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एक जैसे ट्रेडमार्क से उपभोक्ता भ्रमित, निवेशकों में विवाद और मुकदमों की भरमार

श्रोत कान्तिपुर

असार ११, २०८२ | काठमांडू । नेपाल में ट्रेडमार्क की नकल और विवाद तेजी से बढ़ रहे हैं। एक जैसे दिखने वाले लोगो, पैकेजिंग और ब्रांड नामों के कारण न केवल उपभोक्ता भ्रमित हो रहे हैं, बल्कि उद्यमी और निवेशक भी कानूनी झमेलों में उलझे हुए हैं।

विभिन्न उद्योगों में नामी ब्रांड्स की नकल करते हुए सैकड़ों उत्पाद बाजार में बेचे जा रहे हैं। उद्योग विभाग के अनुसार, २०६८ साल के भदौ महीने से अब तक ट्रेडमार्क से जुड़े कुल १,८९३ शिकायतें दर्ज हुई हैं, लेकिन इनमें से केवल २०९ मामलों का ही निपटारा हो पाया है। अधिकांश मामले वर्षों से लंबित हैं, जिससे न केवल असली ब्रांड को आर्थिक नुकसान हो रहा है बल्कि नकली उत्पाद के कारण उपभोक्ताओं को भी गुणवत्ता से समझौता करना पड़ रहा है।

बड़े ब्रांड्स के जैसे उत्पाद बाजार में

  • ‘कोका-कोला’ जैसा दिखने वाला चिलकोला — मनकामना फुड एन्ड बेभरेज द्वारा निर्मित।
  • ‘स्प्राइट’ जैसा राइट और स्पोर्ट, ‘फेन्ता’ जैसा फेन्सी और फन्टु, ‘माउन्टेन ड्यु’ जैसा मन्सुन ड्यु और मेन्टेन ड्यु
  • ‘रेड बुल’ के मुकाबले रेड ब्लु और रेड राइनो जैसे एनर्जी ड्रिंक।
  • ‘काल्सबर्ग बीयर’ जैसी टेन्सबर्ग, ‘एक्स-एक्सट्रिम’ जैसा एक्स-एक्सट्रिम सक
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इनमें से अधिकांश मामलों में संबंधित कंपनियों द्वारा विभाग में ट्रेडमार्क की चोरी की शिकायत दर्ज की गई है, लेकिन सुनवाई अब तक शुरू नहीं हुई है।

नींबू पानी तक विवाद में

सिंगापुर बेभरेज नेपाल द्वारा उत्पादित ‘नींबु पानी’ के समान नाम और पैकेजिंग में मनकामना निम्बु फ्रेश बिक रहा है। इस पर भी विभाग में मामला दर्ज है।

मनकामना बेभरेज के संचालक का कहना है कि नींबू और पानी कोई निजी संपत्ति नहीं, बल्कि सबकी साझा विरासत है और कोई भी इस उत्पाद को बना और बेच सकता है।

सेवा क्षेत्र और अन्य उत्पाद भी प्रभावित

  • काठमांडू के भेटघाट रेस्टुरां ने चितवन और पोखरा के भेटघाट नामक रेस्टुरां पर नाम की नकल का आरोप लगाया है।
  • क्यास्ट्रोल लिमिटेड ने फास्ट्रोन मोबिल के निर्माता जैसवाल लुब्रिकेन्ट्स पर ट्रेडमार्क उल्लंघन का आरोप लगाया।
  • सुजल फुड्स ने रसिलो हाजमोला क्यान्डी को लेकर चण्डेश्वरी इन्डस्ट्रीज पर केस किया है।
  • गोपाल सोप बनाम पदमा सोप, शशि डिस्टिलरी बनाम देवचुली डिस्टिलरी, श्रीराम टोबाको बनाम रौतहट पान मसाला—जैसे और भी कई मामले हैं।
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सरकारी निष्क्रियता और कानूनी ढिलाइ

उद्योग विभाग के अनुसार, ट्रेडमार्क विवाद का निपटारा विभागीय महानिर्देशक के एकल इजलास से होता है। शिकायत के बाद दोनों पक्षों की सुनवाई की जाती है, लेकिन कई बार विपक्षी पक्ष कानूनी नोटिस लेने से भी इनकार कर देता है, जिससे निर्णय में देरी होती है।

उपभोक्ता हित संरक्षण मंच नेपाल के अध्यक्ष ज्योति बानियाँ का कहना है, “उपभोक्ता असली उत्पाद का पैसा चुका कर नकली सामान लेने को मजबूर हैं। इससे न सिर्फ गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, बल्कि उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर भी खतरा है।”

ट्रेडमार्क चोरी को बौद्धिक संपत्ति का उल्लंघन बताते हुए अधिवक्ता सेमन्त दाहाल कहते हैं कि, “देश में अभी भी इस विषय पर स्पष्ट और प्रभावी कानून की कमी है।” हाल ही में संसद में बौद्धिक सम्पत्ति सम्बन्धी विधेयक पेश किया गया है, जिससे न्यायिक अदालत की स्थापना कर ऐसे मामलों पर सख्त नियंत्रण संभव होगा।

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वाणिज्य विभाग के महानिर्देशक कुमारप्रसाद दाहाल ने स्वीकार किया कि, “बाजार में नकली सामान और ट्रेडमार्क चोरी के मामले बहुत बढ़े हैं, खासकर भारत से आयातित वस्तुओं को नेपाली ब्रांड का लेबल लगाकर सस्ते में बेचा जा रहा है।”

उद्योग विभाग के सूचना अधिकारी अर्जुन सेन ओली के अनुसार, विभाग में हर साल औसतन ५०० से ज्यादा ट्रेडमार्क विवाद की शिकायतें आती हैं। यदि किसी को विभाग के फैसले से असहमति हो, तो वह उच्च अदालत में अपील कर सकता है, लेकिन अधिकांश मामलों में अदालत ने विभागीय निर्णय को ही मान्यता दी है।

संपादन: हिमालिनी
स्रोत: कान्तिपुर

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