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मधेशी भाषा और धोती, कुर्ता, गमछा और पगरी पर लटकता मधेश : कैलाश महतो

कैलाश महतो, पराश ।सुधरना और सुधार करना अच्छी बात है । उससे भी अच्छा समझना और रिअलाइज करना होता है । मगर न सुधरने या सुधारने की स्थिति है, न समझने और एहसास करने की मंसा है । दिखने और दिखाने में भले ही सफलता मिल जाय, मगर सामूहिक प्राप्ति की संभावना अत्ति दयनीय रहना तय है ।

२०७४ जेष्ठ आषाढ़ की बात है । डा. वीरेन्द्र यादव जी को स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन के मुखिया ने मधेश की साझा राष्ट्र भाषा पर परीक्षण डाटा लेने के लिए झापा से कंचनपुरतक की दौर करबाया था । उसका रिपोर्ट परासी और राजविराज के दो बैठकों में सगर्व पेश किया गया, जिसमें तकरीबन ८२% मधेशियों ने मधेश में हिन्दी भाषा को प्रथम सम्पर्क और साझा राष्ट्र भाषा का मान्यता दिया था । स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन ने हिन्दी भाषा को ही मधेश का प्रथम राष्ट्र भाषा का दर्जा दिया था ।

२०७२ का संविधान जारी पश्चात नेपाल के दूसरे प्रतिनिधि सभा के शपथ ग्रहण में दो उधारु, मगर आवश्यक कलायी खेल समाचार  दिखे गये हैं : एक यह कि एक पार्टी नेता ने “मधेशी भाषा” में और दूसरे मधेशी सांसद द्वारा “धोती, कुर्ता, पगड़ी और गमछा” में शपथ लेना ।

भाषायी और सांस्कृतिक रूप से दोनों कर्मकाण्ड बिलकुल सही है । होना भी यही चाहिए, जिसकी चमकदार समाचार विगत में नहीं बन पाये थे । वैसे इन दो कर्मकाण्डों का नेपाली छापा और इलेक्ट्रॉनिक मीडियाओं में क्या स्थान मिलेगा, यह देखना बांकी है । मगर इन दो घटनाओं का चर्चा दोनों सांसदों के भक्तों ने फेसबुक के सामाजिक सञ्जालों पर डाल दिये हैं ।

दोनों सांसदों के इन दो खेलों के पीछे के मकसद क्या है, उसका केवल आकलन किया जा सकता है । मगर इतना स्पष्ट है कि मधेश से “उधारु वाह वाही” लेने का कसरत जरुर है ।

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समान्य सी बात है कि जब एक नेपाली विदेश में राष्ट्रिय काम से जाता है, तो वो अपना नेपाली पोशाक लगाकर नेपालीपन दर्शाता है । मगर समान्य रुप से हर जगह कोई भी अलाइट नेपाली भी इंग्लिस्तानी पोशाक ही पहना दिखता है । विचार करने बाली बात है कि हर यूरोपियन और अमरीकी हर हाल, चाल और मौके पर वह अपना ही पोशाक पहनता है । देश में हों या विदेश में – उसे कोई फर्क नहीं पडता । हर जगह और हर अवसर पर उसका राष्ट्र और राष्ट्रीयता उसके साथ, उसके कपडे, उसके भाव और उसके  चाव में रहता है । मगर नेपाली और मधेशी का राष्ट्र और राष्ट्रीयता क्षणिक क्षणों में; संसद में, शपथ ग्रहणों में और कुछ देशभक्तीय अवसरों में ही होता है, जिसका प्रदर्शन पहाड़ी नेपाली दौरा सुरुवाल और टोपी में, और मधेशी‌ नेपाली लोग धोती, कुर्ता, पगड़ी और गमछा में दिखाता है ।

वस्तुतः राष्ट्र और राष्ट्रीयता केवल संसद, राष्ट्रीय कार्यक्रम और विदेशी शैरों में ही नहीं, अपितु वह अविछिन्न और अटूट होता है । वह भाव में होता है, दांव में नहीं । मगर जितने भी देशभक्त अलाइट नेपाली और मधेशी राष्ट्रवादी हैं, सारे का देश और राष्ट्रभक्ति दांव में ही दिखता है ।

एक कहावत है, “रसरी जैड गेल, गठडी रैह गेल ।” संविधान-२०७२ के बाद २०७४-७९ की संसद में ३६ मधेशी सांसद रहे, जो कर्मकाण्डी हिसाब से ही क्यों न हो – मधेश मुद्दा और अधिकार की बात कर लेते थे । इस २०७९-८४ के सदन में जम्मा २२ मधेसी सांसद हैं (जिसमें केवल १७ सांसद तयोडा बहुत मधेश का बात कर सकता है । ५ जो पहाड़ी सांसद हैं, वे मधेशवादी दलों के चरित्र, योजना और निर्णयों को अपने राज्य को खबर भेजने का ही काम करेंगे, जिन्हें राज्य द्वारा उसी उद्देश्य से सेट किया गया है), जिन्होंने मधेशी भाषा और मधेशी पोशाक पर गुलछर्रे उडाने का साहस किया है । देखना यह है कि २७५ प्रतिनिधि सभा सदस्य में ३६ उन सांसदों ने सदन का बथुवातक नहीं उखाड़ पाये तो मधेशी भाषा और पोशाक लगाकर शपथ लेने बाले दो घण्टे २२ साहब लोग क्या करते हैं ।

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इस राज्य के विभेदी चरित्र को नहीं समझ पाना भी मधेश राजनीति की क्षति है । जिस संघीय प्रणाली, जिस समावेशीकरण और जिस राजनीतिक परिवर्तन के लिए मधेश ने इतनी बडी कुर्बानी दी, शहादत की इतनी बडी चाङ्ग लगा दी, उसमें भी मधेशियों को उसका भागीदारी नहीं मिल पा रहा है । सात प्रदेशों में भी सरकार मधेशमैत्री न होना, गवर्नर मधेशी न होना (हुए भी तो संघीय सरकार के कठपुतली), प्रशासन में मधेश कमजोर, न्यायालय में मधेश शुन्य, नौकरी और रोजगारी में किल्लत, दलित और जनजातियों के अवसरीय हक प्राप्ति में शुन्य, महिलाओं के आरक्षण कोटा में मधेशी महिला शुन्य प्रायः होती रही हैं ।

कोरोना भ्रष्टाचार, टेलिकम अनियमितता, सुडान घोटाला, वाइड और न्यारो वडी घोटाला, सोना और एनसेल घोटाला, काठमाण्डौ के सरकारी भूमि महाघोटाला, भीओआइपी काण्ड से बडा काण्ड क्या मधेश प्रदेश का साइकिल घोटाला, वजेट घोटाला, विकास घोटाला, बेटी सुरक्षा रकम घोटाला है ? मनाङ्गे काण्ड, चरी काण्ड, प्रचण्ड और ढुंगेल का हत्या काण्डों से रेशम थारु का हत्या आरोप मिलता है ? रवि लामिछाने, रामचन्द्र पौडेल सुपुत्र, सुजाता कोइराला, अनुराधा कोइराला, राम कार्कियों के फर्जी और दोहरे नागरिकताओं से कमसल किसी मधेशी का नागरिकता है ? राज्य का रासन पानी खाने बाले सेना और सशस्त्र के कायरतापूर्ण अनुपस्थित में देश की सीमा रक्षा करने बाले मधेशियों को विदेशी कहना कितनी लज्जास्पद देशभक्ति है ?

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मधेशी भाषा का पूर्ण नामाकरण और मान्यता बिना ही मधेशी भाषा में शपथ लेने का स्टण्ट करना ठीक वैसा ही पाखण्डीपन है, जैसा कि मधेश देश बनाना था । मधेश को अब पूर्णतया सतर्क रहना होगा कि अलग देश देते देते उसके नारेतक को बेच खाने बाले कहीं भाषा का भी सौदा न कर लें । दो घण्टे के लिए सरपर पगडी, वदन पर कुर्ता, कन्धे पर गमछा और पैरों को धोती से ढक लेने से मधेश का पहचान कायम हो जाय, इसकी गारण्टी तो कहना मुस्किल है – मन्त्री बनने के लिए एक बार्गेनिंङ्ग का जलवा हो सकता है ।

समग्र में मधेशी भाषा में शपथ और धोती, कुर्ता, पगडी और गमछा दो मधेशी नेताओं के व्यक्तिगत चर्चा, विज्ञापन, स्वार्थी स्टण्ट और छमछमाहट के आलावा और कुछ नहीं है, जबतक संसद में मधेशियों का समानुपातिक पहुँच और प्रतिनिधित्व नहीं होगा । मधेशी भाषा और धोती, कुर्ता, गमछा और पगडी पर मधेश लटकता रहेगा और उसमें से रिसने बाला गन्दा और जूठा रस मधेशी नेता चाटता रहेगा ।

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