बालेन – कहाँ है नगरपिता ?

काठमांडू, २० भादव महानगर प्रमुख की पत्नी आज से कुछ ही दिन पहले अपनी बच्ची को एक संभवतः देश के सबसे मंहगे अस्पताल से दूध पिलाकर वापस लौट रही थी । दिन शनिवार का था । यह सार्वंजनिक छुट्टी का दिन होता है । लोग सरकारी सवारी का प्रयोग नहीं कर सकते हैं । ऐसे में महानगर प्रमुख की पत्नी सरकारी सवारी में सवार हो अस्पताल से वापस लौट रही थी । ट्रैफिक की नगर गाड़ी पर गई । उसने गाड़ी को रोक दिया और ड्राइवर से केवल इतना ही कहा कि –क्या तुम्हें मालुम नहीं है कि सार्वजनिक छुट्टी के दिन कोई भी सरकारी व्यक्ति सरकारी सवारी का प्रयोग नहीं करता है या फिर उसके लिए पास होना चाहिए ? क्या तुम्हारे पास अनुमति है ? बस इतना ही कहा गया था । ड्राइवर ने कहा कि गाड़ी में महानगर प्रमुख की पत्नी है । बस उसका इतना कहना था कि टै«फिक ने गाड़ी को छोड़ दिया ।
इस घटना के दो घंटे के बाद ही समाजिक संजाल पर महानगर प्रमुख का संदेश भाइरल होता है जहाँ वो लिखते हैं – चोर सरकार ! सिंहदरबार में आग लगा दूँगा । मतलब अपने पर आए तो आग लगा दूँगा और आम नागरिक जो हर दिन , हर पल इन यातनाओं से गुजरता है उसके लिए क्या करेंगे हमारे मेयर साहब ?
आज ही अभी अभी एक खबर आई है कि महानगर में ही कान्तिबाल अस्पताल है जहाँ एक छोटी सी बच्ची रेजिशा गोपाली की मृत्यु हो गई है । बच्ची के दादा कृष्णबहादुर गोपाली का कहना है कि – उपचार के आस में मेरी पोती की जान मेरे गोद में ही हो गई । ये कोई पहली बार हुआ है, ऐसा नहीं है । देश भर की तो बात ही छोड़े महानगर में ही प्रत्येक दिन ऐसी घटनाएं हो रही हैं । जहाँ डॉक्टर के इंतजार में बिमार लोग बैठे रहते हैं कि अब डॉक्टर आएंगे, ईलाज करेंगे हम ठीक हो जाएंगे । लेकिन न तो डॉक्टर को आना होता है और न वह आता है । बीमार व्यक्ति एक आस के साथ मृत्यु के गोद में समा जाता है । उसकी मृत्यु के बाद उसके परिवार वाले हो हल्ला करते हैं । थोड़े दिन लोग साथ देते हैं उसके बाद सभी अपने अपने काम में लग जाते हैं । यूँ कहें कि लोग भूलने लगते हैं और केस शायद बंद हो जाते हैं, या और भी बहुत कुछ हो सकता है । नहीं कहा जा सकता । सवाल यह है कि आम नागरिक तो प्रत्येक दिन इससे लड़ता है । तब किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता । लेकिन महानगर प्रमुख पत्नी की सवारी को रोक दिया तो वो आग लगाने पहुँच गए । महानगर प्रमुख का ध्यान उस ओर क्यों नहीं जा हरा है जहाँ इमर्जेन्सी में पहुँचने के दो घंटे के बाद भी डॉक्टर को आप नहीं दिखा पाते हैं ?
बच्ची के दादा का कहना कि इमर्जेन्सी में दो घंटे तक डॉक्टर का इंतजार करता रहा लेकिन नहीं दिखा पाया ये कैसी स्वास्थ्य व्यवस्था ? बच्ची का मन बेचैन, मेरी पीड़ा भी किसी को नहीं दिखी कैसा अस्पताल, और कैसे कर्मचारी अस्पताल के ? मेरे लिए ये अस्पताल नहीं, मुर्दाघर है ।
इस घटना की ओर मेयर साहब का कितना ध्यान जाता है ?या फिर कब जाएगा सिंहदरबार को जलाने की धमकी देने जाले हमारे मेयर साहब का ।
घटना कुछ इस तरह की है कि –एक दादा अपनी छोटी सी पोती को लकेर कांतिबाल अस्पताल में पहुँचते हैं । बच्ची को तेज बुखार था और वह बार बार उल्टी कर रही थी । चुँकी बच्ची बिमार थी इसलिए उसे स्कूल नहीं भेजा गया था । बाफल के एक मेडिकल में जाँच करवाकर दवाई खिलाई लेकिन सोमवार तक कोई सुधार नहीं हो सका । यहाँ तक कि बच्ची ने कुछ खाया पिया नहीं था । इसलिए शाम के समय बच्ची को लेकर कान्ति बाल अस्पताल पहुँचे दादा और पोती । जब बच्ची को लेकर उसके दादा ५ः०० बजे कान्ति बाल के इमर्जेन्सी में पहुँचे तो वहाँ बहुत भीड़ थी । बच्ची की हालत खराब थी वो बहुत रो रही थी । टिकट लेने मेें ही बहुत समय बीत गया । बच्ची के साथ –साथ दादा की पीड़ा और छटपटाहट भी बढ़ती जा रही थी । उन्होंने अस्पताल के गार्ड और प्रहरी सभी से बारम्बार निवेदन किया कि जगह मिला दें । डॉक्टर तक बच्ची को पहुँचा दें । किसी तरह जल्दी करें । मेरी बच्ची की अवस्था अच्छी नहीं है । लेकिन सहायता तो क्या करता गार्ड । उल्टे डाँट दिया और कहा कि लाइन में रहे । जब उसकी बारी आएगी तो डॉक्टर खुद देख लेगा । दादा ने अपनी पोती की जटिल अवस्था के बारे में कई बार कहा लेकिन किसी ने नहीं सुनी । डॉक्टर के इंतजार में बहुत देर हो गई । पाँ बजे के आए साढ़े सात बज गए और ७ः ३० में बच्ची ने दादा की गोद में दम तोड़ दिया । अब क्या करेंगे मेयर साहब ? कहाँ कहाँ आग लगाएंगे ? अपनी पत्नी और अपनी बच्ची के लिए सिंहदरबार को आग लगा देंगे और इस छोटी सी बच्ची जिसकी जान चली गई , या फिर उस दादा के लिए क्या करेंगे हमारे नगर प्रमुख ।
बात इतनी सी है कि सिसटम में सुधार की आवश्यकता है । आग लगाने की नहीं । आपकी पत्नी को जरा सी असुविधा हुई तो आप सिंहदरबार में आग लगाने की धमकी देने लगे । एक छोटी सी बच्ची का देहांत हो गया है । डॉक्टर उसे देख तक नहीं पाया । कैसी इमर्जेन्सी है । अब क्या अवस्था है उस दादा की जिसके साथ उसकी पोती थी । अपनी आँखों के सामने उन्होंने दम तोड़ते देखा अपनी पोती का । उसकी अवस्था क्या होगी ? सिंहदरबार को जलाने की बात करने वाले मेयर को यह मालुम होना चाहिए कि वो केवल एक बच्ची का पिता नहीं वो महानगर के पिता है । इसलिए महानगर के प्रत्येक व्यक्ति की सुरक्षा, स्वास्थ्य की जिम्मेदारी उनकी है । न की केवल एक पिता की । आम नागरिक मात्र एक आस भरी नजर से उन्हें देख रहे हैं कि कब उनकी नजर एक परिवार, एक जातिवाद से उपर उठती है । कब वो महानगर पिता बनेंगे ?