवन एक समझौता है,
बस यही सोचते हुए हम बहल जाते हैं,
रोते हुए लफ्ज़ फिर से मुस्कुरा जाते हैं,,
और क्या ! बस ,
उसी दिन से मुस्कुराने की आदत सी हो गई…….
