Wed. Oct 16th, 2024

काबुल में भारत की भूमिका शून्य क्यों ? : डॉ. वेदप्रताप वैदिक



*डॉ. वेदप्रताप वैदिक* यह अच्छी बात है कि हमारा विदेश मंत्रालय सभी प्रमुख पार्टियों के नेताओं को अफगानिस्तान के बारे में जानकारी देगा। क्या जानकारी देगा ? वह यह बताएगा कि उसने काबुल में हमारा राजदूतावास बंद क्यों किया ? दुनिया के सभी प्रमुख दूतावास काबुल में काम कर रहे हैं तो हमारे दूतावास को बंद करने का कारण क्या है ? क्या हमारे पास कोई ऐसी गुप्त सूचना थी कि तालिबान हमारे दूतावास को उड़ा देनेवाले थे? यदि ऐसा था तो भी हम अपने दूतावास और राजनयिकों की सुरक्षा के लिए पहले से जो स्टाफ था, उसे क्यों नहीं मजबूत बना सकते थे ? हजार-दो हजार अतिरिक फौजी जवानों को काबुल नहीं भिजवा सकते थे ? यदि पिछले 10 दिनों में हमारे एक भी नागरिक को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया गया है तो वे हमारे राजदूतावास को नुकसान क्यों पहुंचाते अर्थात वर्तमान स्थिति के बारे में हमारी सरकार का मूल्यांकन ठीक नहीं निकला। जहाँ तक नागरिकों की वापसी का सवाल है, चाहे वह देर से ही की गई है लेकिन हमारी सरकार ने यह दुरुस्त किया। हमारी वायुसेना को बधाई लेकिन दूतावास के राजनयिकों को हटाने के बारे में विदेश मंत्रालय संसदीय नेताओं को संतुष्ट कैसे करेगा ? इसके अलावा बड़ा सवाल यह है कि काबुल में सरकार बनाने की कवायद पिछले 10 दिन से चल रही है और भारत की भूमिका उसमें बिल्कुल शून्य है।

शून्य क्यों नहीं होगी ? काबुल में इस समय हमारा एक भी राजनयिक नहीं है। मान लिया कि हमारी सरकार तालिबान से कोई ताल्लुक नहीं रखना चाहती लेकिन पूर्व राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री हामिद करजई और डॉ. अब्दुल्ला तो हमारे मित्र हैं। वे मिली-जुली सरकार बनाने में जुटे हुए हैं। उनकी मदद हमारी सरकार क्यों नहीं कर रही है ? हम अफगानिस्तान को पाकिस्तान और चीन के हवाले होने दे रहे हैं। हमारी सरकार की भूमिका इस समय काबुल में पाकिस्तान से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो सकती थी, क्योंकि तालिबान खुद चाहते हैं कि एक मिली-जुली सरकार बने। इसके अलावा तालिबान ने आज तक एक भी भारत-विरोधी बयान नहीं दिया है। उन्होंने कश्मीर को भारत का अंदरुनी मामला बताया है और अफगानिस्तान में निर्माण-कार्य के लिए भारत की तारीफ की है। यह सोच बिल्कुल पोंगापंथी और राष्ट्रहित विरोधी है कि हमारी सरकार तालिबान से सीधा संवाद करेगी तो भाजपा के हिंदू वोट कट जाएंगे या भाजपा मुस्लिमपरस्त दिखाई पड़ने लगेगी। तालिबान अपनी मजबूरी में पाकिस्तान का लिहाज़ करते हैं, वरना पठानों से ज्यादा आजाद और स्वाभिमानी लोग कौन हैं ? मोदी सरकार ने सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता करते हुए वह अवसर भी खो दिया, जबकि वह काबुल में सं.रा. शांति सेना भिजवा सकती थी। विदेश मंत्री जयशंकर को अपनी खिंचाई के लिए पहले से तैयार रहना होगा और अब जरा मुस्तैदी से काम करना होगा, क्योंकि भाजपा के पास विदेश नीति को जानने-समझनेवाले नेताओं का बड़ा टोटा है।

*(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष और अफगान मामलों के विशेषज्ञ हैं)*



About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: