मधेश पर मधेशियों का हक़ है, जिसे कोई नहीं छीन सकता !
गंगेश मिश्र, कपिलबस्तु, ३१ दिसम्बर २०१५ |
मधेश आन्दोलन ही, नेपाल का वह आन्दोलन है, जिसमें सत्ता की भूख, पद पाने की लालसा नहीं अपितु मधेशियों के स्वाभिमान, सम्मान और पहचान के लिए
सतत् संघर्ष का परिचायक है। सत्ता के लिए जो आन्दोलन होते हैं, सत्ता प्राप्ति जिसका उद्देश्य होता है, सत्ता मिलते ही समाप्त हो जाया करता है, ज्वलन्त उदाहरण है,
मधेश आन्दोलन को पाँच महीने होने को हैं, सरकार चार पहिए से दो पहिए साइकिल पर आ गई है। काठमांडू डीजल से नहा रहा है, आम आदमी रसोई गैस नहींपा रहा है।पैसे वाले कहते हैं, बहुत आराम हो गया है, अब तो आठ नौ हजार दो, गैस घर पर आ जा रहा है, सिलिंडर भी नहीं देना पड़ता।अजब देश की गजब कहानी । ये थी, एक छोटी सी झलक हमारे देश नेपाल की।
ओहो । क्षमा करें काठमांडू की, नेपाल बोले तो काठमांडू, है न ? नेपाल के शासक वर्ग के लोग, सदियों से काठमांडू और पहाड़ों की हसीन वादियों को ही नेपाल समझते रहे हैं। मधेश की भूमि को नेपाल और मधेशियों को भारतीय समझते रहे हैं। बिडम्बना है, देश के शासक मस्ती कर रहे हैं, भूकम्प पीड़ित ठंढ में ठिठुर रहे हैं। देश गुहार लगा रहा है,, तुम बिन नाथ सुने कौन मेरी, कोई अवतार ही इस देश को बचा सकता है । अन्यथा यह देश अब डूबा कि तब डूबा, नैतिकताविहीन राजनीति के भवसागर में ।आन्दोलन चरम पर है, पहाड़ीवादी पार्टी के भाड़े के गुण्डे, मधेशियों पर खुकुरी प्रहार कर रहे हैं। मधेशवादी नेताओं को लाठियों से पीटा जा रहा है। छिः नरक बना डाला है देश को, इस दिशाहीन
राजनीति ने, बड़बोले नेतागण कितने गंदे हो आप लोग। खैर, अब गम्भीर बातें करते हैं। मधेश आन्दोलन को गम्भीरता पूर्वक लेने के बजाय, भारतीय आन्दोलन
कहा गया। संविधान बने अभी जुम्मे जुम्मे आठ रोज ही हुए थे, संशोधन की माँग होने लगी।भूकम्प पीड़ितों को व्यवस्थित करने की प्रक्रिया अधर में लटकी हुई है, बेचारे ठंढ की मार सहने को मज़बूर हैं और देश की आधी आबादी आन्दोलित है, अपने अधिकारों की सुनिश्चितता के लिए।
मधेश पर मधेशियों का हक़ है, जिसे कोई नहीं छीन सकता।जिस देश की आधी आबादी मधेशियों की हो, अगर उसके साथ विभेद होगा, तो नैतिकताविहीन राजनीति
पनपेगी ही। जिस देश के राजनेता, देश के समस्त वासियों का सम्मान नहीं कर सकते, वह देश बहुत दिनों तक अखण्ड नहीं रह सकता। मधेश आन्दोलन ही, नेपाल
का वह आन्दोलन है जिसमें सत्ता की भूख, पद पाने की लालसा नहीं अपितु मधेशियों के स्वाभिमान, सम्मान और पहचान के लिए सतत् संघर्ष का परिचायक
है। सत्ता के लिए जो आन्दोलन होते हैं, जिसका उद्देश्य सत्ता प्राप्ति
होता है, सत्ता मिलते ही समाप्त हो जाया करता है ज्वलन्त उदाहरण है, माओवादी जनयुद्ध।