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डा.सी.के राउत आखिर नजरबन्द क्यों थे?

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डा.सी.के राउत

कैलाश महतो :मधेश में एक आम खबर है कि डा.सी.के राउत नेपाल सरकार के नजरबन्द में हैं । कई दफे उनके नजदीक माने जाने बालों से लोग यह जिज्ञासा भी व्यक्त करते हैं कि डा.राउत को आखिर बन्द या नजरबन्द क्यों किया गया ?
समान्यतः जेलबन्दी के अतिरिक्त बन्द या नजरबन्द कई प्रकार के होते हैं, जैसे ः घरबन्दी, थानाबन्दी, पागलखानाबन्दी, परिवारबन्दी, राजनीतिकबन्दी, सामाजिकबन्दी, प्रशासनिकबन्दी आदि । लोगों के सवाल पूछने का अन्दाज भी कई तरह और कई उद्देश्यों से होते हैं । उनके प्रकार और उद्देश्यों में औसत यही होता है कि सी.के जैसे अव्वल एक विद्वान्, वैज्ञानिक, चिन्तक, लेखक, इतिहासकार, साहित्यकार और अभियन्ता को आखिर नेपाल सरकार ने थानाबन्दी और जेलबन्दी के बाद घर में नजरबन्द क्यों कर रखा है ?
ज्ञात हो कि डा.राउत के ऊपर राज्य ने ढेर सारे अपराधों का इल्जाम भी लगाने का प्रयास किया था । उनके उपर साम्प्रदायिकता फैलाने का आरोप, सार्वजनिक अपराध का आरोप, राज्यद्रोह तथा राज्य विप्लव समेत का आरोप लगाने के साथ उन्हें आजीवन कारावास या देश निकाला तक की सजा देने की राज्य और यहाँ के एक समुदाय ने मांग की थी । मगर सम्पूर्ण मधेश और मधेशी जनता, राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय मानव अधिकारवादी संघ संस्था, बार एशोशिएशन, नागरिक समाज, सम्पूर्ण अधिकारप्रेमी दातृ राष्ट्र एवं निकाय, बुद्धिजीवी, शिक्षक, प्राध्यापक, किसान, मजदुर, उद्योगी, व्यापारी, युवा, विद्यार्थी, महिला जैसे चेतनशील मधेशी और पहाड़ी दोनों वर्ग और समुदायों के न्यायपूर्ण आवाज तथा सम्माननीय विशेष अदालत समेत की स्वच्छ न्याय प्रणाली ने डा.राउत को जेलमुक्त कराने में अहम भूमिका निर्वाह की ।
२०७२ वैशाख १० गते के दिन सम्माननीय विशेष अदालत के फैसला अनुसार घोषित रूप में डा.राउत आजाद होने के बाद भी नेपाल सरकार ने उनके अभियान तथा अभियानी दौड़धूप तथा सभा सम्मेलन के कार्यक्रमों के उपर अघोषित रूप में नाकाबन्दी लगाने का काम किया । उनके व्यक्तिगत रूप में घूम फिर तथा सगे सम्बन्धियों से मिलने जुलने की छूट के अलावा स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन के सभा, सम्मेलन तथा अन्य कार्यक्रमों में भाग लेने पर अघोषित प्रतिबन्ध लगाने का काम हुआ । नेपाल सरकार के गृह मन्त्रालय तक ने व्यक्तव्य जारी किया कि नेपाल के संविधान नहीं बन जाने तक डा.राउत को निगरानी में रखा जायेगा ।
देश के विभिन्न स्थानों के भ्रमण के क्रम में डा.राउत को नेपाल सरकारद्वारा नजरबन्द में रखने के कारणों पर लोगों द्वारा ही प्रस्तुत् कुछ अहम् कारणों पर आएं नजर डालें ।
१. डा.राउत द्वारा लिखित प्राचीन, मध्य और वर्तमान ऐतिहासिक दस्तावेजों सहित के प्रमाणपूर्ण पाठ्य सामग्रियाँ मधेशियों के पहुँच में आने के कारण,
२. डा.राउत का “वैराग से बचाव तक” (डिनायल टू डिफेन्स) नामक आत्म–वृतान्त पुस्तक मधेशी पाठकों के अचेतन मन को खोलने में क्रान्तिकारी भूमिका निर्वाह करने के कारण,
३. दिल और दिमाग को तथ्यगत तर्कों के साथ उनके द्वारा प्रस्तुत “मधेश स्वराज” आम पोथी और “ब्ल्याक् बुद्धाज” नामक डक्यूमेण्ट्री राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीयकरण होने के कारण,
४. मधेश के सम्पूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेजों के साथ ब्ल्याक् बुद्धाज डक्यूमेण्ट्री के साथ संयुक्त राष्ट्रसंघ में आवेदन दिए जाने के कारण,
५. सम्पूर्ण ऐतिहासिक प्रमाणों के साथ ब्रिटेन के राज दरबार तथा सरकार को ज्ञापन–पत्र दिए जाने से महारानी एलिजावेथ द्वारा शीघ्र ध्यानाकर्षण होने के कारण,
७. संवैधानिक समिति के सभापति रहे डा.बाबुराम भट्टराई द्वारा डा.राउत की सलाह लेने के क्रम में डा.राउत द्वारा दृढतापूर्वक बनने जा रहे संविधान में राइट टू सेसेशन के अधिकार को लिखित ग्यारेण्टी की मांग करने के कारण,
८. मधेश में उनके तर्कपूर्ण बातों पर लोगों द्वारा सहमति जनाने तथा उनके प्रथम चरण के कार्यक्रमों में ही उनके तथा उनके अभियान के प्रति मधेश में हजारों लोगों के अकल्पनीय आकर्षण के कारण,
९. २०७१ भाद्र २८ गते के दिन मोरंङ्ग के आमतोला में सन्थाल समुदाय द्वारा रखे गये वार्षिक सांस्कृतिक कार्यक्रम में राज्य के राजनेता तथा नेपाल प्रहरी के अधिकारियों के सामने ही डा.राउत द्वारा सन्थाल लगायत के मधेशी आदिवासी जनजातियों की वास्तविक इतिहास की जानकारी कराने के कारण,
१०. २०७१ भाद २८ गते अचानक अकल्पनीय रूप में आमतोला के सन्थाल समुदाय के सांस्कृतिक आमसभा में अतिथि के रूप में मञ्च पर सवार पुलिस अधिकारी तथा उसके सुरक्षाकर्मी के ही नेतृत्व में कार्यक्रम स्थल से कुछ कि.मी के दूरी पर डा.राउत के हुए गिरफ्तारी के कुछ ही घण्टों बाद मधेश में हुए अकल्पनीय प्रचार प्रसार के कारण,
११. डा. राउत की गिरफ्तारी के तुरन्त बाद सम्पूर्ण मधेश में नेपाल सरकार के विरुद्ध तथा डा.राउत के पक्ष में हुए मधेश आन्दोलन के कारण,
१२. राष्ट्रीय नागरिक समाज, बौद्धिक समाज, कानुन व्यवसायी, उद्योगी व्यवसायी, शिक्षक, युवा, विद्यार्थी, महिला तथा आम मधेशी जनता द्वारा सरकार के असंवैधानिक तथा अलोकतान्त्रिक चरित्र के विरोध के कारण,
१३. संयुक्त राष्ट्रसंघ, अनेक देशों के सरकार, संसद तथा नेतृत्व वर्ग, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय मानव अधिकारवादी संघ संस्था, दातृ निकाय, विभिन्न राजदूतावास तथा कूटनीतिक नियोग आदि द्वारा नेपाल सरकार का विरोध एवं स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के पक्ष में वकालत होने के कारण,
१४. जेल में रहकर भी मधेश की मिट्टी को नमन करने तथा मधेश मिट्टी का चन्दन करने से मधेशी युवा समुदायों में डा.राउत की छवि मजबूत होते जाने के कारण,
१५. जेल में रहते हुए भी अपने अडान के साथ जीवन कुर्बान करने तथा आजाद मधेश के अलावा किसी प्रकार के सम्झौता को मन्जूर नहीं करने के कारण,
१६. तत्कालीन अवस्था में संविधान बनने की अवस्था कमजोर होने तथा मधेशी नेतृत्व के ढुलमुल एवं अवसरवादी चरित्र के कारण डा. सी. क.े राउत के सक्षम नेतृत्व के साथ मधेश के नेतृत्व सम्भालने की क्षमता के कारण,
१७. दिन प्रति दिन डा.राउत के प्रति मधेश में लोगों का आकर्षण बढ़ता जाना तथा उनके बाहर निकलने भर से मधेश की अपार जनशक्ति उनके अभियान से अहोरात्र जुड़ने से राज्य में व्याप्त अदृश्य त्रास के कारण,
१८. मधेश स्वतन्त्र होना निश्चित है । इस बात को नेपाली शासक के जान लेने के कारण मधेश छोड़ने से पहले मधेश में व्याप्त अपनी लगानी, अपनी सम्पति और कुछ वर्षों में जप्त संभव होने बाले सम्पत्तियों को मधेश से अंगे्रजो के तरह ही इकट्ठा कर ले जाने का नेपालियों के आन्तरिक रणनीति होने के कारण ।
ज्ञात हो कि १८५७ से १८५९ तक भारत में हुए अंग्रेज विरुद्ध के सिपाही विद्रोह के बाद अंग्रेजो ने भारत छोड़ने का निर्णय कर लिया था और भारत छोड़ने के योजना मुताविक ही उन्होंने भारत में लगाये गये निवेशों और जायदादों तथा चल सम्पतियों को धीरे धीरे अपने देश में ले जाने के बाद गाँधी के नेतृत्व बाले भारत छोड़ो आन्दोलन को स्वीकार कर अपने देश को लौटे थे । लेकिन वो कमजोर संचार और यातायात का युग था । आज का युग यातायात और संचार का है । कुछ संवेदनशील विश्लेषकों की मानें तो शासकीय प्रवृति के नेपाली लोग भी मधेश छोड़ने की योजना बना रहें हैं । उनका मानना है कि अब मधेश में नेपालियों का शासन बहुत दिनों तक नहीं चल सकता ।
डा.राउत के अनुसार उनके ऊपर चाहे जिस प्रकार का भी नजरबन्द या निगरानी हो, उन्हें बाहर निकालने और सभा सम्मेलन में आमन्त्रित करने की सबसे प्रभावकारी शक्ति जनता ही है । फिलहाल उन्हें नजरबन्द से मुक्त किया गया है फिर भी उनके आमसभाओं को बाधित किया जा रहा है और सरकार की यह रणनीति डा. राउत के प्रचार प्रसार में सहायक ही सिद्ध हो रही है ।

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