जय स्वाभिमान भी हुआ पलायन !
कैलाश महतो,परासी, ११ अक्टूबर |
नेपाल न तो राष्ट्र है, न हीं देश । यह सिर्फ एक राज्य है । नेपाल को आज भी राज्य के नाम से ही जाना जाता है । कभी यह किसी का अधिराज्य रहा । आज यह राज्य हो गया है ।
मल्ल काल तक नेपाल एक देश रहा । इसकी अपनी इतिहास, पहचान, संस्कृति, भाषा, रहनसहन तथा व्यापार नीति रही । आज भी नेपाल के राजधानी कहे जाने बाले काठमाण्डौ में जितने भी सांस्कृतिक, धार्मिक, कृषि, व्यापारिक एवं मानवीय धरोहरें मौजुद हैं, वे सब मधेशी राजा महाराओं द्वारा स्थापित किये गये हैं । नेपाल का व्यापार इतना मजबूत रहा कि सिर्फ गोर्खाली ही नहीं, अपितु अंग्रेज और तिब्बतीतकों ने उसे कब्जा करने की कोशिश की । मल्ल कालिन नेपाल के व्यापारिक हैसियतों को ही हरपने के लिए पृथ्वीनारायण शाह ने रात के समय में काठमाण्डौ (नेपाल) प्रवेश की थी । काठमाण्डौं, भक्तपुर तथा किर्तिपुर में मानवीय अपराध की थी । लोगों के नाक और कान काटे थे । भक्तपुर के जिन प्रधानों ने उन्हें राजा बनाये, उन्हीं का सर्वस्व हरण के साथ उनकी जान ली थी । उसी को गोर्खालियों ने स्वाभिमान कह डाला ।
वास्तविक दुश्मन को संसार का कोई भी राज्य या सत्ता या तो जितकर छोडता था या फिर वो कोई सम्झौता किए कराए बगैर भाग खडा होता था उस समय जिस समय नेपाल–अंगे्रज बीच का युद्ध की चर्चा की जाती है । नेपाल–अंगे्रज बीच के सम्झौतों को देखें तो यह स्पष्ट होता है कि नेपाल अंगे्रजों से सम्झौते करने को बाध्य होता रहा । एक बार नहीं, बारम्बार । नेपाली अपने को जितना भी बहादुर और स्वाभिमानी बताते रहें, उनकी सारी बहादुरी के दस्तावेज अंग्रेज और नेपाल बीच के सम्झौतें हैं जो सावित करता है कि नेपालीयों ने सिर्फ बचने के लिए अंगेजों से सम्झौते किए हैं ।
प्रेम बानिया जो न्यूज २४ पर हमेशा जय स्वाभिमान का ढोल पिटता था, नेपाल छोडकर सपरिवार अमेरिका पलायन हो जाने की खबर गरम है । समाचार सूत्रों को मानें तो नेपाल छोडने के कई कारणें बताये जा रहे हैं जिसमें उनका पे्रम सम्बन्ध, जिस्म फरोसी, धोखा और परविार द्वारा ही उनके विरुद्ध पुलिस में पडे उजुरी तथा पुलिस के साथ की गयी बद्तमिजी तक की घटनायें सामिल हैं । खैर जो भी हो, पे्रम बानिया जैसे जय स्वाभिमान ही विदेश पलायन हो जायेंगे, लोगों के लिए यह कल्पना से बाहर थी । उनको अपना हर समस्या को अपने स्वाभिमान के अन्दर, देशभतिm के आत्मरति में तथा जय स्वाभिमान के अदालत में ही समाधान करना चाहिए था । देश उनका , शासन उनकी । प्रशासन उनके और अदालत भी उन्हीं के । उनके स्वाभिमान को तो सबने कबूल किया था । संचार क्षेत्र तो उनके स्वाभिमान का गोयबल्स ही रही तो फिर देश छोडने की नौवत नहीं आनी चाहिए थी । क्यूँकि पैसे भी आम देशवासियों से ज्यादा ही कमा रहे थे ।
आयें जरा गौर करें कि प्रेम बानिया जैसे जय स्वाभिमान नेपाल क्यों छोड देते हैं ः
क्या हम किसी यूरोपियन, अमेरिकन, अष्ट्रेलियन, ब्राजिलियन या फिर कोई अफ्रिकन को ही अपने देश को छोडने की खबर सुनते हैं ? जहाँतक हमारी जानकारी है गरीब से गरीब अफ्रिकन भी अपने जन्मभूमि को कोई बडा अपवाादित अवस्था के बाहेक छोडना देशद्रोह समझता है । बहामस, ट्यूमोलिष्ट, जाम्बिया, नाइजेरिया, सुडान, कंङ्गो आदि जैसे देश के नागरिक भी अपने वतन को छोडकर अन्य देशों में भागने या बसने को नहीं स्वीकारता । मगर किसी जमाने में कहीं से गोर्खा जाकर गोर्खाली और बाद में नेपाली बनने बाले खस लोग इतने आसानी से नेपाल को छोडकर अमेरिका, यूरोप, जापान, अष्ट्रेलिया जैसे देशों में क्यूँ निकल जाते हैं ? देश के राजनेता कहलाने बाले राजनीतिकर्मी लोग क्यूँ अपने ही देश में अपने बच्चों को शिक्षा दीक्षा नहीं दिलाते ? अपने देश के शिक्षा प्रणाली पर उनकी आस्था और भरोसा क्यूँ नहीं ? उनको अपने ही देश में बुलाकर अवसर उपलबध क्यूँ नहीं कराते ?
कारणों को ढुँढे तो यही पता चलता है कि नेपाल उनके है ही नहीं । यह बात मधेशी भले ही याद न करता हो, मगर नेपाली कहे जाने बाले खस लोग यह बखूबी जानते हैं कि नेपाल, गोरखा या वर्तमान नेपाल की कोई भी चीज उनकी नहीं है । न उनकी जमीं है न वतन । न कला संस्कृति है न देशभक्ति की पवृति । उनका यहाँ पर कुछ है भी तो सिर्फ उनका खस भाषा जो उन्होंने अपने साथ लाया था ।
पोशाकों में उनके टोपी इरानी है । दाउरा और सुरुवाल सिरियाली है । नाक नक्से अफगानी और इराकी है । उपर से लगाये जाने बाले कोट इंगलिस्तानी है । तिब्बत और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच में किसी भूमि–पुत्र से कुछ रहन सहन न मिलने बाले ये खस लोगों का बसेरा अपाकृतिक ही लगती है ।
ये यहाँ के न होने के कारण इनको बहुत पहले से इस बात की शंका और जानकारी दोनों रही कि इस भूभाग में ये बहुत लम्बे समयों तक नहीं रह सकते । ये जानते रहे कि एक न दिन गोर्खा, भोजपुर, दाङ्ग, मिथिला, अवध, कोच की जनता जगेगी, अपना लूटा हुआ विरासत मागेगी और इनके नचाहते हुए भी इस भूमि को छोडना होगा । और यही कारण है कि शनैः शनैः ये खस लोग मधेश, नेपाल और गोर्खा लगायत के स्थानों से वर्षों से पलायन होते रहे हैं । यहाँ के सम्पतियों को अमेरिका और यूरोप के सुरक्षित जगहों में रखते जा रहें हैं । उसीका क्रमिकता है कि नेपाली होने, देशभक्ति का गीत गाने और जय स्वाभिमान का ढोल पिटने बाले चतुर नेपाली पे्रम बानिया लोग विदेश पलायन होते जा रहे हैं ।