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मालिनी मिश्र, काठमाण्डू, ११ अगस्त । जैसा कि बंगाल के सूती वस्त्रों का निर्यात देश विदेशों में होता आ रहा है, पर अब “मेड इन बंगला देश” के वस्त्रों पर खतरे के आसार नजर आ रहे हैं । फिल्हाल स्थिति यह है कि 28 अरब डॉलर गारमेंट  टेक्सटाइल सेक्टर  के भविष्य की चिंता है।
bangladesh
ढाका में रेडीमेड गारमेंट्स की भरमार पहले भी रहती थी, आज भी है।लेकिन बांग्लादश की 5000 से भी ज़्यादा गारमेंट फैक्ट्रियों में काम की रफ़्तार कैसी रहेगी, ये इस पर निर्भर है कि देश में शांति कितनी बनी रहती है।डेढ़ करोड़ डॉलर सालाना का बिज़नेस करने वाले स्वपन को दो फैक्ट्रियों और अपने 400 कर्मचारियों के   के भविष्य की भी फ़िक्र है।पिछले सालों में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था ने क़रीब सात फ़ीसदी सालाना की बढ़ोत्तरी दर्ज की थी।
लेकिन दक्षिण एशिया में सबसे ज़्यादा तेज़ी से बढ़ने वाली इस अर्थव्यवस्था पर अब अल्पसंख्यकों, ब्लॉगरों, नास्तिकों और विदेशियों की हत्याओं के साए में कम होते विदेशी निवेश का ख़तरा मंडरा रहा है।
वजह साफ़ है। देश से होने वाले निर्यात में बांग्लादेश की गारमेंट इंडस्ट्री का हिस्सा अस्सी फ़ीसदी है। 40 लाख से ज़्यादा लोगों का रोज़गार इस पर निर्भर है। चीन के बाद बांग्लादेश अमरीका और यूरोप में सबसे अधिक रेडीमेड कपड़ों की सप्लाई करता है।
2013 में राना प्लाज़ा बिल्डिंग ( गारमेंट फैक्ट्रियों का कॉम्पलेक्सस के गिरने से देश की इंडस्ट्री की साख को धक्का लगा था। हाल के चरमपंथी हमलों ने इस चोट को और गहरा कर दिया है।
बांग्लादेश गारमेंट्स बायर्स एसोशिएसन के सचिव अमीनुल  नें इस्लाम देश में कम हो रहे गारमेंट्स ऑर्डर का बारीकी से अध्ययन कर रहे हैं।पिछले एक दशक में बांग्लादेश में विदेशी मुद्रा का भंडार बढ़ा है जिससे देश की प्रति व्यक्ति आय में भी इज़ाफ़ा हुआ। लेकिन दो चरमपंथी घटनाओं के बाद प्राथमिकताएं बदल रही हैं।
देश के पूर्व विदेश मंत्री कमाल होसैन को लगता है कि हमलों के पीछे चंद भटके हुए लोग हैं।
उन्होंने कहा, ूविकास रुक जाएगा और प्रगति के बजाय लोग हिंसा पर बात करने लगेंगे। मेरी समझ से परे है ये सब। कितनी मेहनत के बाद बनी थी हमारे देश की ये साख।



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