क्या नेपाल के अच्छे दिन आने वाले हैं
डा. श्वेता दीप्ति :यह पहली मरतबा नहीं है कि भारत में भाजपा की सरकार बनी हो । किन्तु भारतीय लोकतंत्र का यह महापर्व चुनाव कम, एक तूफान ज्यादा था । वह तूफान जो भारत ही नहीं तकरीबन विश्व पटल को मोदीमय कर गया । भाजपा को यह तो पता था कि वह सत्ता में आने वाली है, परन्तु इस धमाकेदार वापसी का अंदाजा उसे भी नहीं था । आबोहवा बदली हर्ुइ नजर तो आ रही थी पर असर इतना गहरा होगा, यह अंदाजा किसी ने नहीं किया था । मोदी का आना फिलहाल शक्तिशाली राष्ट्र से लेकर कमजोर राष्ट्र के बीच तक चर्चा का विषय बना हुआ है । अटकलों और उम्मीदों का बाजार गर्म है । हर कोई सम्भावनाओं पर विचार कर रहा है ।
भाजपा एक दक्षिणपन्थी कट्टर हिन्दू सांस्कृतिक राष्ट्रवादी, यथास्थितिवादी तथा यथार्थवादी राजनीतिक शक्ति के रूप में उभर कर सामने आई है । इस बार का भारतीय चुनावी माहौल बाहृय विदेशी नीति से अधिक आन्तरिक आर्थिक नीति में केन्द्रित था । शायद यही वजह थी कि बेरोजगारी, मंहगाई और गरीबी से जूझ रही भारतीय जनता ने बहुमत की सरकार लाने की ठान ली थी, जो उनकी उम्मीदों को पूरा कर सके । जिसका परिणाम आज सभी के सामने है । अँग्रेजी अखवार ‘द हिन्दुस्तान टाइम्स’ का कहना है कि “इस जनादेश का मतलब है कि लोग मोदी को पर्ूण्ा बहुमत देना चाहते थे ताकि वो देश को मौजूदा स्थिति से बाहर निकाल सके ।” और ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के संपादक शेखर गुप्ता लिखते हैं कि ‘आपका समय शुरु होता है अब’ जी हाँ, काँटो की जो सेज मोदी को मिली है, उसमें फूल बिछाने का समय शुरु हो चुका है । ताजपोशी हो चुकी है । एक ओर जहाँ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का आना चर्चा में रहा वहीं श्रीलंका के विरोध ने भी विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा ।
नेपाल में सबसे अधिक यह सवाल उठ रहा है कि मोदी की नेपाल के प्रति क्या नीति होगी – क्या वो नेपाल को हिन्दू राज्य बना देंगे या फिर राजतंत्र की वापसी होगी – एक पक्ष अत्यन्त उत्साहित भी नजर आ रहा है । किन्तु आज बात विकास की होनी चाहिए थी, अर्थतंत्र में सुधार की होनी चाहिए थी जिससे आम नेपाली जनता राहत की साँस ले सके । पर इस सवाल ने ज्यादा जगह नहीं बनाई है । मोदी की नीति क्या होगी यह तो भारत तय करेगा किन्तु, हमारी नीति क्या होनी चाहिए इस बात पर चिन्तन की आवश्यकता है ।
विकास और आर्थिक समृद्धि में आखिर नेपाल क्यों पिछडÞा हुआ है – सन् १७४२ में पृथ्वी नारायण शाह के उदय के साथ ही नेपाल का आधुनिक काल शुरु होता है । पृथ्वीनारायण शाह के नेतृत्व में जो भौगोलिक एकीकरण अभियान हुआ, उसी के तहत नेपाल एक राष्ट्र के रूप में स्थापित हुआ । एक शताब्दी तक नेपाल आन्तरिक युद्ध और बाहृय युद्ध में उलझा रहा और इनके बीच विकास की बात गौण होती चली गई । उसके बाद १८४६ से १९५१ तक नेपाल एकतंत्रीय जहानियाँ राणा शासन के चंगुल में रहा । इस कालखण्ड में जनता शिक्षा, सूचना आदि से वंचित रही । इस समय देश पूरी तरह अंधकार के गर्त में समा गया था । यह वह समय था जब सम्पर्ूण्ा विश्व पूँजीवाद और साम्यवाद के वैचारिक संर्घष्ा में रत था । पर नेपाल इन सारी बातों से अनभिज्ञ था । सन् १९५० के राजनीतिक परिवर्तन के बाद विकास की सम्भावना दिखाई दी किन्तु वह भी सिर्फराजकेन्द्रित था । लम्बा समय गुजर चुका है पर आज भी यह सवाल ज्यों का त्यों है कि नेपाल का विकास कैसे होगा और इसमें हमारे पडÞोसी मित्र राष्ट्रों की भूमिका क्या होगी – आज भी हम इसी ज्वलन्त प्रश्न का सामना कर रहे हैं ।
हमें यह मानना होगा कि जब तक हम स्वयं अपनी स्थिति को दृढÞ नहीं करेंगे तब तक कोई हमारी सहायता नहीं कर सकता । मोदी ने अपनी ऐतिहासिक जीत के बाद जब अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी को सम्बोधित किया तो, उन्होंने वहाँ की जनता से यह अपील की कि, आप जब तक आगे नहीं आएँगे तब तक वाराणसी को मैं कुछ नहीं दे सकता । सफाई उनका मूलमंत्र था । उन्होंने कहा कि आप सभी सफाई में सहयोग करें, वाराणसी साफ होगा तो, उसका सौंदर्यीकरण होगा और जब सौदर्यीकरण होगा तो, पर्यटक आएँगे और जब पर्यटक आएँगे तो, वाराणसी की आर्थिक दर में वृद्धि होगी और जिस दिन ऐसा हो गया उस दिन आप सब लाभान्वित होंगे फिर तो वाराणसी और यहाँ की जनता का काया पलट होना तय है । यहाँ यह उद्धरण देने का तार्त्पर्य यह है कि अगर किसी से कुछ लेना हो तो पहल हमें ही करनी होगी । हमें एक नीति तय करनी होगी । नेपाली जनता अभी जिस अनिश्चित संक्रमणकाल से जकडÞी हर्ुइ है, उससे यथाशीघ्र बाहर निकलना होगा, संविधान बनाना होगा और लोकतांत्रिक पद्धति को आगे बढÞाना होगा । भारत के लिए हमारा विषय और एजेण्डा कुछ नया नहीं है, संधि पुनरावलोकन, सीमा सुरक्षा, जलस्रोत का सही उपयोग ये कुछ मुद्दे ऐसे हैं, जिनके लिए हम हमेशा भारत से अपेक्षा करते आए हैं । किन्तु इसके लिए हमारी आन्तरिक प्रक्रिया सुदृढÞ होनी चाहिए । उनका दृष्टिकोण सकारात्मक हो, इसके लिए हमारी सरकारी नीति परिपक्व होनी पडÞी । नेपाली नेता भारत जाते हैं पर वो देश हित से ज्यादा अपने या अपनी पार्टर्ीीो ज्यादा तरजीह देते हैं । मोदी ने चुनावी दौर में निजी क्षेत्र, निवेश, औद्योगिक विकास और प्रविधि को महत्व दिया और भविष्य में यही उनकी रणनीति होगी । आज जब नेपाल के विकास की बातें उठती हैं, तो यहाँ की जनता और सरकार को यह सोचना होगा कि मोदी की इस नीति से नेपाल किस तरह लाभान्वित होगा । उन्हें यह सोचना होगा कि, अनुकूल वातावरण कैसे बनाया जाय, जिससे भारत यहाँ बडÞी परियोजना में निवेश करने का मन बनाए । सरकार के भारत भ्रमण से ज्यादा भारतीय निवेशकर्ता को नेपाल भ्रमण कराया जाय और उन्हें एक अनुकूल वातावरण दिया जाय, ताकि वह निवेश की बात सोच सकें ।
नेपाल विद्युत संकट से जूझ रहा है । यह संकट नेपाल को हर रोज विकास की राह से पीछे ढकेल रहा है । उद्योग बन्द हो रहे हैं और नए उद्योगी आगे बढÞने से हिचक रहे हैं । किसी भी देश की आर्थिक व्यवस्था उस देश के लिए रीढÞ की हड्डी होती है और यह अगर कमजोर है तो वह देश पंगु होता है । नेपाल का उद्योग क्षेत्र विकास की राह पर चलना तो चाहता है पर राजनीतिक अस्थिरता उन्हें रोक लेती है । भारत के प्रधानमंत्री जिस नीति और सहकार्य की बात करते हैं, वह नेपाल के लिए भी सम्भावनाओं के द्वार खोल सकता है बशर्ते यहाँ की जनता और सरकार सही मायने में साथ दे । नेपाल को एक निश्चित राजनैतिक प्रक्रिया, सुनिश्चितता, निवेश का वातावरण और शांति सुरक्षा का माहौल पैदा करना होगा । उसे स्वयं एक विश्वासी सहयोगी के रूप में प्रस्तुत होना होगा । आपका पडÞोसी क्या करता है इस पर सोचने से पहले आपको एक स्वस्थ दृष्टिकोण, देश के भीतर सहमति और वार्ता प्रक्रिया में निपुणता के साथ आगे बढÞना होगा । देश अभी जिस संक्रमणकाल से गुजर रहा है उसे जल्द दूर करने की आवश्यकता है ।
जलस्रोत में विश्व का दूसरा धनी देश नेपाल है उसके बावजूद यहाँ विद्युतीय संकट है । कर्ण्ााली परियोजना कई वर्षों से लम्बित है । कोई सकारात्मक पहल नेपाल सरकार की ओर से होता दिखाई नहीं पडÞ रहा है । सामान्य जनता परेशान है । एक विद्युतीय संकट कई समस्याओं को जन्म देता है । मंहगाई की मार जनता झेलती है । इस एक परेशानी का अगर हल निकल जाय तो कई मसले स्वयं सुलझ जाएँगे । भारतीय कम्पनी निवेश करने के लिए तैयार है पर यहाँ की परिस्थितियाँ उनके अनुकूल नहीं हो पाती हैं । जनता का असहयोग, कमीशन का व्यापार और सरकार की ढुलमुल नीति सब मिलकर एक नकारात्मक वातावरण पैदा किए हुए हैं ।
भारतीय राजनीति में भाजपा का आना और खास कर नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना नेपाल में एक आशा का संचार पैदा अवश्य करता है । क्योंकि, मोदी की आर्थिक नीति का विश्व भी कायल है । चीन, अमेरिका, रूस और पाकिस्तान जैसे राष्ट्र मोदी के साथ मिल कर काम करना चाहते हैं । चीन से अगर भारत के सम्बन्ध सुधरते हैं तो नेपाल इस बात से फायदा ले सकता है । भारतीय प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण में र्सार्क देशों के प्रतिनिधियों को बुलाना यह संदेश सम्प्रेषित करता है कि मोदी अपने पडÞोसी देशों को साथ लेकर चलना चाहते हैं, जो उन्होंने चुनाव के दौरान भी कहा था । एक और बात जो उभर कर आ रही है कि सिर्फमोदी ही नहीं पडÞोसी देश भी उन पर विश्वास करना चाहते हैं । निर्वाचन परिणाम के चौबीस घन्टे के भीतर र्सार्क देशों ने उनपर अपना विश्वास जताया और उनके साथ काम करने की इच्छा जतलायी । ऐसे तो उनके घोषणा पत्र में विदेश नीति क्या होगी, इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं था किन्तु यह उल्लेखित अवश्य है कि, पडÞोसी देशों से मित्रता का सम्बन्ध कायम करना और र्सार्क देशों की स्थिति मजबूत करना उनका लक्ष्य होगा । इस बात से नेपाल को यह आशा तो होनी ही चाहिए कि, मोदी-नीति नेपाल के विकास में सहायक हो सकती है । शर्त यह है कि नेपाल अपनी नीति तय करे कि उसे फायदा किस रूप में लेना है । आज से पहले नेपाल के लिए जो भारतीय नीति रही, नेपाली जनता उसमें बदलाव चाहती है । वह छोटी-मोटी परियोजना नहीं बल्कि बडÞी परियोजना चाहती है जो नेपाल को मजबूत कर सके ।
इस सम्बन्ध में नेपाल के कुछ जाने-माने नेता और बुद्धिजीवियों से राय मांगी गई तो उनके विचार कुछ इस तरह से सामने आए –
तमलोपा के वर्तमान सभासद माननीय केदारनन्दन चौधरी जी से जब पूछा गया कि ‘मोदी जी का आना नेपाल के लिए क्या मायने रखता है -‘ तो उनका कहना था कि, “सबसे
पहले तो मैं इस ऐतिहासिक जीत के लिए नरेन्द्र मोदी जी को अपनी ओर से और नेपाल की जनता की ओर से बधाई और शुभकामना देना चाहता हूँ । भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री राजनाथ जी नेपाल के प्रति हमेशा से सकारात्मक रहे हैं । मेरा मानना है कि उनका भारतीय सत्ता में आना नेपाल के लिए भी महत्वपर्ूण्ा होगा । इनकी दिलचस्पी नेपाल में है और व्यक्तिगत रूप से और मोदी जी की नीतियों के अध्ययन से भी मुझे लगता है कि नेपाल के विकास में इनका सकारात्मक सहयोग हमें मिलेगा । हम आशावादी हैं और कल के लिए आशावादी सोच ही रखते हैं । मधेश की जनता भी उनसे उम्मीद रखती है । आज नेपाल को भी ऐसे ही दृढÞ सोच वाले प्रतिनिधि की आवश्यकता है । नेपाल के राजनीतिज्ञों को भी इनसे सीख लेनी चाहिए । पुनः मैं उन्हें शुभकामना देता हूँ ।”
जब तमलोपा के पर्ूव सभासद माननीय कवीन्द्रनाथ ठाकुर जी से हमने पूछा कि ‘क्या नेपाल के सर्न्दर्भ में भारतीय नीति में कोई परिवर्तन होना चाहिए -‘ तो उन्होंने बेवाकी से कहा, “जी हाँ, परिवर्तन की आवश्यकता तो है । हम सभी मोदी जी के आने से प्रसन्न हैं, उन्हें शुभकामना देते हैं । मोदी जी की आर्थिक नीति की काफी चर्चा होती आई है, तो मैं नेपाल की ओर से उनसे चाहता हूँ कि नेपाल के लिए भी कोई मजबूत विदेश नीति बनानी चाहिए, निवेश करना चाहिए । अब बहलावे के लिए नहीं बल्कि विकास के लिए हमें उनका साथ चाहिए जो हमारे सदियों से चले आ रहे रिश्ते को और भी मजबूती प्रदान कर सके । मधेश, पहाडÞ सभी उनसे एक सही पहल की अपेक्षा रखता है ।”
एमाले के वर्तमान सभासद माननीय शीतल झा जी से हमने पूछा कि ‘मोदी सरकार किस तरह नेपाल के विकास में सहयोग
कर सकती है -‘ तो आपका जवाब था कि “अगर मोदी सरकार हमारे धर्मस्थल के विकास और प्रवर्द्धन में सहयोग करे तो नेपाल में पर्यटकों की संख्या में बढÞोत्तरी होगी जो हमारी आर्थिक स्थिति को मजबूत करेगी । मोदी जी स्वयं धार्मिक प्रवृत्ति के हैं, ऐसे में नेपाल जो देव भूमि है, उसके लिए उनके अन्दर अवश्य लगाव होगा । जनकपुर का सम्बन्ध दोनों देशों से है, इसी तरह हमारे अनेक ऐतिहासिक धर्मस्थल हैं जिनके संरक्षण की आवश्यकता है । मैं चाहता हूँ कि इस ओर भी उनका ध्यान जाना चाहिए । नेपाल में कई ऐसी जगहें हैं जो विश्वसम्पदा के अर्न्तर्गत आती हैं किन्तु उनका समुचित रख रखाव नहीं हो पा रहा है । भारत हमेशा से हमारा सहयोगी राष्ट्र रहा है इस नाते भी हम उनसे उम्मीद करते हैं ।”
इसी तरह हमने नेपाल के जाने-माने समाजसेवी माननीय मिथिलेश कुमार झा जी के सामने यह सवाल उठाया कि ‘मोदी जी की विदेश नीति के सम्बन्ध में आपका क्या ख्याल है -‘ इस प्रश्न पर उन्होंने स्पष्टता के साथ जवाब दिया कि, “र्सार्क देशों के मजबूत प्रतिनिधि के रूप में माननीय नरेन्द्र मोदी जी उभर कर आए हैं । उनकी क्षमता और कार्यकुशलता उन्हें अग्रपंक्ति में लाकर खडÞा करती है । जहाँ तक उनकी विदेश नीति का सवाल है, तो मैं उनके ही कथन के द्वारा उनकी विदेश नीति को व्याख्यायित करूँगा, आपने कहा है, कि ‘मैं किसी भी पर्ूवाग्रह से ग्रसित होकर या बदला लेने के लिए भारत का नेतृत्व नहीं करना चाहता । किन्तु इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि भारत किसी के दवाब में रहेगा । मैं न किसी को आँख दिखाऊँगा, न अपनी आँखें झुकाउँगा, मैं आँखे मिलाकर बातें करूँगा ।’ इस कथन से उनकी विदेश नीति स्पष्ट होती है कि वो किसी को दबाने में नहीं बल्कि साथ मिलकर चलने में यकीन रखते हैं । उन्होंने यह भी कहा है कि, अगर हमारे पडÞोसी सुखी होते हैं तभी हम भी सुख से रह सकते हैं । एक सुखद संयोग यह भी है कि नेपाल ‘न’से शुरु होता है और नरेन्द्र मोदी भी ‘न’ से शुरु होता है तो राशिगत भी इनका झुकाव नेपाल से होना चाहिए यह मेरा मानना है । वैसे मैं सकारात्मक सोच रखता हूँ और इसलिए उम्मीद करता हूँ कि मोदी जी का आना हमारे लिए सकारात्मक होगा ।”
मोदी जी से जुडÞे सवाल के साथ हमने हिन्दी, नेपाली और मैथिली के विद्वान लेखक श्री चन्द्रशेखर उपाध्याय जी से बात
की । हमने पूछा कि ‘मोदी जी का आना समग्रता में नेपाल के लिए क्या मायने रखता है -‘ आपने जवाब में कहा कि “सबसे पहले तो मैं चाहूँगा कि मोदी सरकार को सीमा विवाद की ओर ध्यान देना चाहिए ताकि नेपाल और भारत के बीच विश्वास का सम्बन्ध कायम हो सके । इसके साथ ही नेपाल के आवागमन का मुख्य साधन सडÞक है इसके विकास और सुधार की ओर भी ध्यान देना चाहिए । नेपाल जलस्रोत का धनी देश है फिर भी यहाँ विद्युतीय संकट है इसके लिए कोई पहल करनी चाहिए । मोदी जी स्वयं को मजदूर मानते हैं तो उन्हें यहाँ भी उद्योग धन्धे को बढÞावा देना चाहिए ताकि यहाँ के मजदूरों को भी जीविका प्राप्त हो सके । लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि इन सारी बातों की शुरुआत कठिन है क्योंकि हमारे देश की जो स्थिति है उसे सुधारना चाहिए । संविधान का निर्माण तत्काल होना चाहिए तभी यह सम्भव है । अगर हम आगे बढÞें तो मुझे पूरा विश्वास है कि मोदी जी का आना हमारे देश के लिए शुभ संकेत है । साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह तो तय है कि राजतंत्र की वापसी सम्भव नहीं है और हिन्दू राष्ट्र के सवाल पर भी मोदी जी स्वयं कुछ नहीं कर सकते हैं, हाँ वो यह जरूर कह सकते हैं कि इस सवाल पर जनमत संग्रह कराया जा सकता है । वो भी नेपाली जनता की भावनाओं को ध्यान में रख कर ।”
हमारी अगली विज्ञ थीं नेपाल कम्युनिष्ट पार्टर्ीीी संविधान सभा सदस्य बाँके की गौरा परर्साई जी । मोदी जी से जुडÞे सवाल पर आपने कहा, “भारतीय जनता पार्टर्ीीे नेता नरेन्द्र मोदी भारत के लोकसभा चुनाव में र्सवाधिक मत पाकर प्रधानमंत्री के पद पर निर्वाचित हुए हैं, उन्हें मेरी बधाई । मैं व्यक्तिगत रूप से उनके जीवन से प्रभावित हूँ । हमें उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए । अभाव में पले होने के बावजूद उन्होंने अपने पद का कभी भी दुरूपयोग नहीं किया, न ही भ्रष्टाचार में लिप्त हुए । विकास उनका मूल मंत्र है और इसी ने उन्हें आज इस पद तक पहुँचाया है । मोदी जी से हमें भी उम्मीद है कि वो नेपाल के लिए भी कोई कारगर नीति लाएँगे जो हमारे लिए विकास की राह खोलेगा ।”
इसी तरह हमने पर्ूव सहकारी तथा गरीबी निवारण मंत्री तथा नेपाल परिवार दल के केन्द्रीय अध्यक्ष, संविधान सभा सदस्य माननीय एकनाथ ढकाल जी से उनकी मोदी जी के बारे में राय जाननी चाही । उन्होंने उन्हें बधाई दी और यह विश्वास जताया कि नेपाल और भारत के जो परापर्ूव काल से सम्बन्ध रहे हैं उनमें मोदी जी के कार्यकाल में और भी दृढÞता आएगी । और हमारी आर्थिक स्थिति में भी सुधार की सम्भावना है ।
ये कुछ विचार थे, जो हमने लिए और जो नेपाली जनता के विचारों के संवाहक हैं । उम्मीदें बहुत हैं । यह तो समय बताएगा कि भारत और मोदी सरकार नेपाल के लिए क्या नीति तय करती है, किन्तु इतना तो स्पष्ट है कि नेपाल में कुछ पाने की दृढÞता होनी चाहिए । मोदी जी ने गुजरात के विकास हेतु जापान की प्रविधि और पूँजी का उपयोग किया । वह नेपाल के लिए भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है और भविष्य में अगर भारत के रिश्ते चीन से सुधरते हैं तो नेपाल इन दो विकसित राष्ट्रों के बीच व्यापार का सेतु बन सकता है और सडÞक, रेल संजाल का विकास कर के अपनी स्थिति मजबूत बना सकता है । नेपाल, निवेश अभिवृद्धि, दक्षिण एशियाली देशों के बीच व्यापार पर््रबर्द्धन, धार्मिक और सांस्कृतिक पर्यटन विकास आदि में मोदी जी के आर्थिक नीतियों से फायदा ले सकता है लेकिन इसके लिए नेपाल को आन्तरिक रूप से स्थिर, दृढÞ और संवैधानिक रूप से मजबूत होना पडÞेगा । जब हम अपनी सहायता स्वयं करते हैं, तभी पडÞोसी भी सहायता के लिए अपना हाथ बढÞाते हैं । अगर नेपाल की नीति परवर्तित होती है तो निश्चय ही नेपाल के भी अच्छे दिन आने की सम्भावना प्रबल होगी ।