अमेरिका ने नेपालियों को बिना झंझट ग्रीनकार्ड देने का फैसला किया
एक तस्वीर के दो पहलू : श्वेता दीप्ति,
काठमांडू, १५-४-०१४ । आज एक बार फिर नेपालियों की तकदीर जगी है । अमेरिका ने कई नेपालियों को बिना किसी झंझट के ग्रीनकार्ड देने का फैसला किया है । जी हाँ चार हजार एक सौ इक्यानवे नेपाली को आज डि भी पड़ा है । यानि तथाकथित उज्जवल भविष्य उनका इंतजार कर रहा है । अपने देश की बदहाली से मुक्त होने के लिए उन्हें बधाई । किन्तु क्या पराए देश में उन्हें अपने देश की मिट्टी याद नहीं आएगी ? शायद नहीं भी आए क्योंकि पेट की भूख भावनाओं को जगह नहीं देती । दिन प्रतिदिन विदेश के प्रति नेपालियों का मोह बढ़ता जा रहा है परिवार टूट रहे है., सम्बन्ध बिखर रहे है. पर ये कैसी भूख है कि निरन्तर यहाँ पलायन हो रहा है । कहाँ है हमारी सरकार और कहाँ है युवा उर्जा को खर्च करने की सही नीति । देश खामोश है, सरकार खामोश है किन्तु पेट की भूख तो खामोश नहीं हो सकती न ।
अब तस्वीर् का दूसरा भयानक सच कि नेपालियों के वैदेशिक पलायन के क्रम में उनकी मृत्यु की बढ़ती संख्या उनके करुण स्थिति का भयावह चित्र प्रस्तुत करती है । वि. सं. २०७० के पूरे वर्ष में विदेश में नेपाली की मृत्यु होने की संख्या ८४५ पुरुषों की और १९ महिलाओं की है । और जो अवैधानिक रूप से गए हैं उनकी मौत की संख्या तो क्या उनके शव तक को लाने की स्थिति नहीं है ।
वैदेशिक रोजगार प्रवद्र्धन बोर्ड के अनुसार मलेशिया में २९९, सउदी अरब में २३३, कतार में १८४, दुबई में ५८, कुवैत में ४८ और भी ऐसे कई आँकड़ें हैं जो हमें विचलित करती हैं । सुनहरे भविष्य की तलाश में गए नेपाली की कमाई की जगह उसकी लाशें आ रही हैं । मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का शिकार होकर वो आत्महत्या करते हैं और यहाँ उनके परिवार बेमौत मरते हैं पर हमारी सरकार जिन्दा है । क्या यही है युवाओं का भविष्य ?