राज्य की व्यवस्था को महिला आत्मसात् नहीं कर पाई
मीना स्वर्णिकार
समाज सेवी
नया संविधान हमारे सामने आया पर हम इसका आनन्द नहीं ले पाए । हमने बहुत भोगा है । हम जानते हैं कि इस देश की महिला चाहे वह किसी भी वर्ग समुदाय की हो मधेशी हो, मुस्लिम, आदिवासी, जनजाति हो सभी समाज और देश के विभेदपूर्ण नीति को झेलती आई है और सदियों से पीडि़त है । हमने सड़क से अपनी आवाज बुलँद की । हमारे कपड़े फटे, हमारा दमन किया गया फिर भी सत्ता ने हमें कुछ नहीं दिया है । पर आश्चर्य है कि इस बात पर जिस प्रतिबद्धता के साथ आवाज उठनी चाहिए थी वो नहीं हो पाया । राज्य के द्वारा किए गए किसी भी व्यवस्था को यहाँ की महिला आज तक आत्मसात नहीं कर पाई है । सत्तानसीन जो महिला प्रतिनिधि हैं वो पार्टी के प्रभाव में रहकर नारी के पक्ष में खड़ी नहीं हो पाई । इस देश को अपनी पुरानी सोच से बाहर निकलने की आवश्यकता थी किन्तु आज तक यह देश अपना केंचुल नहीं बदल सका है । जो संविधान आया उसमें कोई भी ऐसी नई सोच नहीं थी जिसे पाकर महिला इस देश में अपनी महत्ता सिद्ध कर सके । हर तरह से महिला प्रतिनिधित्व को नकारा गया है । हम आज भी लड़ रहे हैं । सबसे अधिक जो पीडि़त हैं महिला चाहे वो पहाड़ की हों या तराई की । आज भी राज्य अपने संकीर्ण सोच के साथ चल रहा है और इसी संकीर्ण सोच के साथ संविधान का निर्माण किया गया है ।