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महत्वाकांक्षी युवती, सपूत की ‘सकम्बरी’ और समाज: लिलानाथ गौतम



लीलानाथ गौतम, हिमालिनी अंक मई । सामाज में व्याप्त विविध विषयवस्तु को कलात्मक स्वरूप देकर गीत–संगीत और वीडियो प्रस्तुत करना लोक गायक तथा कलाकार प्रकाश सपूत की विशेष खूबियां हैं । पिछली बार उन्होंने ‘सकम्बरी’ नाम से एक सांगीतिक वीडियो अपने युट्युव चैनल से सार्वजनिक किया, जो कई दिन तक ट्रेडिङ में रहा । यह आलेख तैयार करते वक्त इस वीडियो को २ करोड़ ५० लाख से भी अधिक लोग देख चुके हैं । गीत नेपाल में ही नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में चर्चित बन गया । कई विदेशी (जो नेपाली भाषा के संबंध में कुछ भी नहीं जानते) गायकों ने भी सपूत द्वारा प्रस्तुत इस गीत को गाने का प्रयास किया है, टिकटॉक वीडियो बनाया है । ‘सकम्बरी’ नाम से प्रस्तुत सांगीतिक वीडियो को लेकर कई बुद्धिजीवियों ने पक्ष और विपक्ष में बहस किया । वीडियो में प्रस्तुत विषयवस्तु कुछ लोगों की दृष्टिकोण में सच्चाई के करीब है, लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि वीडियो में महिलाओं का चरित्र हत्या की गई है ।
वीडियो में प्रस्तुत कथावस्तु

वीडियो में ‘फूलमाया’ नाम की एक ग्रामीण युवती है, जो आर्थिक रूप से कमजोर है, खुद आत्मनिर्भर बनना चाहती है, कलाकार (मॉडल) बनना उसका पैसन है । युवती की मां अपने ही गाँव के (लेकिन काठमांडू में रहनेवाले) एक युवक को फोन करती है और कहती है कि फूलमाया काठमांडू आ रही है, उसकी देखभाल और रोजगार के लिए खयाल रखें । काठमांडू में रहनेवाला युवक उसके आग्रह को सहर्ष स्वीकार करता है । जिस युवक को अभिभावक मानकर फूलमाया काठमांडू आती है, उसी के द्वारा वह प्रथम रात में ही बलात्कृत हो जाती है । यही से शुरु होती है एक युवती की संघर्षपूर्ण कथा । डान्सबार से शुरु उसकी जिन्दगी अन्ततः राजनीति तक पहुँच जाती है और युवती
‘फूलमाया’ से ‘सकम्बरी’ बन जाती है ।

वीडियो में युवती की महत्वाकांक्षा और उस महत्वाकांक्षा के चलते युवती द्वारा की गई गलती को दिखाया गया है । नाम और दाम के लिए युवती कुछ भी करती है, इससे उनको बहुत सारे पैसा तो मिल जाता है । लेकिन जीवन अनिश्चित बन जाता है, पुरुष की नजर में उसका जीवन नरक बन जाता है । ऐसी ही पृष्ठभूमि में उनको राजनीति में प्रवेश करने का ऑफर आ जाता है और गीतिकथा समाप्त हो जाती है । गीत में प्रस्तुत कथा, शब्द÷संगीत और निर्देशन गायक सपूत ने की है । मॉडलिग में कुसुम शर्मा और स्वयं प्रकाश सपूत की भूमिका मुख्य है, साथ में चर्चित अभिनेता सुनिल थापा, निक्स शर्मा, संजोग रसाइली, सरस्वती अधिकारी, सरिता राजोपाध्याय और सालिक भण्डारी भी हैं । गायक सपूत ने कहा है कि इस गीतिकथा का दूसरा भाग भी आनेवाला है । भाग– २ में कथा किस तरह आगे बढ़ता है, यह प्रतीक्षा का विषय है ।

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विवाद और बहस

आत्मनिर्भर होने की चाहत, मॉडलिङ और कलाकारिता का पैसन लेकर काठमांडू आनेवाली एक युवती कामयाबी के लिए पुरुष की सहायता बिना आगे नहीं बढ़ पाती । अभिभावक की भूमिका में रहा पुरुष प्रथम भेंट में ही यौन दुव्र्यहार करता है, युवती के मन में पुरुष के प्रति घृणाभाव पैदा हो जाता है । लेकिन कामयाबी के लिए वह इसी को हथियार बना लेती है, समाज में प्रतिष्ठित और पैसेवाले पुरुषों के नजदीक हो जाती है, नाजायज सम्झौता करती है । अन्ततः नाम और दाम दोनों मिल जाता है ।

आलोचकों का मानना है कि अपनी ही ताकत में कामयाब महिलाओं के चरित्र पर वीडियो ने आक्रमण किया है, साथ में महिलाओं को उसी तरह का जीवन जीने के लिए प्रेरित किया है । दूसरा विवाद है– वीडियो में प्रस्तुत ‘सकम्बरी’ नाम और पात्र । साहित्यकार पारिजात द्वारा लिखित चर्चित उपन्यास

‘शिरिषको फूल’ के प्रमुखपात्र (नायिका) का नाम ‘सकम्बरी’ है । साहित्यकार परिजात को उच्च सम्मान करनेवाले लोगों का मानना है कि चर्चित उपन्यास की एक पात्र को वीडियो में प्रस्तुत कर सपूत ने ठीक नहीं किया । उन लोगों का कहना है कि ‘शिरिषको फूल’ की नायिका ‘सकम्बरी’ और भीडियो में प्रस्तुत नायिका का चरित्र मेल नहीं खाता । वीडियो में एक पुरुष पात्र (जो म्युजिक वीडियो के डाइरेक्टर हैं) फूलमाया को उनका नाम पूछते है और फूलमाया अपना नाम ‘सकम्बरी’ बताती है । उस वक्त उनके हाथ में पुस्तक (पारिजात रचित उपन्यास ‘शिरिषको फूल’) होता है । अपरिचित पुरुष भी अपना नाम ‘सुयोगवीर’ बताता है, जो ‘शिरिषको फूल’ का ही पुरुष पात्र है । लेकिन बाद में पुरुष कहता है कि यह उनका मजाक है, वास्तविक नाम उनका ‘सुयोगवीर’ नहीं है, लेकिन युवती कुछ भी नहीं कहती । इसी दृश्य को लेकर कुछ साहित्यकार विरोध में उतर आए हैं ।
तब भी मुख्य विवाद और बहस का विषय महिलाओं की कामयाबी और उनके चरित्र पर है । गीतिकथा में प्रस्तुत दृश्य को लेकर विरोध करनेवाले लोग सामने आते ही उक्त समूह को प्रतिवाद करनेवाले समूह भी निकल पड़े । उन लोगों का मानना है कि सपूत की गीतिकथा ‘सकम्बरी’ हमारी समाज का आइना है, इसको विरोध करने से सत्य को नहीं छिपाया जा सकता । वे कहते हैं कि समाज में व्याप्त पुरुषवादी चिन्तन और हिंसा ही ‘सकम्बरी’ में एक कला के रूप में प्रस्तुत है, इसके लिए सपूत को धन्यवाद देना चाहिए ।

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‘सकम्बरी’ एक सच्चाई

पक्ष और विपक्ष में जितना भी तर्क हो, वीडियो में समाज और जीवन की कुछ सच्चाइयां प्रस्तुत है । हां, वीडियो में नारी चरित्र का विद्रुपीकरण जरूर किया गया है, लेकिन नारी को एक ‘भोग्या’ के रूप में किसने प्रयोग किया ? युवती, जिसको वह बड़ा भाई कहती है, उसी के द्वारा वह क्यों बलात्कृत हो जाती है ? रोजगार के लिए युवती जहां पहुँचती है, वहां के मालिक (रोजगारदाता) युवती के बदन को देखकर क्यों पापी बन जाता है ? इसतरह के बिम्ब के रूप में प्रस्तुत ‘सकम्बरी’ गीतिकथा समाज का परिदृश्य नहीं है ? इन प्रश्नों में अगर हम लोग विचार करते हैं तो वीडियो में कुछ सच्चाइयां भी नजर आती है ।

हम लोग खुद को जितना भी आधुनिक और उत्तरआधुनिक क्यों ना कहें, लेकिन महिलाओं के प्रति जो दृष्टिकोण कल था, उसमें ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ है । नेपाली समाज के लिए ही नहीं, विश्वव्यापी दृष्टिकोण में भी सपूत की ‘सकम्बरी’ मेल खाती है । प्रतिभा प्रस्फुटन, फैशन शो, मॉडलिङ आदि के नाम में विश्वव्यापी रूप में महिला केन्द्रीत जो कार्यक्रम होता है, क्या वहां ‘सकम्बरी’ में प्रस्तुत कथा में नहीं पाया जाता ? इसीलिए सपूत की ‘सकम्बरी’ एक वास्तविक कथा भी है । हां, हर महिला और पुरुष की जीवन में यही कथा होती है, ऐसा नहीं है । लेकिन आम तौर पर कथा सच्चाई से बाहर नहीं है । दास युग से लेकर समान्तवादी युग तक समाज में पुरुषसत्ता हावी है, परिष्कृत रूप में आज भी परिस्थिति लगभग वही है ।

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हमारा सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक चरित्र आज भी महिला को ‘भोग्या’ की नजर से ही देखता है, समाज का यही पार्ट ‘सकम्बरी’ में दिखाया गया है ।
जीविकोपार्जन के लिए हो या नाम और दाम के लिए, एक युवती जो संघर्ष करती है, उसमें पुरुषवादी चिन्तन हमेशा बाधक बन जाता है । यौन के सवाल में पुरुष अपने मनचाहा जो कर्म करता है, उसमें कोई भी प्रश्न नहीं उठाता, लेकिन वही कर्म महिला बाध्यतावश करती है तो उसकी पवित्रता पर प्रश्न खड़ा हो जाता है । प्रस्तुत वीडियो में सकम्बरी ने यही प्रश्न किया है । काठमांडू प्रवेश करते वक्त आश्रय देनेवाले ‘बलात्कारी पुरुष’ को भी सकम्बरी ‘भाई’ सम्बोधन करती है । कुछ हद तक प्रेमभाव प्रकट करनेवाले उस पुरुष को सम्बोधन करते हुए सकम्बरी कहती है– ‘भाई ! इस नरक में मुझे किसने पहुँचाया ? मेरे लिए आप और अन्य लोगों में क्या अन्तर है ? सबने मिलकर मुझे यहां तक पहुँचाया । सच्चाई तो यही है ।’ इसी वक्त मन्त्री क्वाटर से फोन आता है और कहा जाता है कि ‘सकम्बरी’ राजनीति के लिए आवश्यक पात्र है, उनको अब राजनीति में आना होगा ।
‘सकम्बरी’ की राजनीतिक यात्रा किस तरह आगे बढ़ती है, यह प्रतीक्षा का विषय है । लेकिन ‘सकम्बरी’ हमारी समाज की पात्र है, इसको अस्वीकार करने की हिम्मत शायद कम ही लोगों में है । गीतिकथा को विरोध करने से पहले अब हर पुरुष को सोचना होगा, क्या मैं भी फूलमाया को सकम्बरी बनानेवालों में से तो नहीं हूँ ?



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