मधेश… सहकार्य या धोखा ! : कंचना झा
कंचना झा, हिमालिनी अंक जनबरी 025 । एकबार फिर मधेश की जनता को लगने लगा है कि मधेश केन्द्रित नेता एकजुट होकर सहकार्य करेंगे ? तो क्या ऐसा हो पाएगा ? यह सवाल सभी के मन में उठ रहे हैं । मधेश की राजनीति में हमेशा से उतार चढ़ाव आता रहा है । मधेश के नेताओं ने कुछ मधेश को दिया है तो बहुत कुछ बदले में लिया भी है । आज भी वो अपनी राजनीति उसी मुद्दें को लेकर कर रहे हैं । उनकी राजनीति अगर चल रही है तो वो मधेश की राजनीति के कारण ही चल रही है । मधेश केन्द्रित नेता अगर चाहते तो मधेश कभी २२ जिलें से ८ जिलें में नहीं सिमटता । लेकिन कहीं न कहीं मधेशी पार्टी, मधेश केन्द्रित नेताओं के अपने स्वार्थ के कारण आज मधेश बट गया और मधेश को ८ जिलें में ही खुश होना पड़ रहा है । लेकिन एक बार फिर मधेश के नेताओं को लग रहा है कि उनका एक होना जरुरी है । इसलिए नहीं कि वो मधेश के लिए और बहुत कुछ करना चाहते हैं वरन इसलिए कि वो अपने आप को बचाना चाहते हैं । उन्हें एक डर है कि संविधान संशोधन कर समानुपातिक निर्वाचन प्रणाली को ही कहीं न हटा दिया जाए । अगर ऐसा होता है तो परिवारवाद का जो खेल खेला जा रहा है उसमें कमी आ जाएगी ।
सत्ताधारी दोनों दल कांग्रेस और एमाले पार्टी बार बार अपनी बात को रख रहे हैं । उनका कहना है कि संविधान संशोधन को लेकर ही वो एक हुए हैं तो ऐसे में मधेश केन्द्रित दल का सर्तक होना जरुरी है उससे भी जरुरी है अपने स्वार्थ से बाहर निकलना । सत्ताधारी पार्टी बहुत चालाक है । वह सबकुछ बड़ी चालाकी से करना चाहती है । अभी वो संविधान संशोधन को लेकर बार बार बात कर रही है । तो मधेश के नेताओं का ध्यान भी उस ओर गया है कि जिस पद और पावर को पाने के लिए उन्होंने इतने वर्ष काम किया । जिस मधेश को स्थापित किया । जिसके हक अधिकार को संविधान में जगह दिलाई कहीं उसके साथ ही न खिलवाड़ हो जाए तो मधेश केन्द्रित दल के नेताओं ने मधेश के मुद्दा को सम्बोधन करना जरुरी समझा है । अब इनका ध्यान एक बार फिर उस तरफ गया है कि मधेशी जनता की समस्या को समाधान करने के लिए इस क्षेत्र के दल और नेताओं को एकजुट होने की आवश्यकता है । इसलिए उन्हें एक मंच पर लाकर एक दूसरे की बात को समझना और सुनना जरुरी था । इसलिए मधेश केन्द्रित पार्टी और नेताओं को एक मंच पर लाना जरुरी था । और इस काम में प्रमुख भूमिका निभाया है मधेशी एकता समाज ने ।
राजनीति या सरल शब्द में कहे तो पद और पावर को लेकर एक बात तय है कि यह कभी किसी एक के हाथ में नहीं रहती है । समय और परिस्थिति अनुसार बदलाव आते रहते हैं । समय और परिस्थिति को देखकर ही बहुत से पार्टी अपने दुश्मन पार्टी से भी मिल जाते हंै । कल तक एक दूसरे को गाली देकर आज एक साथ चलने वाले तो बहुत मिलेंगे । संविधान संशोधन को लेकर प्रायः सभी मधेशी नेताओं को यह ध्यान आया कि वो एक साथ तो नहीं आ सकते लेकिन सहकार्य कर सकते हैं ।

मधेशी एकता समाज ने पुष १६ गते मंगलवार को काठमांडू में एक कार्यक्रम का आयोजन किया । जिसमें मधेशी दल, मधेशी नेता के साथ ही मधेश को लेकर काम कर रहे कुछ युवाओं के साथ ही कुछ विश्लेषकों को भी आमंत्रित किया । मधेशी एकता समाज के प्रमुख रविन्द्र यादव जी ने कार्यक्रम शुरु होने से पहले ही अपनी बातों को रखा उससे यह पता चला कि वो भी मधेशी जनता के जैसी ही सोच रखते हैं ।
आज से एक दशक पहले मधेश की जनता खुलकर बोलती थी कि मधेश केन्द्रित दल और नेताओं को मधेश के मुददे को लेकर एक होना चाहिए लेकिन पिछले कुछ वर्षो की अगर बात की जाए तो मधेश की जनता चुप हो गई है । खासकर युवाओं की अगर बात करें तो अभी वो अपने करिअर में उलझे हैं । उसे सेटल होना है । और वो अच्छी तरह से जान गये हैं कि कोई भी पार्टी न केवल मधेश केन्द्रित पार्टी वरन सभी पार्टी के नेता, कार्यकर्ता अपने देश या मधेश या फिर अपने जगह के विकास को लेकर नहीं सोचते हैं, वो केवल और केवल अपने बारे में, अपने परिवार के बारे में सोचते हैं ।
रही बात मधेश की जनता की तो उनकी हमेशा से इच्छा थी कि मधेश के नेता और पार्टी एक हो । एक पार्टी सबको साथ लेकर चले । लेकिन सभी अपनी भूमिका, अपनी कुर्सी को पाने के लिए समय समय पर मधेश को धोखा देते रहे पार्टी से निकलते रहे । नई पार्टी बनाते रहे । घाटा किसका हुआ तो मधेश का । आप तो वही है । आपने नई पार्टी बना ली, अध्यक्ष बन गए । कभी अवसर मिला तो मंत्री भी बन गए । लेकिन मधेश का क्या हुआ २२ जिले से कटकर हम ८ में सिमट गए । हकीकत यही है ।
मधेशी एकता समाज द्वारा किए गए कार्यक्रम में सबसे ज्यादा आकर्षण का केन्द्र थे हृदयेश त्रिपाठी । जनता प्रगतिशील पार्टी के अध्यक्ष हृदयेश त्रिपाठी ने अपनी बातों में आरोप लगाते हुए कहा कि मधेश केन्द्रित दलों ने सम्पूर्ण मधेश को एकीकृत रूप में नहीं देखा है । उन्होंने कहा कि यह पहली बार नहीं हुआ है बहुत बार हमने यह प्रयास किया है कि हम एकजुट हों लेकिन अवसरवादी चरित्र के कारण पार्टियां विभाजित हो गई और हम मिल नहीं पाए । मधेश के अभी की अवस्था की अगर बात करें तो अभी मधेश गोलचक्कर में है । उन्होंने पूरे देश की बात की । उन्होंने कहा कि एक भाष्य देशभर में फैला हुआ है कि नेताओं के प्रति जनता में भरोसा नहीं है ।
हृदयेश त्रिपाठी को लेकर मधेश के बुद्धिजीवी क्या सोचते हैं ? या आम जनता क्या कहना चाहती हैं ? तो मधेश के लोगों का मानना है कि मधेश की राजनीति में, मधेशी नेताओं में यदि सबसे ज्यादा कोई राजनीति जानता है समझता है, समय अनुरुप दोनों बड़े दल से लड़ सकता है अपनी बुद्धि विवेक से चालाकी से तो ये व्यक्तित्व हैं हृदयेश त्रिपाठी । लोगों का मानना है कि त्रिपाठी मधेश को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं तो उनसे बहुत ज्यादा उम्मीदें थी मधेश की जनता को । और हो भी क्यों नहीं । ऐसे जानकार, विद्वान, विज्ञ, विश्लेषक राजनीति, कुटनीति समझने वाला व्यक्ति ही तो मधेश को चाहिए था लेकिन मधेश को क्या मिला । जिस वक्त त्रिपाठी की मधेश को सबसे ज्यादा जरुरत थी उन्होंने अपने विचार अपना मन बदल लिया । क्यों ? क्या आज मधेश की जनता उनसे यह सवाल नहीं करेगी ? कि जब सबसे ज्यादा जरुरत थी इस नेता की हमें तो वह छोड़कर चला गया । कल के दिनों में यह प्रश्न मधेश की जनता करेगी उनसे कि उस वक्त आपने मधेश की जनता के बारे में, मधेश के विकास के बारे में नहीं सोचा जिसका हरजाना सबको भुगतना पड़ रहा है ।
आज संविधान संशोधन की ही अगर बात करें तो सच्चाई तो यही है न कि आप कभी एक थे ही नहीं इसलिए तो यह नौबत आई है । क्योंकि संविधान जनता नहीं बनाती है । आप जैसे विज्ञ, विश्लेषकों की बातों को समस्याओं को देखकर समझकर क्या जनता के हित में होगा, उसे क्या अधिकार देना है ? आप तो मधेश की वकालत करते हैं तो मधेश की जनता को क्या चाहिए आपसे बेहतर कौन जान सकता है ? उस वक्त भी आप एक साथ नहीं थे तब संविधान बनाकर तैयार हो गया और आज सबके सामने हैं । एक डर है कि जो थोड़ा बहुत अधिकार दिया गया है उसे भी न छीन लिया जाए । या फिर संशोधन द्वारा मधेश या मधेशियों के लिए कुछ अलग ही नियम लागू कर दिया जाए । संविधान संशोधन में संघीयता की बात हो सकती है, समावेशिता की हो सकती है, समानुपातिक की बात हो सकती है । इन कथित बड़े दल को कोई भरोसा नहीं है कि मधेश को लेकर ये क्या करेंगे ? अचानक से इन नेताओं के दिमाग में यह बात क्यों आई तो कुछ ही दिन पहले की बात है कि देश में एनपीएल का आयोजन किया गया था । इस आयोजन में जो कुछ हुआ इससे मधेश की जनता और नेता दोनों को ही एक जबरदस्त झटका लगा है । कार्यक्रम में प्रायः सभी ने एनपीएल की बात उठाई । जनकपुर बोल्ट्स की बात की । उन्हें एकबार फिर लगा कि ये तो जानी हुई बात थी कि जनकपुर बोल्ट्स में केवल नाम जनकपुर है । खिलाड़ी देश के ही है फिर भी क्या कुछ हुआ ।
कार्यक्रम में अपनी बात को रखते हुए शिक्षाविद तथा मधेशी एकता समाज के प्रवक्ता दीपेन्द्र चौबे ने जो बात कही वो कही न कही सत्य कहा कि– मधेश के नेताओं को जो करना था उन्होंने किया है । कमियां सभी में है तो इनमें भी होगी ही । लेकिन इतना जरुर मैं युवाओं से कहना चाहता हूँ कि आप क्या कर रहे हैं ? आज की युवा अगर मधेश को जानती है, मधेश के बारे में कुछ लिखती है तो कारण यही नेता हैं । फिर उन्होंने भी वही बात कही कि मधेशी दल के नेता या आज के युवा संघर्ष करना ही नहीं चाहते हैंं । मधेश के नेताओं की सबसे बड़ी कमी यह है कि वो आज राजनीतिक पार्टी में प्रवेश करते हैं दूसरे ही दिन उन्हें पद की चाहत हो जाती है । जब उन्हें वह नहीं मिलता है तो वह पार्टी से तुरंत बाहर हो जाते हैं । लेकिन आज की आवश्यकता है कि मधेश की सभी पार्टियां एक जगह होकर काम करें ।
डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट पार्टी के नेता अनिल झा ने स्वीकार किया कि आज जो मधेश में समस्या है कही न कही हमारी ही कमी कमजोरी के कारण से है । हम मिलकर काम नहीं कर सके । एक समय तो यह भी गुजरा है कि हमने छह महीने आंदोलन किया है । तब हम एक थे तो कर पाए । एक समय वो भी था कि मधेशी एकता के पक्ष में हमने रातोरात एकसाथ काम किया है । तो आज अगर आवश्यकता है तो मैं और मेरी पार्टी सहकार्य करने को तैयार है । मेरी इच्छा है कि मधेश का प्रतिनिधित्व मधेश ही करें । अगर मधेसी शक्ति एकजुट नहीं हुई तो जो उपलब्धियां हासिल हुई हैं, उनके खोने का खतरा है ।
जनमत पार्टी के नेता एवं प्रवक्ता शरदसिंह यादव ने कहा कि चूंकि संविधान संशोधन मधेश के खिलाफ दिख रहा है, इसलिए इसे रोकने के लिए सहयोग जरूरी है । लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट कहा कि यह सहकार्य केवल एक दल या एक नेता को बचाने के प्रयास के लिए होगा तो इस एकीकरण के लिए जनमत तैयार नहीं है । हाँ हम मधेश की जनता, मधेश के मुद्दे या मधेशियों को आगे बढ़ाने के लिए, मधेश विकास की अगर बात हो तो जनमत भी सहकार्य के लिए तैयार है । हम पहले भी एकता में विश्वास करते थे और आज भी एकता में ही विश्वास रखते हैं ।
जनता समाजवादी पार्टी नेपाल द्वारा दूसरे दलों के साथ सहकार्य और एकता के लिए गठन किए गए कार्यदल के संयोजक राजकिशोर यादव ने कहा कि केवल छोटी सोच के साथ सहयोग की बात करना संभव नहीं है । उन्होंने शर्त रखते हुए कहा कि सहयोग केवल व्यापक सोच और दीर्घकालिक समाधान के लिए किया जाना चाहिए । कहीं न कहीं हम सभी को एक तरह का डर है कि जो हमने थोड़ा बहुत पाया है उसे भी न खो दें । उन्होंने खासकर युवाओं को संकेत करते हुए कहा कि– अब हम वृद्ध हो रहे हैं इसलिए हम नेताओं से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं करें । आप युवा हैं । आप बहुत कुछ कर सकते हैं मधेश के लिए ।
राष्ट्रीय मुक्ति पार्टी नेपाल के अध्यक्ष राजेंद्र महतो ने संदेह व्यक्त किया कि २०७२ में तीन दलों के तीन नेता एक नस्लवादी संविधान लाने के लिए एक साथ आए और प्रस्तावित संशोधन अधिक नस्लवादी होगा । उन्होंने कहा कि इसे रोकने के लिए मधेसियों, आदिवासियों समेत अन्य ताकतों को एकजुट होने के अलावा कोई विकल्प नहीं है । उन्होंने इसबात पर जोर दिया कि संविधान संशोधन होने जा रहा है तो इसमें सचेत रहने की आवश्यकता है ।
मधेशी एकता समाज द्वारा किए गए इस आयोजन के पहले से भी मधेशी पार्टी और नेतागण सहकार्य के लिए तैयार थे लेकिन अब उसमें कुछ और तेजी आ गई है । प्रायः सभी मधेशी पार्टी के लोग एक दूसरे के साथ मिल बैठकर सलाह सुझाव से सहकार्य करने की तैयारी कर रहे हैं ।
लोकतान्त्रिक समाजवादी पार्टी नेपाल ने मधेसी पार्टियों के बीच सहयोग और एकता के लिए एक वार्ता समिति का गठन किया है ।
राजनीतिक अधिकारों के लिए संघर्षरत राजनीतिक ताकतों के बीच संवाद, सहयोग और कार्यात्मक एकता की बात कहते हुए लोसपा ने जीतेंद्र प्रसाद सोनार के नेतृत्व में एक वार्ता समिति का गठन किया गया है । वार्ता समिति में जितेंद्र के साथ उमाकांत झा, राम प्रकाश चौधरी, सुरेंद्र कुमार झा और मनीष कुमार मिश्रा शामिल हैं ।
लोसपा अध्यक्ष महंत ठाकुर की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ‘ लोसपा द्वारा बातचीत के माध्यम से मधेश–केंद्रित पार्टियों के बीच सहयोग, कार्यात्मक एकता और राजनीतिक मुद्दे और सिद्धांत, तथा पार्टी के एकीकरण की संभावना तलाशने के लिए एक समिति का गठन किया गया है । ’
कार्यक्रम में राष्ट्रीय मुक्ति पार्टी नेपाल के अध्यक्ष राजेंद्र महतो ने एक बहुत अच्छी बात कही थी कि मधेशी जनता का अंतिम टेस्ट है मधेशी के बीच एकता, तो देखना यह है कि यह एकता हो पाती है या नहीं । प्रतिनिधिसभा के स्वतन्त्र सांसद् अमेरेश कुमार सिंह ने कहा कि बंटा हुआ मधेश अपनी उपलब्धियों का बचाव नहीं कर सकता । उन्होंने कहा कि मधेश की राजनीति में त्याग और अखंडता खो गई है । उन्होंने मधेशी पार्टी की आलोचना करते हुए कहा कि मधेशी पार्टियों ने मधेशवाद को परिवारवाद और अधिनायकवाद में समाप्त कर दिया है ।
उम्मीद करें कि इस बार मधेशी जनता की जो सोच और नीति है उसमें वह कामयाब हो । जनता को घोखा नहीं मिले । मधेशी नेताओं का एक साथ आना मधेशी जनता की इच्छा है । मधेश और मधेश की जनता हमेशा से सभी को एक साथ देखना चाहती है । लेकिन ये नेतागण क्या करते हैं यह तो आने वाला समय ही बताएगा ।

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