सुवास नेम्वाङ ? कुछ प्रश्न जो अनुत्तरित रह गया : कंचना झा

कंचना झा, काठमांडू, २६ भादव । यह संसार प्रकृति के नियमों के अधीन है । जिसने शरीर पाया है उसका अंत होगा ही । आज सुवास नेम्वाङ नहीं रहे । हाल में वो नेकपा एमाले संसदीय दल के उपनेता थे । नेपाली राजनीति में एक आदरणीय व्यक्तित्व जिसकी कभी किसी ने शिकायत नहीं की । जिनकी कभी किसी तरह की आलोचना नहीं हुई । नेपाल में बहुत ऐसे लोग हैं जो एमाले के प्रति अच्छी धारणा नहीं रखते हैं लेकिन सुवास नेम्वाङ एक ऐसी छवि जिनसे सभी प्रेम और स्नेह करते थे । ऐसा नहीं है कि वो आज हमारे बीच नहीं रहे तब ऐसी बातें हो रही है । वो जब हमारे साथ थे तब भी लोग उनका बहुत आदर और सम्मान करते थे ।
राष्ट्रीय राजनीति में सहमति, सहकार्य और एकता के सूत्रधार एवं इमान्दार छवि के स्वामी नेम्वाङ सभी के लिए एक स्तम्भ थे । उनका जन्म इलाम बजार के सुन्तला बारी में फागुन २८ साल २००९ (११ मार्च सन् १९५३) को हुआ था । नेम्वाङ इलाम क्याम्पस में पढ़ते हुए ही अनेरास्ववियु में लगकर विसं २०२९ साल में कम्युनिष्ट राजनीति में शामिल हुए । विसं २०३३ में राजद्रोह के मुद्दें में उन्हें कुछ दिन जेल में भी रहना पड़ा था । विसं २०४८ और २०५२ में राष्ट्रीय सभा के सदस्य हुए और मनमोहन अधिकारी के नेतृत्व में पहली बार कम्युनिष्ट सरकार में कानून, न्याय तथा संसदीय व्यवस्था मन्त्री बने । विसं २०६४ और २०७० में भी इलाम से ही वो चुनाव जीतकर संविधानसभा के अध्यक्ष बने । संविधान सभा से नेपाल का संविधान जारी करने में उन्होंने समन्वयकारी भूमिका की भी निर्वाह की थी । वो चार बार सभामुख बने । वो भी सर्वसम्मत से बने थे । यानी किसी ने उनका विरोध किया ही नहीं । चाहे उनकी पार्टी के लोग हों या फिर विपक्ष के लोग । पार्टीगत किसी का विरोध रहा हो मगर व्यक्तिगत विरोध किसी का नहीं था उनसे । उनके निधन से उनका जन्म स्थल शोक मग्न है । इलाम जहाँ से वो आते थे वहाँ जैसे ही नेम्वाङ के निधन की खबर पहुँची कि जिला तह के विभिन्न राजनीतिक दल, नेता, सामाजिक अभियन्ता, विद्यार्थी सभी दुःख व्यक्त करने लगे । नेम्वाङ के निधन से देश का अपूरणीय क्षति हुई है । देश और जनता के लिए जो उन्होंने योगदान दिया है वह योगदान अतुलनीय है ।
लेकिन हाँ इतना होते हुए भी वो आलोचना से परे नहीं रहे । उनसे आम नेपाली जनता जो हिन्दू धर्म से सरोकार रखती हैं उनकी बहुत शिकायतें थी । कारण स्ष्पट था नेपाल जो विश्व का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र था उसका अचानक से धर्मनिरपेक्ष हो जाना बहुतों को रास नहीं आया । उनके निधन पर बहुत लोगों ने उत्तर मांगा है । बहुसंख्यक हिन्दू जन संख्या रहे नेपाल में संविधान जारी करते समय संविधान में धर्मनिरपेक्ष क्यों लिखा गया ? किसके दबाब में ? किसने किसको क्या प्रलोभन दिया ? नेम्वाङ के निधन के साथ ही इस प्रश्न का जबाव भी उनके साथ ही चला गया ।