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आर्थिक विकास की ओर एक बडा कदम बिपा समझौता:
रामेश्वर खनाल

भारत के साथ निवेश पर््रवर्द्धन और संरक्षण करने वाला द्विपक्षीय समझौता है। इससे पहले बार बार वार्ता होने के बाद भी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं हो पाया था। कई चरणों में बातचीत के बाद यह समझौता हुआ है। कोई अचानक आया हुआ नया विषय नहीं है। क्योंकि इसमें जो भी प्रावधान समेटा गया है विशेषकर क्षतिपर्ूर्ति देने के संबंध में वह इसी समझौता का आधार में नहीं दिया जाएगा। समझौता में उल्लेख किए गए विशेष अवस्था जैसे युद्ध या सशस्त्र द्वन्द्व, राष्ट्रीय संकटकालीन अवस्था या राष्ट्र में दंगा के कारण किसी निवेशकर्ता को नुकसान होने पर सरकार द्वारा क्षतिपर्ूर्ति देने की घोषणा किए जाने पर ही दिया जा सकता है।
विश्व व्यापार संगठन में सदस्य और बहुपक्षीय निवेश एजेन्सी के पक्षधर होने के कारण इसका दायित्व निर्वाह अर्न्तर्गत किया गया यह समझौता है। बहुपक्षीय निवेश प्रत्याभूति महासन्धि में अपने सदस्य राष्ट्र को एक देश दूसरे देश के बीच इस तरह के समझौते को अनिवार्य बनाया गया है। नेपाल ने इससे पहले भी फिनलैण्ड, माँरिशस, ब्रिटेन, जर्मनी और प|mान्स के साथ इस तरह का समझौता कर चुकी है। भारत ने भी ८३ देशों के साथ यह समझौता किया है लेकिन अभी भी १० देशों के साथ यह अब तक प्रभावकारी नहीं हो पाया है। चीन ने १०० से अधिक देशों के साथ इस तरह के समझौते पर हस्ताक्षर किया हुआ है। एक बात और स्पष्ट क्या करना चाहता हूं कि यह समझौता १० वषर्ाें के लिए ही किया गया है। यदि इस दौरान कोई भी विदेशी निवेश नेपाल में नहीं आया तो इसका नवीकरण किया जा सकता है। यह एक विश्वास का आधार मात्र है। सिर्फइस सम्झौते से ढेर सारा विदेशी निवेश एक बार ही नेपाल में आएगा ऐसा भी बिलकुल नहीं है। इसके लिए हमें देश में वातवरण तैयार करना होगा।
इस समय हमारे देश के सामने सबसे बडी चुनौती रोजगार के अवसर पैदा करना है। हर रोज कम से कम १५०० युवक इस देश से बाहर रोजगार की तलाश में जा रहे हैं। यदि विदेशों में भी नेपाली जनता के लिए रोजगार के अवसर संकुचित हो जाता है तो स्थिति और भी भयावह हो सकती है। इस समय देश का व्यापारिक घाटा २१८० करोड रूपये तक पहुंच गया है। इस व्यापार घाटे को सिर्फरेमिटैन्स के जरिये पूरा नहीं किया जा सकता है। नेपाल में इस समय भारत में उत्पादित २६२० करोड रूपये का सामान आयात होता है। अगर यह सामान नेपाल में ही उत्पादित हो तो इससे व्यापार घाटा को कम करने के साथ रोजगारी के अवसर भी पैदा किया जा सकता है। भारतीय कंपनियों से अधिक बेहतर ढंग से कोई और नेपाल को नहीं समझ सकता है। उन्हें हमारे बारे में बहुत अच्छी तरफ से मालूम है कि हमे क्या चाहिए। डाबर, यूनिलीवर, जैसी कंपनियां अपना उत्पादन सिर्फनेपाल में ही नहीं बल्कि भारत में भी अच्छी खासी मात्रा में बिक्री करते हैं। नेपाल में तीय कंपनियों द्वार उत्पादित सामानों के लिए भारत और चीन दोनों ही देश में एक बडा बाजार उपलब्ध है।
नेपाल में इस समय कुल विदेशी निवेश में ४७ प्रतिशत भारतीय ही है। अभी भी भारत की कई प्रतिष्ठित कंपनियां नेपाल में निवेश करने से घबराती है। क्योंकि अब तक यहां निवेश का वातावरण ही नहीं था। इस बार भारत भ्रमण के क्रम में बडी कंपनियों के प्रमुखों से बातचीत में यह निष्कर्षनिकाला गया कि नेपाल में भरोसायोग्य वातावरण नहीं होने की वजह से ही अभी तक निवेश नहीं बढ पाया था। इस समझौते से यहां पर एक विश्वास का वातावरण बना है। और अपनी पूंजी के नहीं डूबने का भरोसा यदि हो जाए तो निवेशकों की भरमार लग सकती है। भरोसा होने पर कई भारतीय कंपनियों ने दक्षिण अप|mीका में भी अपना निवेश किया है तो क्या भरोसा होने पर नेपाल को प्राथमिकता नहीं देंगे – अवश्य देंगे।
-लेखक प्रधानमंत्री भट्टर्राई के आर्थिक सल्लाहकार हैं)
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