Fri. Mar 29th, 2024

जातीय नहीं, बहुजातीय
प्रदेश होना चाहिए
कुमार योन्जन, अन्तरिम संविधान के मस्यौदाकार
इस देश के लिए राज्य पर्ुनर्संरचना का आधार मुख्यतया ‘पहचान’ ही है। मुझे लगता है- इसी को मद्देनजर करते हुए पर्ुनर्संरचना की राह सहज सुगम होगी। समिति ने पहचान और सामर्थ्य के लिए  जो आधार प्रस्तुत किया है, वह सही है। तर्सथ सौद्धान्तिक आधारों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। समिति ने जातीय, ऐतिहासिक स्थल, भाषा, संस्कृति भूमि आदि मान्यताओं के विपरीत निरपेक्ष जातीय आधार को मान्यता देते हुए एक खाका तैयार किया। उस आधार को यदि आयोग संशोधित कर ले तो राज्य पुनर्संरचना पटरी पर आ सकती है।
प्रश्न खडÞा होता है- बहुजातीय आधार का। राज्य द्वारा राष्ट्रियता सम्बोधित होना चाहिए या नहीं। तर्सथ जातीय की अपेक्षा बहुजातीय, बहुराष्ट्रीय , मुद्दों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। वैसा करते समय सम्बन्धित क्षेत्र में बाहुल्य समुदाय की पहचान और वहाँ की आर्थिक क्षमता को ध्यान में रखा जाय तो प्रदेश निर्माण कार्य सहज होगा। समिति ने १४ राज्यों का जो प्रस्ताव पेश किया है, सामर्थ्य और सैद्धान्तिक दोनों हिसाब से वह सही नहीं लगता। मेरे विचार में जनसंख्या, भूगोल एवं प्रतिनिधित्व के हिसाब से १९ राज्य उपयुक्त रहेगा। जहाँ तक प्राकृतिक स्रोत साधन की बात है, इस में राज्य की शक्ति बहुत मायने रखती है। स्रोत साधन कहां कितने है और उन्हें प्रदेश और केन्द्र कैसे सञ्चालन करेंगे – प्रदेश की अपनी र्समर्थता से स्रोत साधन का परिचालन, न्यायिक वितरण कहाँ तक हो सकता है, यह भी विचारणीय पक्ष है। स्थानीय सरकार को कितना अधिकार दिया जाय, इस मुद्दे पर बहुत ध्यान देना चाहिए।
राज्य पर्ुनर्संरचना समिति ने मूल आधार बनाते समय पहचान के अर्न्तर्गत जातीय, भाषिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक एवं ऐतिहासिक निरन्तरता को समाविष्ट किया है। मूलतः यह आधार तो सही है मगर कार्यान्वयन करते समय निरपेक्ष जातीय जनसंख्या को आधार माना गया और आदिवासी जनजातियों के ऐतिहासिक, भौगोलिक पक्ष उपेक्षित रह गए। परिणामतः सुनकोशी और नारायणी की बात आडेÞ आ गई। इस के चलते आदिवासियों के भूगोल, सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन और एकता खण्डित होने के कगार पर है। ०५८ के तथ्यांक  को आधार मान कर डा. पीताम्बर शर्मा द्वारा तैयार किया गया अध्ययन प्रतिवेदन कहता है- ३० प्रतिशत से अधिक जनसंख्यावाला समुदाय किस जात जाति और क्षेत्र से सम्बन्धित हैं। अभी तो प्रायः सभी समुदाय देशभर में विखरे हुए हैं। लेकिन उनका मूल वासस्थान वह नहीं है। वे तो बाद में जीविकोपार्जन या अन्य किसी कारण से उन क्षेत्रों में पहुँचे हैं।
इसी तरह संघीयता मुलत साझा शासन और स्वशासन की बात करता है। नेपाल में निर्माणाधीन संघीय संरचना, विविध ऐतिहासिक विभेदों को सम्बोधित करना चाहती है। स्वशासन और संघीयता का मुद्दा आदिवासी, जानजाति, मधेशी एवं अन्य उत्पीडित जनता के निरन्तर संघषोर्ं का परिणाम है। अतः नेपाल के सर्न्दर्भ में अन्तर्रर्ााट्रय कानून द्वारा प्रदत्त आत्मनिर्ण्र्ााके आधार पर आदिवासियों को उन के ऐतिहासिक भूगोल में स्वायत्तता सहित का स्वशासन और आदिवासी जनता के क्षेत्र में भौगोलिक स्वायत्तता के सिद्धान्त के आधार पर प्रदेश सब बनना चाहिए। ±±±



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