KIIT (किट), प्रकृति आत्महत्या, भारतीय सोच, नेतामुखी आन्दोलन खतरा है : कैलाश महतो
1 month ago
कैलाश महतो, नवलपरासी । भुवनेश्वर की KIIT, प्रकृति लम्साल की आत्महत्या, उब्जे विवाद और नेपाली विद्यार्थियों की नेपाल में “We want Justice” नामक आन्दोलन अभी खासा चर्चा में है। घटना भी दो देशों के बीच जिम्मेवारी हीनता पर तैरता हुआ दिख रहा है।
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राष्ट्रों के बीच में अनेकानेक संबंधों के साथ ही विद्यार्थियों की आदान प्रदान, छात्रवृति तथा अनुदानीय स्तर पर हो सकने बाले पढ़ाई लिखाई तथा अध्ययन-अनुसन्धान की संस्कृतियों के अन्तर्गत दुनिया के लगभग सारे देशों ने एक दूसरे के विद्यार्थियों को पूर्ण, आंशिक और स-शुल्क छात्रवृति पर पढ़ने लिखने की व्यवस्था की है। उसी व्यवस्था अन्तर्गत न केवल नेपाली विद्यार्थी, बल्कि भारतीय विद्यार्थी समेत नेपाल लगायत विश्व के अनेक मुल्कों में अध्ययन और अनुसन्धान के लिए आते जाते हैं। इसमें किसी एक देश का बजेट का धाक या अहंकार दिखाना उसकी थोथले योग्यता को जाहेर करता है।
किसी देश द्वारा किसी बाँकी देशों के विद्यार्थियों को फोकट में छात्रवृति या अनुदान नहीं दिया जाता है। क्योंकि कोई देश किसी देश के किसी गरीब बच्चे को ही नहीं छात्रवृति देता है, बल्कि उसके अव्वल और योग्य विद्यार्थियों को उठाकर अपने देश में ले जाता है ता कि वह अव्वल विद्यार्थी उसके ही देश को काम आ सके। और प्रायः होता भी वही है। उपर से दिखने में लगता है कि एक देश ने दूसरे देश के विद्यार्थियों को सहयोग किया है, मगर यह पूर्णतः दिलेरी सहयोग नहीं है। क्योंकि विद्यार्थियों को उसके अपने मुल्कों से ज्यादा तलब सुविधा देकर उन्हें अपने देश के विकास के लिए रोक लिया जाता है।
वस्तुतः देश और बजट बड़ा होने से ही नहीं, नीयत और भावना भी बडे होने चाहिए। देश की सीमा, जनसंख्या और बजट बड़े हो जाने से ही अगर किसी देश की सारी शक्ति होती तो कुछ गाँव जितने बड़ा देश और उसके इने गिने चन्द लोग किसी विशाल देश और जनसंख्या का शासक और बादशाह बनने का इतिहास नहीं होते। आज भी सिंगपुर और इजरायल जैसे छोटे से देशों के सामने बड़े बड़े देश अपने अहमियत को नहीं पड़ोस सकते।
किसी देश की विशाल क्षेत्र और बजट किसी दूसरे देश, राष्ट्रीयता और देशभक्ति को चुनौती नहीं दे सकते। किसी देश का गरीब होना ही उसका सम्पूर्ण कमजोरी नहीं है। गरीबी के आधार पर ही किसी की राष्ट्रीयता और गरिमा को चुनौती नहीं दी जा सकती।
यह कु-संस्कार कुछ लोगों में देखा जाता है। वे लोग हंसी मजाक या उग्र हालत में यह बोलते हुए सुनाई दे जाते हैं कि नेपाल इतना सा छोटा देश है। भारत के सहयोग और टुकड़ों पर जीता है। भारत ना हो तो वहाँ के लोग भूखे मर जायेंगे, आदि इत्यादि। उनके इन्हीं अल्फाजों के कारण हमारे अति करीब के रिश्तेदारों से आज मेरा व्यक्तिगत सम्बन्ध कमजोर पड़ गया है। किसी भी हाल में कोई आदमी अपने देश की गलत बुराई सुनना पसन्द नहीं कर सकता। विशाल देश के लोग अपने विशाल हृदय के साथ पेश हों तो सम्मान के पात्र होते हैं।
KIIT युनिवर्सिटी में छात्रवृति पाकर पढ़ने बाले विद्यार्थियों में नेपाली महिला छात्र प्रकृति लम्साल के साथ जो और जैसा प्राणलेवा व्यवहार और घटनायें घटी हैं, वह किसी भी मायने में मानवीय सुरक्षा जिम्मेवारी की मर्यादा नहीं है। स्रोत के अनुसार प्रकृति द्वारा उसके उपर हो रहे उपद्रवी दुर्व्यवहारों की लिखित और मौखिक जानकारी यूनिवर्सिटी और उसके होस्टेल प्रशासन को दिये जाने के बावजूद उसके सुरक्षा के लिए कोई होशियारी या जिम्मेवारी नहीं बरतना सम्बन्धित यूनिवर्सिटी और उसके प्रशासन का खुल्ला गैरजिम्मेदाराना हरकत है।
घटना घट जाने के बाद पीड़ित विद्यार्थी, परिवार, नेपाली विद्यार्थी और देश के साथ संवेदना व्यक्त करने तथा दोषियों के उपर कानूनी कार्रवाई के लिए पहल करने के बजाय नेपाल और उसके आर्थिक हैसियत पर सवाल उठाना और न्याय के लिए आवाज देने बाले नेपाली विद्यार्थियों को जबरजस्ती यूनिवर्सिटी क्याम्पस और हॉस्टेल से निकाला जाना किसी भी मायने में उच्च शिक्षा की मर्यादा नहीं है।
जहाँ तक नेपाल के कुछ राजनीतिक पार्टी और उसके विद्यार्थी संगठनों द्वारा भारत विरोधी कार्यक्रम, आन्दोलन या हंगामा करवाए जा रहे हैं, वह हारे हुए बिल्ली का रुप है। उस पार्टी को अगर देश, जनता, विद्यार्थी और उसके शिक्षा भविष्य से कोई प्रेम, लगाव और जिम्मेवरिपन का बोध है, तो उन्हें अपने ही देश में रोजगार, व्यवसाय, नौकरी और शिक्षा देने की व्यवस्था क्यों नहीं किया गया है ? क्यों नेपाली विद्यार्थी और कामदार दुनिया के अन्य मुल्कों के धरती पर मरने को बाध्य हैं ? हरेक दिन दर्जनों के संख्या में मृत नेपाली शरीर बक्से में नेपाल क्यों आता है ? शर्म और जिम्मेवारी नाम का कोई चीज है कि नहीं सरकार को ? खाली सरकार का “सरकार देश र जनता को दिगो विकास र सुरक्षा को लागि अहोरात्र काम गरिरहेको छ।” बाले ओछी बकवास के आलावे और कोई काम है ?
अगर नेपाल के किसी राजनीतिक दल, नेता, नेतृत्व या सरकार में थोड़ा भी देश और जनता के लिए गम और संवेदना है, तो आज भी भ्रष्टाचार और गलत कमीशनखोरी को छोड़कर भ्रष्टाचार के थोड़े थोड़े पैसे भी देश-जनता हित में लगा दें तो देश का काया कल्प बदल जायेगा और जनता उसके भ्रष्ट आचरणों को माफ कर देगी।
जो विद्यार्थी भारत विरोध में आन्दोलन करते हैं, उनसे आग्रह है कि आप जितने किसी देश और आपके भविष्य बिगरुवा पार्टियों के दुष्चक्र में पड़कर आंदोलनरत हैं, उसके ठीक विपरीत आप देश के दुश्मन और कल्ह के आपके भविष्य के अंधकार के कारण रहे मौजूदा पार्टी, सरकार और नेताओं को राजनीतिक और आर्थिक सत्ता से बाहर निकलने का आन्दोलन करें तो समय और मेहनत का सदुपयोग माना जायेगा।
भारत का विरोध करने से प्रथमतः आपको कुछ मिलेगा नहीं और ये देश में पल रहे आपराधिक नेता हमेशा आपको, देश को और जनता को भेंड़ समझकर आपके सारे राष्ट्रीय संसाधनों का दोहन खानदान दर खानदान करता जायेगा ।
