Fri. Mar 29th, 2024
हे हिमालिनी !
हे मेरी हेमा मालिनी !
तुझे शायद पता नहीं
मैं तेरा आशिक हूँ !
दीवाना हूँ !
परवाना हूँ !
तुझ पे मरता हूँ !
महीने भर तेरा इन्तजार करता हूँ !
मगर इस महंगाई में
तुझे खरीदना पडता है
तो थोडा सा डरता हूँ ।
कभी-कभी तो किसी मित्र से लेकर
तुझे आँखों से पीता हूँ
इस तरह एक बार पीकर
फिर महीने भर इन्तजार में
तेरी याद में जीता हूँ !
वैसे तो चाँद में भी
दाग होता है
फिर भी ‘चन्द्रमुखी-चन्द्रवदनी
चाँद का टुकडा’ सब चलता है !
उसी तरह
हिमालिनी में भी
कुछ कमी, कमजोरियाँ हैं
मगर कोई नहीं समझता
उसकी भी कुछ मजबूरियां हैं !
कभी प्रेस रूपी मुद्राराक्षस
छपाई यज्ञ में
विध्न-बाधा डालता होगा
कभी कोई लेखक बेचारा
‘आजकल में लिखकर भेज देंगे ‘
कहकर महीनो टालता होगा !
शायद संतोषजनक पारिश्रमिक
न मिलने के असंतोष को
देरी के रंग में ढालता होगा
जो हो, मगर …
वितरक-विक्रेता भी तो
कुछ नखरे-वखरे दिखाते होंगे !
कुछ दिखाकर
कुछ छिपाकर खाते होंगे !
ऐसे में तुम एक अवला
कैसे दुनियादारी चलाती होगी !
इस कठोर महंगाई की घडी में
कैसे अपनी दाल गलाती होगी !
वैसे तो बाहर से देखने पर
लगता है
तुम्हें सहयोग करनेवाले
ढेर सारे दास-दासी
अनेक प्रकार के सम्पादक बनकर
तुम्हारी सेवा कर रहे हैं !
तुम पर जान छिडक रहे हैं !
फिर भी तुम्हारी स्वस्थ्यता
तुम्हारी स्वच्छता
तुम्हारा सुघडपन
तुम्हारी पाठक-विमोहिनी छवि
कुछ मुरझाई मुरझाई सी
लगती है
कभी सज सवंरकर
निकला करो
आखिर तुम मेरे जैसे
अनेकों दिलफेंक आशिकों की
माशूका हो
आजकल तो व्युटीपार्लर में
अच्छे खासे व्युटीसियन मिल जाते हैं
जहाँ घुसकर निकलने पर
मुरझाए फूल भी कली बन जाते है !
पैसे फेंकों, तमाशा देखो
फगुआ दरवाजे पर आकर
ढोल बजा रहा है
मैं तुम्हे प्रेमपत्र लिख रहा हूँ
मजा….. आ रहा है !
तुम्हें होली के अवसर पर
मैं तहे दिल से मुबारकवाद देता हूँ ।
महीने भर के लिए
तुम्हें दिलो जान में सहेजता हूँ ।
होली है यार
मिठाइयां खाओं
भंग पीओ
और इसी तरह वर्षों
आशिकों के दिल में जीओ !



तुम्हारा पागल प्रेमी
एम.आर. उपाध्याय
काठमाडौं



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