Fri. Mar 29th, 2024

चलो पुरानी, संस्था पकड़ते हैं ।
गंगेश मिश्र



ओली की मति,
आन्दोलन की गति
दोनों मन्द हैं।
धीरे धीरे,
सब कुछ सामान्य सा
लगने लगा है।
उपेन्द्र राजेन्द्र,
सुस्त हो गए जब
चुस्ती फुर्ती,
ज्ञानेन्द्र जी में
दिखने लगा है।
माले मसाले,
कांग्रेस वालेस
उन मूर्तियों को,
जोड़ने में लगे हैं।
मरहम पट्टी,
करने में लगे हैं।
वर्षों पहले,
जिनको तोड़ने में,
लगे थे।
बुरे फँसे हैं,
बेचारे
कलुषित मन,
के मारे।
संविधान मछली है,
संघीयता काँटा है।
जो निगला नहीं जाता,
उगला भी नहीं जाता है।
तो सोचा इन्होंनेस
कुछ ऐसा करते हैं,
चलो पुरानी संस्था
पकड़ते है।
साँप भी मर जाय,
लाठी भी ना टूटे।
फ़ार्मूला दमदार है,
जनता तो लाचार हैस
मौके की नज़ाक़त देख,
बसन्ती भी तैयार है।
चलो इक बार फिर से,
फ़िर वही ले आयें हम दोनों।



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